Explainer: निकोबार द्वीप पर मोदी सरकार 72 हजार करोड़ में ऐसा क्या बना रही जिसे लेकर सोनिया गांधी ने घेरा, लगाए कई आरोप

अलका कुमारी

ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट भारत के सामरिक और आर्थिक विकास की बड़ी योजना है, लेकिन इससे पर्यावरण और आदिवासी अधिकारों को गंभीर खतरे की आशंका है.

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ग्रेट निकोबार प्रोजक्ट
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निकोबार द्वीप पर बन रहे मेगा पोर्ट प्रोजेक्ट को लेकर भारत में एक नई बहस छिड़ गई है. हाल ही में कांग्रेस की वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी ने मोदी सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए इस प्रोजेक्ट को 72,000 करोड़ का “बेकार खर्च” बताया है. उन्होंने कहा कि यह प्रोजेक्ट न केवल प्रकृति को नुकसान पहुंचाएगा, बल्कि आदिवासी समुदायों के अधिकारों को भी कुचलेगा. 

ऐसे में इस रिपोर्ट में विस्तार से समझते हैं कि आखिर ये ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट है क्या, सोनिया गांधी ने क्या कहा.

ये ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट क्या है?

ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट भारत सरकार की एक बहुत बड़ी विकास योजना है, जिसकी लागत लगभग 72 से 81 हजार करोड़ रुपये के बीच बताई जा रही है. यह परियोजना अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के सबसे दक्षिणी हिस्से, ग्रेट निकोबार द्वीप पर बनाई जा रही है.

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इस प्रोजेक्ट के तहत सरकार इस द्वीप को एक बड़ा सामरिक और व्यापारिक केंद्र बनाना चाहती है. इसमें कई चीजें शामिल हैं. हालांकि सबसे पहले, एक बड़ा समुद्री पोर्ट बनाया जा रहा है जो गैलथिया बे (Galathea Bay) में होगा. इस पोर्ट के माध्यम से भारत अंतरराष्ट्रीय ट्रांसशिपमेंट कारोबार को बढ़ावा देना चाहता है, ताकि बड़े-बड़े जहाज़ यहां रुकें और माल की अदला-बदली हो सके. 

इसके साथ इस प्रोजेक्ट के तहत एक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा का निर्माण भी किया जाएगा. जिसका इस्तेमाल न केवल आम नागरिक उड़ानों के लिए होगा बल्कि इसमें सैन्य उड़ानों के लिए भी जगह होगी. यह भारत की सुरक्षा के दृष्टिकोण से भी काफी अहम माना जा रहा है क्योंकि यह इलाका रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण है.

इस प्रोजेक्ट में एक बिजली संयंत्र यानी पावर प्लांट की भी स्थापना की जाएगी, जो गैस और सोलर उर्जा दोनों से बिजली बनाएगा. साथ ही वहां एक नई टाउनशिप भी बसाई जाएगी जिसमें रहने के लिए घर, ऑफिस, दुकानें आदि होंगे. 

सरकार यहां इस इलाके में टूरिज्म को भी बढ़ावा देना चाहती है, इसलिए पर्यटन के लिए खास सुविधाएं बनाई जाएंगी जैसे रिसॉर्ट्स, होटल वगैरह.

कब शुरू हुआ ये प्रोजेक्ट और अब क्या स्थिति है

साल 2022 में ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट को पर्यावरण मंत्रालय से मंजूरी मिल गई. इसके बाद सरकार को 130.75 वर्ग किलोमीटर जंगल काटने की भी अनुमति मिल गई, जो हाल के सबसे बड़े जंगल कटाई मामलों में से एक है. पहले ये इलाका तटीय नियमों के तहत संरक्षित (prohibited zone) था, लेकिन बाद में नियमों में बदलाव कर इसे निर्माण के लिए खुला घोषित कर दिया गया. 

