वंदे मातरम को लेकर वर्ष 1937 में क्या हुआ था? PM मोदी ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए क्यों किया इसका जिक्र
लोकसभा में वंदे मातरम के 150 साल पर हुई चर्चा तीखी राजनीतिक भिड़ंत में बदल गई जहां पीएम मोदी ने कांग्रेस पर तुष्टिकरण और गीत के साथ अन्याय करने का आरोप लगाया. जबकि विपक्ष ने इसे असली मुद्दों से ध्यान भटकाने की कोशिश बताया.

लोकसभा में सोमवार को वंदे मातरम के 150 साल पूरे होने पर शुरू हुई चर्चा अचानक सियासी टकराव में बदल गई. इसकी शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की और उन्होंने इतिहास के कई पुराने पन्ने खोलते हुए कांग्रेस पर गंभीर आरोप लगाए. वहीं विपक्ष ने भी पूरे दम के साथ जवाब दिया और कहा कि सरकार जरूरी मुद्दों से ध्यान भटका रही है.
वंदे मातरम के साथ अन्याय
पीएम मोदी ने कहा कि नई पीढ़ी को यह जानना चाहिए कि आखिर किन हालात में वंदे मातरम के साथ विश्वासघात हुआ. उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने मुस्लिम लीग के डर से वंदे भारत का अपमान किया है. पीएम ने दावा किया कि साल 1937 में मोहम्मद अली जिन्ना ने इसके खिलाफ अभियान चलाया था और जवाहरलाल नेहरू ने उसी समय इसकी पड़ताल शुरू कर दी थी.
पीएम मोदी के मुताबिक नेहरू ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस को चिट्ठी लिखी और कहा कि ‘आनंद मठ’ की पृष्ठभूमि मुसलमानों को भड़का सकती है. इसके बाद कांग्रेस कार्यसमिति ने 26 अक्टूबर को बैठक बुलाकर गीत के उपयोग की समीक्षा का फैसला लिया. पीएम का आरोप था कि कांग्रेस मुस्लिम लीग के दबाव में झुक गई और तुष्टिकरण की राजनीति की वजह से ‘वंदे मातरम’ के हिस्से कर दिए गए.
लोकसभा में अपने भाषण के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने गांधी के लेख का भी हवाला दिया, जिसमें बापू ने 1905 में ‘वंदे मातरम’ को लगभग राष्ट्रीय गीत जैसा लोकप्रिय बताया था. उन्होंने सवाल उठाया कि जब गांधी इसे देश का एंथम मानते थे तो बाद में इसे लेकर इतनी हिचक क्यों दिखाई गई?
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मोदी ने इमरजेंसी का जिक्र करते हुए कहा कि जब गीत 100 साल का हुआ था तब देश पर काला कालखंड छाया हुआ था. उन्होंने कहा कि 150वीं जयंती देश को इस गौरव को फिर से स्थापित करने का मौका देती है.
विपक्ष ने पलटवार किया
वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस, एआईएमआईएम और अन्य दलों ने मोदी के आरोपों को खारिज करते हुए सरकार पर हमला बोला. प्रियंका गांधी ने कहा कि सरकार बेरोजगारी, महंगाई, पेपर लीक, आरक्षण और महिलाओं की सुरक्षा जैसे असल मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए वंदे मातरम पर बहस करा रही है. उन्होंने यह भी कहा कि नेहरू ने जितने साल जेल में बिताए उतने साल मोदी प्रधानमंत्री रहे हैं.
इसके अलावा प्रियंका ने नेहरू की उपलब्धियों ISRO, DRDO, IIT, AIIMS, बड़े उद्योगों का जिक्र करते हुए कहा कि नेहरू ने देश को आगे बढ़ाने की बुनियाद रखी थी.
असदुद्दीन ओवैसी ने पीएम के इन आरोपों का जवाब देते हुए कहा कि किसी पर वंदे मातरम गाने का दबाव डालना संविधान के खिलाफ है. उन्होंने कहा, 'हमारे संविधान की शुरुआत 'हम भारत के लोग' से होती है, भारत माता से नहीं. मुस्लिम होने के नाते मैं अल्लाह के अलावा किसी को नहीं मानता और यह मेरा संवैधानिक अधिकार है.'
