श्याम बेनेगल के बारे में हर कोई नहीं जानता ये बातें, कहां से कहां पहुंच गए?

कीर्ति राजोरा

श्याम बेनेगल ने फिल्मों के अलावा डॉक्युमेंट्री और कॉर्पोरेट फिल्मों में भी अपनी छाप छोड़ी. उन्होंने 1988 में जवाहरलाल नेहरू की किताब से प्रेरित होकर 'भारत एक खोज' नामक 53 एपिसोड की सीरीज बनाई

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Shyam Benegal: हिंदी सिनेमा में पैरलल सिनेमा की नींव रखने वाले श्याम बेनेगल का नाम भारतीय फिल्म इतिहास में हमेशा सम्मान के साथ लिया जाएगा. 14 दिसंबर 1934 को जन्मे बेनेगल ने सिनेमा को एक नई पहचान दी. उन्होंने अपने जीवन और फिल्मों से समाज को आईना दिखाने का काम किया. उनकी सोच दूरदर्शी थी, और उनका जीवन सिद्धांत "भूतकाल में नहीं जीना" उनकी रचनाओं में झलकता था.  

अंकुर से जुबैदा तक: फिल्मों का सफर  

1974 में आई उनकी फिल्म अंकुर ने उन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई. सामंतवाद और यौन उत्पीड़न जैसे गंभीर मुद्दों को उन्होंने बड़ी संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत किया. मंथन, भूमिका, निशांत और सरदारी बेगम जैसी फिल्मों के जरिए उन्होंने सामाजिक मुद्दों को फिल्मी पर्दे पर उतारा. मंथन खासतौर पर डेयरी आंदोलन पर आधारित थी और दर्शकों के योगदान से बनी थी. करिश्मा कपूर की जुबैदा भी उनकी यादगार फिल्मों में से एक है.  

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'भारत एक खोज' और डॉक्युमेंट्री का योगदान  

श्याम बेनेगल ने फिल्मों के अलावा डॉक्युमेंट्री और कॉर्पोरेट फिल्मों में भी अपनी छाप छोड़ी. उन्होंने 1988 में जवाहरलाल नेहरू की किताब से प्रेरित होकर 'भारत एक खोज' नामक 53 एपिसोड की सीरीज बनाई. यह शो भारतीय इतिहास को समझने का बेहतरीन माध्यम बना. उन्होंने ओम पुरी और अन्य दिग्गज कलाकारों के साथ इस सीरीज को उत्कृष्ट बनाया.  

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व्यक्तिगत जीवन और विरासत  

बेनेगल का सिनेमा उनके परिवार और जीवन अनुभवों से प्रभावित था. उन्होंने 12 साल की उम्र में अपने पिता के कैमरे से पहली फिल्म बनाई थी. सेट पर उनकी सख्त कार्यशैली और अनुशासन के लिए वह मशहूर थे. उनके साथ काम करने वाले कलाकार उनके निर्देशों का पालन पूरी सख्ती से करते थे. शबाना आजमी, स्मिता पाटिल, नसीरुद्दीन शाह जैसे दिग्गज कलाकारों को उन्होंने सिनेमा जगत में पहचान दिलाई.  

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श्याम बेनेगल ने भारतीय सिनेमा को नई दिशा दी और समाज को सोचने पर मजबूर किया. उनकी कला और योगदान को भुलाया नहीं जा सकता. 90 वर्ष की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली और उनके जाने से भारतीय फिल्म इंडस्ट्री ने एक अमूल्य रत्न खो दिया. उनकी विरासत हमेशा सिनेमा प्रेमियों के दिलों में जीवित रहेगी.

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