साल 2023 में केंद्र सरकार ने एक उच्च स्तरीय समिति बनाई, जिसने पर्यावरण और समुद्री जीवन (जैसे कोरल रीफ्स) पर पड़ने वाले असर की जांच की और इसकी रिपोर्ट नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) को सौंप दी, लेकिन वो रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई. अब सरकार का कहना है कि निर्माण का काम जल्दी शुरू होगा और पोर्ट का पहला चरण 2028 तक पूरा कर लिया जाएगा.

सोनिया गांधी ने क्यों किया इस प्रोजेक्ट की आलोचना 

द हिंदी की एक रिपोर्ट में सोनिया गांधी ने हाल ही में इस प्रोजेक्ट को “पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा” बताया है. उन्होंने कहा कि यह वहां की आदिवासी जनजाती (निकोबारेस और शोम्पेन) को “स्थायी रूप से विस्थापित” कर देगा. 

कांग्रेस की वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी ने इसे “कानूनों का उल्लंघन” और “सामाजिक जांच की अनदेखी” भी बताया. उनका कहना है कि इस तरह के बड़े प्रोजेक्ट को बिना सही प्रक्रिया अपनाए जल्दबाजी में आगे बढ़ाया जा रहा है. साथ ही, उन्होंने इस प्रोजेक्ट को “पर्यावरणीय आपदा” भी कहा और दावा किया कि इससे द्वीप के अनोखे पौधे-पशु और पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान होगा.

ये प्रोजेक्ट पर्यावरण को कैसे क्षति पहुंचा सकता है

केंद्र सरकार के इस प्रोजक्ट से वहां के पर्यावरण को कई तरह से नुकसान पहुंच सकता है. सबसे जरूरी ये है कि इस परियोजना में बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई होगी, जिससे जंगल खत्म होंगे और जानवरों का घर उजड़ जाएगा. समुद्र तटों को भी बदला जाएगा जिससे कछुओं जैसे समुद्री जीवों को नुकसान होगा. 

इतना ही नहीं वहां की आदिवासी जनजातियों का जीवन भी प्रभावित होगा क्योंकि उनकी जमीन और रहन-सहन में दखल होगा. वहीं बिजनेस एंड ह्यूमन राईट रिसोर्स सेंटर और पूर्व नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्ड लाइफ के सदस्य Dr. Asad Rahmani ने चेतावनी दी कि

Galathea Bay सैंक्चुअरी का हटा दिया जाना और उलझाना उनकी इलाक़ों और Leatherback कछुओं, Nicobar megapode जैसे प्रजातियों के लिए गंभीर खतरों को जन्म देगा. उन्होंने कहा कि यह फैसला वैज्ञानिक और जनजातीय सुरक्षा दोनों के खिलाउ है.

इस परियोजना से लाभ क्या है 

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार इस परियोजना से भारत को कई बड़े फायदे हो सकते हैं. सबसे पहले तो यह जगह मालक्का जलडमरूमध्य के पास है, जो दुनिया के सबसे व्यस्त समुद्री रास्तों में से एक है. यहां एक मजबूत पोर्ट और एयरबेस होने से भारत की समुद्री सुरक्षा काफी मजबूत हो जाएगी. 

इसके अलावा, ट्रांसशिपमेंट पोर्ट बनने से बड़े-बड़े जहाज अपना माल इस पोर्ट पर उतारेंगे और चढ़ाएंगे, जिससे व्यापार और लॉजिस्टिक्स में जबरदस्त बढ़ोतरी होगी. इसके साथ ही, हवाई अड्डा, बिजली संयंत्र और नई टाउनशिप बनने से इस दूरदराज इलाके में बुनियादी सुविधाएं आएंगी और स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा. 

ऐसा माना जा रहा है कि इस प्रोजेक्ट के शुरुआती चरण में ही लाखों लोगों को काम और बेहतर कनेक्टिविटी मिल सकती है, जिससे पूरे इलाके का विकास तेज़ी से होगा. 

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