वहीं गौरव गोगोई ने भी कहा कि कांग्रेस ही वह पार्टी है जिसने संविधान सभा में वंदे मातरम को राष्ट्रीय गीत का दर्जा दिलाया. उन्होंने गिनाया कि राजेंद्र प्रसाद, राजगोपालाचारी, मौलाना आजाद सहित कई नेताओं ने इसका समर्थन किया था. इतना ही नहीं गोगोई ने ये भी आरोप लगाया कि पीएम मोदी ने देश की सुरक्षा और हालिया धमाकों जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर एक शब्द नहीं कहा.
कांग्रेस का आरएसएस पर हमला
संसद के बाहर प्रमोद तिवारी ने पूछा कि जब देश भारत छोड़ो आंदोलन चला रहा था तब आरएसएस अंग्रेजों की फौज में भर्ती होने की अपील क्यों कर रहा था. उन्होंने पूछा कि क्या मोदी इस पर माफी मांगेंगे.
कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने कहा कि इतिहास में कभी आरएसएस ने इस गीत के लिए संघर्ष नहीं किया, जबकि कांग्रेसी सड़क पर लाठियां खाते थे. उन्होंने कहा कि नेहरू ने वैज्ञानिक सोच से देश को आत्मनिर्भर बनाया, जिसे आज भी देश याद करता है.
क्या है वंदे मातरम का इतिहास
वंदे मातरम तो बंकिम चंद्र चटर्जी ने 1875 में बांग्ला और संस्कृत के मिश्रण में लिखा था और बाद में अपनी ‘आनंदमठ’ (1885) में शामिल किया. दिलचस्प बात ये है कि इस गीत में दिखाए गए प्रतीक, प्रकृति और दृश्य पूरी तरह बंगाल की धरती से प्रेरित हैं ठीक उसी जमाने की, जब बंगाल प्रांत में ओडिशा और बिहार भी शामिल थे.
अरबिंदो घोष ने जब इसका अनुवाद किया तो इसे 'बंगाल का राष्ट्रगीत' कहा. रवींद्रनाथ टैगोर ने इसकी धुन बनाई, और 1905 में बंगाल विभाजन के खिलाफ आंदोलन ने इस गीत को ऐसा हथियार बना दिया कि वंदे मातरम का नारा आग की तरह पूरे प्रदेश और फिर देशभर में फैल गया.
अंग्रेजों द्वारा बारीसाल अधिवेशन पर वंदे मातरम गाने पर हमला करने के बाद यह गीत लोगों के भीतर गुस्से और एकजुटता की पहचान बन गया. भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, बिस्मिल और अशफाकुल्लाह खान जैसे क्रांतिकारियों ने भी इसे अपने संघर्ष का हिस्सा बनाया और यह नारा साझे राष्ट्रवाद का मंत्र बन गया, ठीक वैसे ही जैसे इंकलाब जिंदाबाद’. लेकिन जैसे-जैसे स्वतंत्रता आंदोलन आगे बढ़ा इस गीत के कुछ हिस्सों पर धार्मिक झुकाव के आरोप भी उठने लगे. साल 1937 में कांग्रेस ने गांधी, नेहरू, मौलाना आजाद और सुभाष चंद्र बोस को शामिल करते हुए एक समिति बनाई, जिसने सभी समुदायों से आपत्तियां मांगीं.
सिर्फ मुसलमान नहीं, बल्कि सिख, ईसाई, जैन और बौद्ध संगठनों ने भी कहा कि गीत के कुछ हिस्से राष्ट्रवाद को एक धर्म के संदर्भ में पेश करते हैं. समझौता यह निकला कि केवल शुरुआती दो अंतरे गाए जाएंगे, क्योंकि उनमें धार्मिक तत्व नहीं थे. इस बीच आरएसएस और हिंदू महासभा पूरे गीत को अपनाने की मांग करते रहे जबकि मुस्लिम लीग ने पूरे गीत का विरोध किया. इस तरह ‘वंदे मातरम’ एक ओर आजादी के आंदोलन की आवाजा बना तो दूसरी ओर देश के इतिहास में बहस और मतभेद का हिस्सा भी रहा.
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