Haryana Assembly Elections: कांग्रेस और आप के बीच सीटों को लेकर चल रही दबाव पॉलिटिक्स? शाम तक कुछ बड़ा होगा

News Tak Desk

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न्यूज़ हाइलाइट्स

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कांग्रेस और आप के बीच सीटों को लेकर दबाव पॉलिटिक्स चल रही है.

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दोनों पार्टी के नेताओं द्वारा एक दूसरे पर दबाव डालने वाले बयान भी जारी किए जा रहेे हैं.

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कांग्रेस और आप, दोनों ही पार्टियों की मानना है कि हरियाणा में सत्ता विरोधी लहर चल रही है.

Haryana Assembly Elections: कांग्रेस और आप के बीच सीटों को लेकर दबाव पॉलिटिक्स चल रही है. न तो कांग्रेस स्पष्ट कर रही है कि वह कितनी सीटें आप को देने को राजी हो गई है और न ही आम आदमी पार्टी अपनी मांगों से कोई समझौता करने को तैयार दिख रही है. इस बीच दोनों पार्टी के नेताओं द्वारा एक दूसरे पर दबाव डालने वाले बयान भी जारी किए जा रहेे हैं. ऐसे में यहां समझने की जरूरत है कि आखिरकार क्यों कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के लिए अहम है हरियाणा का गठबंधन और इस गठबंधन के बनने में कहां पेंच फंस रहा है.

हरियाणा में राजनीतिक माहौल फिलहाल बहुत ही दिलचस्प है. कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (आप) ने हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनावों में गठबंधन के तहत चुनाव लड़ा था. इस गठबंधन ने कांग्रेस को फायदा प्रदान करते हुए 10 में से 5 सीटें जीतने में मदद की, जबकि आप मामूली अंतर से कुरुक्षेत्र की इकलौती सीट हार गई थी. लेकिन क्या ये गठबंधन सिर्फ लोकसभा को लेकर चुनावी समीकरण पर आधारित था या इसके पीछे कुछ और भी सोच थी? क्या तभी पटकथा विधानसभा के गठबंधन की भी लिखी गई थी?

सत्ता विरोधी लहर की मलाई है कांग्रेस-आप के गठबंधन का आधार?

कांग्रेस और आप, दोनों ही पार्टियों की मानना है कि हरियाणा में सत्ता विरोधी लहर चल रही है. एनडीए सरकार के खिलाफ बढ़ते समर्थन का फायदा सबसे बड़े विरोधी दल या गठबंधन को मिलने की संभावना है. इसी कारण इन दोनों पार्टियों का गठबंधन सिर्फ इस चुनाव की रणनीति नहीं, बल्कि एक लंबे सोच को लेकर किया जा रहा है. ऐसा जानकारों का मानना है कि अब सवाल उठता है कि आखिर क्यों आप कांग्रेस के साथ अपने तालमेल को और मजबूत करने की ओर देख रही है?

इसका जवाब काफी हद तक स्पष्ट है. आप INDIA गठबंधन का हिस्सा है, जिसमें कांग्रेस सबसे बड़ा सदस्य है. संसद के भीतर और बाहर भी तमाम विरोधी दलों के साथ मिलकर उनके मुद्दों पर साझा रणनीति बनाना आप की प्राथमिकता है. आप पार्टी मानती है कि यदि वे कांग्रेस के साथ अपने संबंध मजबूत रखते हैं, तो वे हरियाणा के राजनीतिक परिदृश्य में अधिक प्रभावशाली भूमिका निभा सकते हैं. इसी कारण, वर्तमान स्थिति में, आप कांग्रेस के बढ़ते प्रभाव को नजरअंदाज नहीं कर सकती और इसी को देखते हुए आप कांग्रेस के साथ अपने तालमेल को जारी रखना चाहती है.

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क्यों है हरियाणा और केंद्रीय नेतृत्व के बीच मत भिन्नता?

लेकिन, इस गठबंधन को लेकर कांग्रेस के सबसे बड़े नेता, भूपिंदर सिंह हुड्डा और राज्य नेतृत्व के कुछ और नेताओं की राय अलग है. हुड्डा किसी भी सीट को आप के लिए छोड़ने के पक्ष में नहीं हैं. उनका मानना है कि कांग्रेस का संगठन हरियाणा में सभी सीटों पर मजबूत स्थिति में है और आप के साथ किसी भी प्रकार के गठबंधन से पार्टी के अंदर बगावती सुर और भी तेज़ हो सकते हैं. हुड्डा खेमे का विश्वास है कि कांग्रेस अपने दम पर ही बहुमत हासिल कर सरकार बनाने के काबिल है.

