Bihar Election Ground report: तेजस्वी यादव का क्या होगा, सरकारी नौकरी का वादा दिलाएगा जीत या 'जंगल राज' भारी पड़ेगा?
बिहार चुनाव में तेजस्वी यादव के सामने सबसे बड़ा सवाल- क्या सरकारी नौकरी का वादा उन्हें जीत दिलाएगा या 'जंगल राज' का मुद्दा भारी पड़ेगा? दरभंगा और मुजफ्फरपुर की ग्राउंड रिपोर्ट में जनता की राय ने साफ किया कि चुनावी माहौल में भावनाएं और पुराने दौर की यादें दोनों कितने अहम हैं.

दरभंगा में तेजस्वी यादव को सुनने आए बलदेव ने कहा कि “जब जंगल राज था तो हमारे नेता लालू प्रसाद यादव थे… मुसहरनी की बेटी एमपी बनी, डोम का बेटा मंत्री बना. दरभंगा के मोहन राम मंत्री बने…”. पर मुजफ्फरपुर में मिले एक दूसरे युवा नंदन के लिए जंगलराज के मायने अलग हैं. वो कहते हैं, 'जंगलराज? हम वो समय देख चुके हैं. वो एक मुश्किल दौर था जब मुजफ्फरपुर में अपहरण, लूटपाट और अशांति आम बात थी. मुझे कर्फ्यू और डर याद है - वो समय बहुत अलग था.”

जंगल राज बिहार विधानसभा चुनाव प्रचार में वापस मुद्दा बन गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हर भाषण में याद दिलाते हैं कि 2005 तक बिहार में कानून का राज नहीं था जबकि महागठबंधन से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी प्रसाद यादव इसका जवाब देते हैं. दरभंगा में भाषण के आख़िर में उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि कोई अपना हो या पराया, जो अपराध करेगा वो जेल जाएगा.
जंगल राज आखिर है क्या?
NDA 1990 से 2005 तक लालू प्रसाद यादव और उनकी पत्नी राबड़ी देवी के शासनकाल को जंगलराज कहता है. जंगल राज शब्द अपराध और भ्रष्टाचार से जोड़ा जाता है. पटना हाईकोर्ट ने पटना नगर निगम के कामकाज को लेकर ‘जंगलराज’ कहा था उसी टिप्पणी को आज भी विपक्ष इस्तेमाल कर रहा है. उस दौर में कानून व्यवस्था की स्थिति ख़राब थी. लालू प्रसाद यादव को चारा घोटाला करने के आरोप में जेल जाना पड़ा था तो उन्होंने अपनी पत्नी को मुख्यमंत्री बना दिया था. सामाजिक उथलपुथल का दौर था. मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने के बाद पिछड़े वर्गों को आरक्षण मिला. बिहार की राजनीति में अगड़ों का दबदबा कम हुआ.
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1990 के बाद से बिहार में कोई सवर्ण मुख्यमंत्री नहीं बना है. बीजेपी भी नीतीश कुमार के बिना चुनाव नहीं जीत सकती है. यह बदलाव लालू प्रसाद यादव के कारण हुआ है. लेकिन लालू यादव धीरे-धीरे दलितों-पिछड़ों की बजाय मुस्लिम यादव (MY) के नेता बनकर रह गए. उनके बेटे तेजस्वी इसी जनाधार को फिर से बढ़ाने में लगे हुए हैं.
जो राष्ट्रीय जनता दल की ताक़त है वही उसकी कमज़ोरी भी है. यादव मुस्लिम मिलकर 32% वोटर हैं लेकिन दूसरी तरफ़ NDA अगड़ों, अन्य पिछड़े वर्गों और दलितों को गोल बंद कर लेता है. यह फ़ार्मूला 2020 में भी उसे मामूली अंतर से जीत दिला गया और 2024 के लोकसभा में भी.
2024 के लोकसभा चुनावों में महागठबंधन की तुलना में एनडीए को करीब 8 फीसदी वोट ज्यादा मिले थे. तेजस्वी यादव को चुनाव जीतना है तो उन्हें ये अंतर पाटना होगा. उन्हें MY यानी मुस्लिम-यादव के अलावा नए वोट जोड़ने होंगे.
इंडिया टुडे के कंसल्टिंग एडिटर राजदीप सरदेसाई ने हाल में न्यूज Tak पर हमारे वीकली शो 'साप्ताहिक सभा' में बातचीत के दौरान कहा था कि तेजस्वी ने यादव-मुस्लिमों के अलावा दूसरी जातियों को भी टिकट दिए हैं. पर तेजस्वी को चुनाव जीतना है तो उन्हें महागठबंधन के वोट को 40 फीसदी पार ले जाना होगा.
इस बार महागठबंधन को मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के मल्लाह वोट ( बिहार में 2.6 फीसदी), आईपी गुप्ता की इंडियन इंक्लूसिव पार्टी ( IPP) के पान वोट (1.7 फीसदी) और कांग्रेस की वजह से दलितों में रविदासों (5.6 फीसदी) के वोट जुड़ने की उम्मीद है. इंडियन एक्सप्रेस के संतोष सिंह भी कहते हैं कि तेजस्वी ने अपना सामाजिक आधार बेहतर किया है.
जंगल राज से मुक्ति पाने के लिए प्रचार से लालू प्रसाद यादव की फ़ोटो भी राष्ट्रीय जनता दल ने हटा दी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाषण में यह मुद्दा भी उठाया. इस बीच लालू प्रसाद यादव सोमवार को दानापुर में प्रचार के लिए उतरे भी थे. फिर भी उनकी फ़ोटो कम ही दिखाई देती है. इसके बजाय तेजस्वी का ज़ोर नौकरी पर है. 2020 में उन्होंने 10 लाख सरकारी नौकरियों का वादा किया था तब लगा था कि वो चुनाव जीत जाएंगे. उस समय भी नीतीश कुमार ने पूछा था कि नौकरियां कहां से आएंगी?
तेजस्वी यादव 2022 में जब नीतीश कुमार सरकार में शामिल हुए तब उस सरकार ने पांच लाख नौकरी दी. इस बार उनका वादा हर घर में सरकारी नौकरी देने का है. मतलब दो करोड़ से ज़्यादा नौकरी. अभी बिहार में मात्र 25 लाख सरकारी नौकरी है. नौकरी का वादा पूरा करने के लिए सालाना खर्च 9 लाख करोड़ रुपये तक आ सकता है जबकि अभी बिहार का बजट ही 3 लाख करोड़ रुपये है. तेजस्वी के समर्थकों को हालांकि उनके वादे पर भरोसा है. दरभंगा रैली में उन्हें सबसे ज़्यादा रिस्पांस नौकरी की बात पर मिला.
दरभंगा रैली में पहुंचे युवा भी कहते हैं कि रोज़गार सबसे बड़ा मुद्दा है.

