उत्तराखंड ही नहीं इन दो राज्यों में भी समान नागरिक संहिता लाने की तैयारी? BJP का प्लान समझिए

अभिषेक

एक तरफ जहां केंद्र सरकार UCC को लेकर विधि आयोग से कानूनी परामर्श ले रही है, तो वहीं अब बीजेपी सरकार वाले राज्य उत्तराखंड में इसे लागू करने की बात चल रही है.

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Uniform Civil Code: हाल के दिनों में समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) को लेकर बहस तेजी हो गई है. भारतीय जनता पार्टी की केंद्र और राज्यों की सरकारों में इसे लेकर कवायद भी जारी है. एक तरफ जहां केंद्र सरकार UCC को लेकर विधि आयोग से कानूनी परामर्श ले रही है, तो वहीं अब बीजेपी सरकार वाले राज्य उत्तराखंड में इसे लागू करने की बात चल रही है. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, प्रदेश सरकार 5 फरवरी को शुरू होने वाले विधानसभा सत्र में UCC के लिए बिल पेश कर कानून बनाने जा रही है. अगर ऐसा होता है तो उत्तराखंड, गोवा के बाद देश का दूसरा ऐसा राज्य होगा जहां UCC लागू होगा.

2022 में हुए उत्तराखंड विधानसभा चुनाव से ठीक पहले बीजेपी ने प्रदेश में UCC लाने का वादा किया था. बीजेपी की सरकार बनते ही UCC को लेकर कमेटी बनाई गई. कमेटी सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई के नेतृत्व में बनी थी जिसने अपनी रिपोर्ट प्रदेश सरकार को सौंप दी थी. पिछले दिनों मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इसी कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर प्रदेश में समान नागरिक संहिता को लागू करने की बात कही थी.

गुजरात, असम में भी UCC को लागू करने की है तैयारी

वैसे उत्तराखंड ही एकमात्र ऐसा राज्य नहीं है जहां UCC को लेकर पहल चल रही हो. बीजेपी शासित राज्य मध्य प्रदेश और गुजरात ने भी समान नागरिक संहिता के लिए समितियां बनाई गई हैं. असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने भी पिछले दिनों कहा था कि, हम उत्तराखंड और गुजरात के कानून का इंतजार कर रहे हैं. हम उन राज्यों के UCC बिलों के हिसाब से असम में भी समान नागरिक संहिता लाएंगे.

सूत्रों के मुताबिक बीजेपी की ये मंशा है कि, आगामी लोकसभा चुनाव से पहले देश के कम से कम तीन राज्यों उत्तराखंड, गुजरात और असम में समान नागरिक संहिता का कानून लागू कर लिया जाए. इन्हीं की तर्ज पर पार्टी आगामी चुनावों में पूरे देश में UCC को लागू करने का दाव खेल सके.

अब जानिए आखिर क्या है समान नागरिक संहिता

भारतीय संविधान के भाग चार में वर्णित नीति निर्देशक तत्वों के आर्टिकल 44 में देश में समान नागरिक संहिता को लेकर प्रावधान है. संविधान में नीति निर्देशक तत्व वे होते हैं, जो सरकारों के लिए बाध्यकारी नहीं होते हैं, लेकिन ये एक तरीके से सरकार के लिए मार्गदर्शन का काम करते हैं. आर्टिकल 44 के अनुसार, राज्य/सरकार भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता को लागू करने का प्रयास करेगी.’ सीधे शब्दों में कहें तो देशभर में सभी लोगों के लिए शादी, तलाक, गोद लेने और जमीन-संपत्ति के बंटवारे जैसे कानून समान होंगे. यानी UCC का मतलब धर्मों और समुदायों से ऊपर उठकर सभी के लिए एकसमान कानून बनाने से है.

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देश में UCC को लेकर क्या है विवाद और अड़चनें?

समान नागरिक संहिता सभी धर्मों और समुदायों के लिए एकसमान कानून करने की बात करता है. भारत विविधताओं का देश है. आदिवासी जनजातियों से लेकर विभिन्न धर्मों के अपने अलग-अलग रीति-रिवाज और प्रथाएं है. अगर सभी के लिए एक समान कानून बनेगा तो आदिवासियों और ऐसी जनजातियां जो विलुप्ति की कगार पर हैं, उन्हें एकसाथ लाना बड़ी चुनौती है. देश में मुसलमानों की बड़ी आबादी है. जिनके अपने अलग नियम और कायदे हैं. ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के असदुद्दीन ओवैसी जैसे मुस्लिम समुदाय के नेताओं का कहना है कि बीजेपी की हिंदुवादी सरकार मुस्लिम समुदाय को टारगेट कर रही है. ओवैसी का तर्क है कि यूसीसी के जरिए बहुसंख्यक यानी हिंदुओं के विचारों को थोपने की कोशिश हो रही है. ओवैसी उत्तराखंड में यूसीसी की कवायद को भी असंवैधानिक बता चुके हैं.

देश के पूर्वोत्तर (नॉर्थ ईस्ट) के प्रदेशों में भी बहुत विविधता है, वहां से पहले ही विरोध के सुर देखने को मिले हैं. मिजोरम विधानसभा ने पिछले साल फरवरी में यूसीसी लागू करने के किसी भी कदम का विरोध करने का प्रस्ताव पास किया है. नागालैंड विधानसभा में भी सितंबर में प्रस्ताव पेश हो चुका है कि प्रदेश को यूसीसी से छूट मिले. नागा समुदाय को लगता है की यूसीसी उनके परम्परागत सामाजिक कानूनों के लिए चुनौती है. यानी कुल मिलाकर देखें तो यूसीसी लागू करने की राह में समाज के कई तबकों की तरफ से अपनी अपनी आपत्तियां मौजूद हैं.

बीजेपी के मास्टर प्लान का हिस्सा है UCC

साल 1990 से ही बीजेपी के चुनावी घोषणा पत्र में राम मंदिर को बनवाना, कश्मीर में धारा 370 की समाप्ति और समान नागरिक संहित को लागू करने जैसे मुद्दे शामिल रहे हैं. केंद्र सरकार ने साल 2019 में कश्मीर से धारा 370 को हटा दिया, सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले से राम मंदिर भी बन गया और इसी महीने की 22 जनवरी को पीएम नरेंद्र मोदी ने राम मंदिर का उद्घाटन भी कर दिया. अब इन सब के बाद बीजेपी के चुनावी वादों में से बस एक ही बड़ी चीज बची रह गई है, जो समान नागरिक संहिता है. वैसे बीजेपी UCC को लागू कराने के लिए लंबे समय से प्रयासरत रही है, लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि पार्टी इसे भी लागू कराने के फुल मूड में आ चुकी है.

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