gold-silver price today: ग्लोबल मार्केट में सुस्ती के बावजूद शादी के सीजन में सोने-चांदी ने भारत में दिखाई चमक
ग्लोबल मार्केट में हल्की-सी हवा चली, और सोना-चांदी जैसी धांसू कमोडिटीज ने तुरंत रिएक्ट कर दिया, लेकिन असली खेल तो भारत में चल रहा है, जहां शादी का सीजन और निवेशकों का जोश मिलकर बुलियन मार्केट को नई ऊंचाइयों पर ले जा रहा है.

27 नवंबर को अंतरराष्ट्रीय बाजारों में गोल्ड और सिल्वर में हल्की गिरावट देखी गई. पिछली सत्र की तेज रैली के बाद ट्रेडर्स ने प्रॉफिट बुकिंग शुरू की, जिसकी वजह से स्पॉट गोल्ड 0.5% गिरकर 4,145.08 डॉलर प्रति औंस और सिल्वर 0.9% फिसलकर 52.89 डॉलर प्रति औंस पर बंद हुई. लेकिन ये गिरावट ज़्यादा मायने नहीं रखती, क्योंकि दिसंबर में यूएस फेड की संभावित दर कटौती की उम्मीदें अभी भी मजबूत है. ट्रेजरी यील्ड्स एक महीने के निचले स्तर पर है और ऐसे माहौल में गोल्ड जैसे नॉन-यील्डिंग एसेट्स को सपोर्ट मिलता है.
फेडरल रिजर्व के मिले-जुले बयानों से निवेशक फिलहाल रुककर देख रहे हैं. गोल्ड सिल्वर सेंट्रल के ब्रायन लैन का कहना है कि फेड का अगला कदम साफ नहीं है, इसलिए गोल्ड अभी कंसॉलिडेशन मोड में है, लेकिन कुल मिलाकर सेफ-हेवन खरीदारी का पक्ष मजबूत है. अब नजरें आने वाले अमेरिकी आर्थिक आंकड़ों पर टिकी हैं.
भारत की बात करें तो यहां घरेलू मांग ग्लोबल उतार-चढ़ाव को संतुलित कर रही है. 24 कैरेट सोना करीब 12,775 रुपये प्रति ग्राम और चांदी 173 रुपये प्रति ग्राम के आसपास ट्रेड कर रही है. शादी के पीक सीजन में ज्वेलरी खरीदारी तेज है और निवेशक भी सोने-चांदी में अच्छी दिलचस्पी दिखा रहे हैं.
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इंडियन बुलियन एंड ज्वेलर्स एसोसिएशन की वाइस-प्रेसिडेंट अक्षा कम्बोज का कहना है कि मॉनेटरी ईजिंग की उम्मीदों से गोल्ड निवेशकों का पसंदीदा हेज बना हुआ है, जबकि चांदी को इंडस्ट्रियल डिमांड और कम उपलब्धता का फायदा मिल रहा है.
सबसे बड़ी खबर ये है कि भारत के गोल्ड और सिल्वर म्यूचुअल फंड्स का कुल एसेट्स 1 लाख करोड़ रुपये का आंकड़ा पार कर चुका है. ग्लोबल बाजार में बढ़ती अनिश्चितता के बीच निवेशक सुरक्षित और सप्लाई-सीमित कमोडिटीज की ओर रुख कर रहे हैं. AMFI के सीईओ वेंकट नागेश्वर चलासानी का कहना है कि सिल्वर की इंडस्ट्रियल डिमांड, सेंट्रल बैंकों की लगातार खरीदारी और तेजी से बढ़ते डिमांड-सप्लाई गैप की उम्मीदें प्रेशियस मेटल्स में रुचि को बढ़ा रही हैं.
उन्होंने कहा कि पोर्टफोलियो डाइवर्सिफिकेशन में कमोडिटीज की भूमिका और भी अहम हो गई है. उनके मुताबिक, गोल्ड में सेंट्रल बैंकों की खरीदारी और ग्लोबल अनिश्चितता मुख्य कारक हैं. वहीं सिल्वर की इंडस्ट्रियल डिमांड अगले 1-2 साल में सप्लाई से तेज बढ़ने की उम्मीद है. पिछले 5-6 महीनों में गोल्ड-सिल्वर फंड्स में बड़ी इनफ्लो आई है, जिससे AUM 1 लाख करोड़ के पार पहुंच गया है.
दोस्तों, ये साफ दिखता है कि भारतीय निवेशक अब पहले से ज्यादा समझदारी से फैसले ले रहे हैं. सोना-चांदी अब सिर्फ ज्वैलरी नहीं, बल्कि पोर्टफोलियो का महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुके हैं. अगर आप भी निवेश की सोच रहे हैं, तो अपने रिस्क प्रोफाइल के हिसाब से सही विकल्प चुनें. मार्केट ऊपर-नीचे होते रहते हैं, लेकिन लंबे समय में सेफ-हेवन एसेट्स अक्सर फायदेमंद साबित होते हैं.