बिहार NDA के 20 साल के शासन के बाद भी देश का सबसे गरीब राज्य है. बिहार में प्रति व्यक्ति आय 66 हज़ार रुपये है जबकि देश की 2.30 लाख रुपये. मतलब देश की प्रति व्यक्ति आय ₹100 है तो बिहार की ₹28 है. बिहार अगर अलग देश होता तो प्रति व्यक्ति आय के हिसाब से दुनिया के 10 सबसे गरीब देशों में शामिल होता. फिर भी चुनाव में चर्चा जाति और जंगल राज की हो रही है.

मोकामा में चुनाव प्रचार के दौरान दिनदहाड़े जन सुराज समर्थक दुलार चंद यादव की हत्या बताती है कि हालात अभी भी बहुत बेहतर नहीं हैं. आंकड़े भी यही कहते हैं. NCRB के आंकड़ों अनुसार बिहार में पिछले दस सालों में अपराध बढ़े हैं. हत्या जैसे मामलों में बिहार पूरे देश में नंबर 2 पर है. गंभीर अपराधों में टॉप 5 में शामिल है. हालांकि प्रति लाख आबादी पर दूसरे राज्यों की तुलना में बिहार में अपराध कम है.

तेजस्वी यादव हर घर में सरकारी नौकरी का वादा कर चुनाव जीतना चाहते हैं. पर अभी भी उनके राह की सबसे बड़ी अड़चन है जंगल राज की इमेज. NDA बाक़ी समुदायों को इसका डर दिखाता है. ये डर कितना काम करता है यही चुनाव का नतीजा तय करेगा. यह डर दूसरे MY में से महिलाओं (M) को NDA की तरफ़ आकर्षित करता है जबकि युवा (Y) वोटरों में इस बार प्रशांत किशोर की जन सुराज की भी दावेदारी है.
(बिहार विधानसभा चुनाव पर News Tak की इस स्पेशल ग्राउंड रिपोर्ट सिरीज की अगली किस्त में जानिए कि इस चुनाव में प्रशांत किशोर का क्या होगा? तबतक बिहारी की सारी सियासी खबरें पढ़ते रहिए www.newstak.in/elections/assembly-chunav/bihar पर और बने रहिए हमारे साथ).
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