बड़ी खबर! रूस ने बनाई कैंसर की वैक्सीन, वैज्ञानिकों का दावा- ट्रायल में मिली सफलता
रूस की FMBA ने कैंसर, खासकर कोलोरेक्टल कैंसर के इलाज के लिए mRNA आधारित नई वैक्सीन विकसित की है, जो प्रीक्लिनिकल ट्रायल्स में सफल साबित हुई है. अब इसका इस्तेमाल मंजूरी का इंतजार कर रहा है, जिससे कैंसर से लड़ाई में एक बड़ी उम्मीद जगी है.
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दुनियाभर में हर रोज लाखों लोग कैंसर के कारण मरते हैं. अलग-अलग देश सालों से इस लाइलाज बीमारी से छुटकारा पाने के लिए इसकी वैक्सीन पर शोध कर रहे हैं. इस बीच रूस से एक बड़ी खबर आई है.
दरअसल इस देश ने कैंसर के खिलाफ लड़ाई में एक नई सफलता हासिल कर ली है. वहां की फेडरल मेडिकल एंड बायोलॉजिकल एजेंसी (FMBA) FMBA ने कैंसर की बीमारी को ठीक करने के लिए एक वैक्सीन तैयार की है.
FMBD प्रमुख वेरोनिका स्क्वोर्त्सोवा का कहना है कि रूसी एंटरोमिक्स कैंसर वैक्सीन अब इस्तेमाल के लिए तैयार है. उन्होंने बताया कि mRNA-बेस्ड इस कैंसर के इलाज वाली वैक्सीन ने कई प्रीक्लिनिकल टेस्ट को पास कर लिया है. जिससे ये साबित हो चुका है कि ये वैक्सीन आने वाले समय में कैंसर से जूझ रहे मरीजों के लिए मददगार साबित हो सकता है.
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FMBD प्रमुख वेरोनिका स्क्वोर्त्सोवा ने बताया कि इस टीके का प्रारंभिक लक्ष्य कोलोरेक्टल कैंसर (कोलन कैंसर) होगा.
क्या है ये कोलोरेक्टल कैंसर
कोलोरेक्टल कैंसर को कोलन कैंसर भी कहते हैं. ये बड़ी आंत (कोलन) या मलाशय (रेक्टम) में होने वाला कैंसर है. इस दौरान मरीज के आंत की अंदरूनी परत में छोटी गांठ (पॉलिप) हो जाती है जो धीरे-धीरे कैंसर में बदल जाती है. इसके लक्षणों में पेट दर्द, खून वाली मल, वजन घटना और कब्ज शामिल हैं.
वैक्सीन ने पार किए सभी ट्रायल्स
रूस की समाचार एजेंसी TASS के मुताबिक ट्रायल के दौरान इस वैक्सीन ने कैंसर मरीजों पर शानदार प्रदर्शन किया है और FMBA की प्रमुख वेरोनिका स्क्वोर्त्सोवा ने ईस्टर्न इकोनॉमिक फोरम (EEF) में इसकी घोषणा भी की है.
अप्रूवल का इंतजार
स्कवोर्त्सोवा कहते हैं कि हम इस वैक्सीन पर काफी सालों से शोध कर रहे थे, पिछले तीन साल तो सिर्फ मैंडेटरी प्रीक्लिनिकल स्टडीज को ही समर्पित थे. इन सब के बाद अब ये वैक्सीन इस्तेमाल के लिए तैयार है. बस हम ऑफीशिल अप्रूवल का इंतजार कर रहे हैं.
उन्होंने ये भी बताया कि प्रीक्लिनिकल ट्रायल्स टीके की सुरक्षा, बार-बार इस्तेमाल के बावजूद इसकी प्रभावशीलता की पुष्टि करते हैं. रिसर्चर्स ने इस बीच ट्यूमर के आकार में कमी और ट्यूमर के विकास में कमी देखी. इसके अलावा अध्ययनों ने टीके के कारण मरीज की जीवित रहने की दर में वृद्धि का भी संकेत दिया.
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