उनकी दृष्टि में, जब कांग्रेस खुद मजबूत स्थिति में है, तो एक ऐसी पार्टी से गठबंधन करने की जरूरत क्यों है, जो हरियाणा के दो पड़ोसी राज्यों दिल्ली और पंजाब में कांग्रेस को कमज़ोर कर चुकी है? इसका उदाहरण देते हुए हुड्डा खेमे का कहना है कि आप को मौका देने से कांग्रेस को लांग टर्म में नुकसान हो सकता है, जैसे कि दिल्ली और पंजाब में हुआ. इसके विपरीत, राहुल गांधी का दृष्टिकोण भिन्न है. जो कभी आप के साथ किसी परिप्रेक्ष्य में गठबंधन के खिलाफ थे, उन्होंने हरियाणा में आप के साथ तालमेल की वकालत की है. राहुल की इस नई रणनीति के पीछे एक बड़ी सोच छिपी है. वह यह संदेश देना चाहते हैं कि कांग्रेस अपने सहयोगियों का ध्यान रखती है और सामंजस्य की राजनीति को प्राथमिकता देती है.

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पेंच सीटों की संख्या और पसंद को लेकर भी

आम आदमी पार्टी (AAP) और कांग्रेस के बीच गठबंधन की चर्चा में भी कुछ और पेंच भी आ रहा है. इस वक्त, मुद्दा बस इतना ही नहीं है कि कुल कितनी सीटें दिए जाने हैं, बल्कि यह भी है कि कौन सी सीटें किसके हिस्से आ रही हैं. शुरुआती दौर में आम आदमी पार्टी ने 90 सीटों में से कम से कम 10 सीटों की मांग की थी. पर हाल ही में आई रिपोर्ट्स से पता चलता है कि AAP ने अपनी मांग को घटाकर 5 सीटों तक सीमित कर लिया है लेकिन सीटों की संख्या घटाने के बावजूद, AAP कुछ चुनिंदा सीटें चाहती है, जहां उन्हें अपने उम्मीदवार उतारने का भरोसा हो.

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दूसरी ओर कांग्रेस उन खास सीटों को देने में हिचकिचा रही है, जो कि AAP की पसंद में शामिल हैं. कांग्रेस की यह संकोच और AAP की यह जिद्दी स्थिति आपसी सहमति में बाधक बन रही है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह टकराव सिर्फ सीटों की संख्या का नहीं है, बल्कि राजनीतिक ताकत और प्रभाव का भी है. AAP का जोर प्रमुख सीटों पर अधिक है, जहां उनकी पकड़ मजबूत हो सकें, जबकि कांग्रेस इस कोशिश में है कि उनकी स्थिति भी बची रहे.

क्या है हरियाणा विधानसभा चुनावों का "दिल्ली' कनेक्शन?

हरियाणा में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (AAP) के संभावित गठबंधन का असर केवल राज्य की सीमाओं तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि इसका प्रभाव दिल्ली के आगामी विधानसभा चुनावों पर भी पड़ेगा.दिल्ली की सियासी गलियारों में चर्चाएं गर्म हैं कि कांग्रेस का सीनियर नेतृत्व दिल्ली में गठबंधन करने के लिए उत्सुक है. लेकिन प्रदेश स्तर के नेता इस विचार से ज्यादा उत्साहित नहीं हैं. कांग्रेस का मानना है कि इस बार दिल्ली में चुनाव हरियाणा जितने आसान नहीं होंगे.

पार्टी को लगता है कि सत्ता में बने रहने के लिए उन्हें आम आदमी पार्टी का समर्थन आवश्यक होगा. यह रणनीति इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि दिल्ली में इस बार मुकाबला कठिन हो सकता है और कांग्रेस को एक मजबूत गठबंधन की आवश्यकता होगी. हरियाणा में अगर कांग्रेस और AAP के बीच गठबंधन होता है, तो दिल्ली में भी गठबंधन को लेकर बारगेनिंग आसान होगी. हरियाणा में कुछ सीटें AAP को देकर, कांग्रेस राजधानी दिल्ली में एक मजबूत गठबंधन के लिए आम आदमी पार्टी के समर्थन की उम्मीद कर सकती है.

इनपुट- दिल्ली से कुमार कुणाल की रिपोर्ट.

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