अरावली पर सुप्रीम कोर्ट सख्त: अब तय होगी असली परिभाषा, मगर क्या कटती पहाड़ियां बच पाएंगी?
सुप्रीम कोर्ट ने अरावली की एक समान परिभाषा तय करने के लिए केंद्र से जवाब मांगते हुए एक्सपर्ट कमेटी बनाई है ताकि खनन और दोहन पर लगाम लगाई जा सके, लेकिन हाईवे और निर्माण कार्यों की अंधी दौड़ के बीच बड़ा सवाल यही है कि क्या यह कदम सच में अरावली की पहाड़ियों को बचा पाएगा.

देश की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखला अरावली एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट के निशाने पर है. बढ़ते खनन, हाईवे प्रोजेक्ट और तेज रफ्तार निर्माण ने इस पहाड़ी पट्टी को जिस कगार पर ला खड़ा किया है, उसे देखते हुए अदालत ने केंद्र सरकार से बड़ा सवाल पूछ लिया है आखिर अरावली है क्या?
परिभाषा ही उलझन की जड़
कोर्ट ने साफ कहा है कि अलग-अलग राज्यों में अरावली की अलग परिभाषा होने की वजह से इसका फायदा उठाकर कहीं कानूनी तो कहीं गैरकानूनी खनन चल रहा है. अब अदालत चाहती है कि पूरे देश के लिए अरावली की एक ही परिभाषा तय हो, ताकि दोहन पर लगाम लगाई जा सके. इसके लिए एक एक्सपर्ट कमेटी भी बनाई गई है और 21 जनवरी को अगली सुनवाई में खनन की नई दिशा तय हो सकती है.
हाईवे बने अरावली के सबसे बड़े दुश्मन
राजस्थान Tak की रिपोर्ट बताती है कि दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे और दूसरी फोरलेन सड़कों के लिए जिस गिट्टी और रोड़ी की जरूरत पड़ रही है, उसका बड़ा हिस्सा अरावली से ही आ रहा है. यानी एक तरफ मंचों से ‘सेव अरावली’ के नारे लगते हैं, दूसरी तरफ विकास की दौड़ में वही पहाड़ियां काटी जा रही हैं. दिल्ली-एनसीआर में फैलता कंक्रीट का जंगल भी अरावली के अस्तित्व के लिए खतरा बन चुका है.
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सरकार पर कई मोर्चों से घेराबंदी
रिपोर्ट में सिर्फ अरावली ही नहीं बल्कि भजनलाल सरकार को दूसरे मुद्दों पर भी कटघरे में खड़ा किया गया है. मध्य प्रदेश के व्यापम घोटाले में हुई सजाओं का जिक्र करते हुए सवाल उठाया गया है कि क्या राजस्थान में पेपर लीक करने वालों को भी कभी ऐसी ही सख्त सजा मिलेगी. साथ ही, निकायों में चतुर्थ श्रेणी की भर्तियां संविदा और डेपुटेशन से करने के फैसले को बेरोजगार युवाओं के साथ अन्याय बताया गया है.
सियासत में भी हलचल
राजस्थान की राजनीति में भी हलचल कम नहीं रही. कांग्रेस स्थापना दिवस पर पार्टी दफ्तर में सन्नाटा पसरा दिखा, जहां 56 में से सिर्फ 5 विधायक ही पहुंचे. वहीं बांसवाड़ा में एक समीक्षा बैठक के दौरान सांसद मन्नालाल रावत और बाप पार्टी के विधायकों के बीच तीखी नोकझोंक ने माहौल गर्मा दिया.
बड़ा सवाल अब भी कायम
सुप्रीम कोर्ट की सख्ती से उम्मीद जरूर जगी है लेकिन सवाल यही है क्या सिर्फ परिभाषा तय कर देने से अरावली की पहाड़ियां बच जाएंगी? या फिर विकास की अंधी रफ्तार यूं ही इस ऐतिहासिक धरोहर को निगलती रहेगी? जवाब शायद आने वाली सुनवाइयों में मिलेगा.
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