पत्नी ने छिपाई पीरियड्स न आने की बीमारी…अब कोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला, पत्नी की अपील हुई खारिज

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने विवाह संबंधी एक विवाद में फैमिली कोर्ट के तलाक आदेश को सही ठहराते हुए कहा कि पत्नी का शादी से पहले अपनी मेडिकल कंडीशन छिपाना और पति के साथ वैवाहिक दायित्व पूरा न करना मानसिक क्रूरता माना जाएगा. इसके साथ ही कोर्ट ने पत्नी पर 5 लाख रुपये देने का आदेश भी दिया.

Chhattisgarh Matrimonial dispute case
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छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने विवाह संबंधी एक विवाद में बड़ा फैसला सुनाया है. यहां कोर्ट ने पत्नी की अपील को खारिज करते हुए फैमिली कोर्ट के तलाक संबंधी फैसला को सही ठहराया है. कोर्ट ने अपने फैसले में माना की पत्नी को पीरियड्स न आने की बीमारी (Amenorrhea) छिपाकर शादी करना और विवाह के बाद पति के साथ सामान्य वैवाहिक जीवन के दायित्वों को पूरा न करना मानसिक क्रूरता की कैटेगरी में आता है.

'पत्नी ने छिपाई पीरियड्स नहीं आने की बीमारी'

यह पूरा मामला कांकेर जिले में रहने वाले एक दंपती का है. दंपती की शादी 5 जून 2015 को हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार हुई थी. विवाह के शुरुआती दो महीने तक उनके संबंध सामान्य रहे. लेकिन इसके बाद दोनों के बीच झगड़ा होने लगा. इस बीच पति ने फैमिली कोर्ट में याचिका दायर कर दी. इसमें पति ने आरोप लगाया कि उसकी पत्नी ने शादी से पहले पीरियड्स नहीं आने की बीमारी छिपाया. पति का कहना था कि इस बीमारी का असर उनके वैवाहिक संबंधों और भविष्य की योजनाओं पर पड़ रहा था. इससे वो लगातार मानसिक रूप से परेशान हो रहा था.

ससुराल वालों के प्रति पत्नी का बदला व्यवहार

पति ने का की शादी के शुरुआती कुछ महीनों तक पत्नी का व्यवहार ठीक था, लेकिन इसके बाद पूरी तरह से बदल गया. पति ने आरोप लगाया कि पत्नी ने घर के बुजुर्ग माता-पिता, भाइयों और भाभियों की जिम्मेदारी उठाने से साफ मना कर दिया. इसके अलावा वो अपमानजनक टिप्पणी करना शुरू कर दिया. पति ने कहा कि पत्नी कहती थी कि “क्या अनाथालय खोल रखा है?” पति का यह भी आरोप था कि पत्नी घर के सदस्यों के लिए खाना बनाने तक से इनकार कर देती थी.

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फैमिली कोर्ट ने पति के पक्ष में सुनाया फैसला

पति की याचिका पर फैमिली कोर्ट ने सभी सबूतों और तर्कों पर विचार करने के बाद उनके पक्ष में फैसला सुनाया और तलाक को मंजूरी दे दी थी. फैमिली कोर्ट के इस फैसले को पत्नी ने हाईकोर्ट में अपील दायर करके चुनौती दी. जस्टिस रंजना दुबे और जस्टिस अमितेश कुमार प्रसाद की डिवीजन बेंच ने इस मामले की सुनवाई की. कोर्ट ने पाया कि पति-पत्नी के रिश्ते में अब सुधार की कोई गुंजाइश नहीं बची है. कोर्ट ने कहा कि बीमारी छिपाना और वैवाहिक दायित्वों का सही तरह से निर्वहन न करना मानसिक क्रूरता ही माना जाएगा.

हाईकोर्ट ने बरकरार रखा तलाक, पत्नी को देना होगा 5 लाख

हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के फैसला को सही मानते हुए पत्नी की अपील को खारिज कर दिया. इसके साथ ही कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश दिया. कोर्ट ने कहा कि पत्नी को चार महीने के अंदर पति को पांच लाख रुपए की राशि एकमुश्त स्थायी भरण-पोषण के रूप में देनी होगी.

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