चंद्रबाबू नायडू ने BJP को दिया झटका! वोटर लिस्ट रिवीजन पर TDP ने चुनाव आयोग से पूछे सवाल, मांगा स्पष्ट जवाब!

रूपक प्रियदर्शी

देशभर में वोटर लिस्ट रिवीजन के लिए शुरू की गई स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) प्रक्रिया पर विवाद गहराता जा रहा है. बिहार में इस अभियान को लेकर पहले से ही हंगामा मचा हुआ है, और अब आंध्र प्रदेश की सत्तारूढ़ तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) ने भी इस पर सवाल उठाए हैं.

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देशभर में वोटर लिस्ट रिवीजन के लिए शुरू की गई स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) प्रक्रिया पर विवाद गहराता जा रहा है. बिहार में इस अभियान को लेकर पहले से ही हंगामा मचा हुआ है, और अब आंध्र प्रदेश की सत्तारूढ़ तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) ने भी इस पर सवाल उठाए हैं. टीडीपी ने चुनाव आयोग को पत्र लिखकर स्पष्ट करने की मांग की है कि यह प्रक्रिया नागरिकता सत्यापन से नहीं जुड़ी है. साथ ही, पार्टी ने कई सुझाव भी दिए हैं ताकि प्रक्रिया को और पारदर्शी बनाया जा सके.  

टीडीपी ने क्यों उठाए सवाल?  

टीडीपी संसदीय दल के नेता लावु श्रीकृष्ण देवरायलु ने चुनाव आयोग को लिखे पत्र में कहा है कि SIR अभियान से मतदाताओं में भ्रम और डर का माहौल बन रहा है. उन्होंने मांग की है कि आयोग स्पष्ट करे कि यह प्रक्रिया केवल वोटर लिस्ट को अपडेट करने और नाम जोड़ने तक सीमित है, न कि नागरिकता जांच से जुड़ी है. टीडीपी का कहना है कि चुनाव से ठीक पहले इस तरह की प्रक्रिया शुरू करना ठीक नहीं है, क्योंकि यह मतदाताओं में शंका पैदा कर सकता है.  

बिहार में शुरू हुआ विवाद  

बिहार में SIR अभियान के तहत वोटर लिस्ट से करीब 35 लाख लोगों के नाम हटाए गए हैं. इनमें कुछ लोग जो मृत्यु हो चुकी है, कुछ जो बिहार से बाहर चले गए, और कुछ डुप्लिकेट एंट्री वाले शामिल हैं. इसके अलावा, यह भी सामने आया कि म्यांमार और बांग्लादेश के कुछ नागरिक बिहार की वोटर लिस्ट में शामिल थे. विपक्ष ने आरोप लगाया है कि खासकर सीमांचल क्षेत्र में वोटर लिस्ट से नाम काटने की प्रक्रिया पक्षपातपूर्ण है.  

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टीडीपी के सुझाव  

टीडीपी ने अपने पत्र में कई अहम सुझाव दिए हैं:  

- बायोमेट्रिक सत्यापन: मतदान के दौरान उंगली पर स्याही की जगह बायोमेट्रिक सत्यापन लागू किया जाए.  

- थर्ड पार्टी ऑडिट: हर साल CAG के तहत वोटर लिस्ट का ऑडिट हो.  

- रियल-टाइम डैशबोर्ड: आयोग एक ऑनलाइन पोर्टल शुरू करे, जिसमें यह जानकारी हो कि किस जिले से कितने नाम हटाए या जोड़े गए.  

- एआई का उपयोग: मृतकों या प्रवास करने वालों के नाम हटाने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल हो.  

- BLO की रोटेशन पॉलिसी: स्थानीय प्रभाव से बचने के लिए बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) को समय-समय पर बदला जाए.  

सुप्रीम कोर्ट में मामला  

SIR को लेकर विवाद सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है. विपक्षी नेताओं और सिविल सोसाइटी की याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कोई रोक नहीं लगाई, लेकिन आयोग को आधार और राशन कार्ड जैसे दस्तावेजों को स्वीकार करने का निर्देश दिया. आयोग ने कहा कि वह पहले से ही ऐसा कर रहा है. इस मामले की अगली सुनवाई 28 जुलाई को होगी.  

टीडीपी का स्टैंड और राजनीतिक मायने  

टीडीपी का इस मुद्दे पर खुलकर बोलना राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है. केंद्र में मोदी सरकार को टीडीपी के 16 और जेडीयू के 12 सांसदों का समर्थन प्राप्त है. अब तक दोनों पार्टियों ने सरकार के फैसलों का समर्थन किया है, लेकिन SIR पर टीडीपी का सवाल उठाना सरकार और आयोग के लिए चुनौती बन सकता है. टीडीपी ने यह भी कहा कि आंध्र प्रदेश में 2029 से पहले चुनाव नहीं हैं, इसलिए वहां यह प्रक्रिया जल्द शुरू की जा सकती है.  

क्या है विवाद की जड़?  

विपक्ष का आरोप है कि SIR के नाम पर वोटर लिस्ट से चुनिंदा नाम हटाए जा रहे हैं, जिससे कुछ समुदाय प्रभावित हो सकते हैं. वहीं, आयोग का कहना है कि यह प्रक्रिया केवल वोटर लिस्ट को अपडेट करने के लिए है. टीडीपी ने सुझाव दिया है कि प्रक्रिया को और पारदर्शी बनाने के लिए तकनीक का सहारा लिया जाए.  

आगे क्या?  

चुनाव आयोग पर अब दबाव बढ़ रहा है कि वह SIR की प्रक्रिया को स्पष्ट करे और मतदाताओं के बीच भरोसा बनाए. टीडीपी के सवाल और सुझाव इस दिशा में एक कदम हैं. सुप्रीम कोर्ट की अगली सुनवाई और आयोग का जवाब इस विवाद को और रोचक बना सकते हैं.  

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