बिहार बंद में कन्हैया को ट्रक पर क्यों नहीं चढ़ने दिया गया? सामने आई पूरी कहानी

माहिरा गौहर

Kanhaiya Kumar Truck Controversy: बिहार बंद के दौरान राहुल गांधी के ट्रक पर कन्हैया कुमार को चढ़ने से क्यों रोका गया? सियासी वजह या सुरक्षा प्रोटोकॉल? जानिए इस पूरे विवाद की अंदरूनी कहानी.

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बिहार बंद में कन्हैया कुमार को ट्रक पर चढ़ने से रोका गया
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Kanhaiya Kumar Truck Controversy: 9 जुलाई को महागठबंधन की तरफ से बिहार बंद बुलाया गया था. इसकी अगुआई करने खुद लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी पटना पहुंचे. बिहार मतदाता पुनरीक्षण को वापस लेने की मांग करते हुए महागठबंधन के सभी नेता पटना की सड़कों पर विरोध-प्रदर्शन करने उतरे.

इसी दौरान महागठबंधन का नेतृत्व कर रहे सभी नेता एक ट्रक पर सवार हुए पर कन्हैया कुमार और पप्पू यादव को सुरक्षाकर्मियों ने गाड़ी पर चढ़ने से रोक दिया . ये वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ , एनडीए सरकार के कई नेताओं ने इसको लेकर कांग्रेस पर तंज कसा और चर्चा होने लगी की तेजस्वी यादव की वजह कन्हैया ट्रक की जगह सड़क पर रह गए.

जनसुराज के सूत्रधार प्रशांत किशोर ने तो ये तक दावा कर दिया कि कांग्रेस ने आरजेडी के दबाव में कन्हैया को राहुल के साथ नहीं आने दिया. पीके ने अपने एक बयान में कहा "बिहार में कांग्रेस के जितने भी नेता हैं, उनमें कन्हैया कुमार सबसे प्रतिभाशाली नेताओं में से एक हैं. इसलिए आरजेडी का नेतृत्व कन्हैया कुमार जैसे काबिल नेताओं से डरता है. आरजेडी नेतृत्व ने ही कन्हैया को दूर रखने के लिए कहा होगा. बिहार की राजनीति में आग की तरह फैल रहे इस चर्चे पर कन्हैया ने खुद खुलासा किया और बताया  कि उन्हें ट्रक पर चढ़ने से किसने रोका था. 

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कन्हैया बोले कोई विवाद नहीं 

दरअसल कन्हैया ने एक न्यूज चैनल को इंटरव्यू देते हुए कहा कि "ये मुद्दा नहीं है, ये बिना बात की बात है. आपस में किसी तरह का कोई विवाद नहीं हैं. बिहार के मतदाताओं के मतदान की सुरक्षा के लिए मैं सड़क पर उतरा था, ना की ट्रक पर चढ़ने". इतना ही नहीं कन्हैया ने प्रशांत किशोर द्वारा तेजस्वी को 9वीं फेल बताने पर तेजस्वी की साइड भी ली. कन्हैया ने कहा " लोकतंत्र में नेता वही है जिसको जनता सम्मानित करती है. चुने हुए नेता की योग्यता उनकी डिग्री की आधार पर नहीं देखी जानी चाहिए" .

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तेजस्वी ने कन्हैया को रोके जाने पर क्या कहा 

तेजस्वी यादव से जब एक इंटरव्यू में पूछा गया कि बीजेपी कह रही है तेजस्वी को कन्हैया नहीं पसंद इसलिए उन्हें गाड़ी पर चढ़ने से रोक लिया गया. इस पर तेजस्वी ने कहा " मैंने कब कहा कि कन्हैया और पप्पू उन्हें पसंद नहीं हैं. तेजस्वी ने आगे कहा इन दोनों से कोई भी परेशानी नहीं है. उन्होंने इस मुद्दे को राहुल गांधी के सिक्योरिटी का प्रोटोकॉल भी बताया." लेकिन सवाल अभी भी यह है कि जब उसी गाड़ी पर बिहार में कांग्रेस विधायक दल के नेता शकील अहमद ख़ान, बिहार कांग्रेस यूनिट के पूर्व अध्यक्ष अखिलेश सिंह और मदन मोहन झा मौजूद रह सकते हैं तो राहुल के सबसे खास कन्हैया क्यों नहीं .
 
सूत्र बताते है कि कमिटी की बैठक हुई जिसके अध्यक्ष तेजस्वी यादव थे और उसी में तय किया गया था कि कौन आएगा और कौन नहीं यहां तक की गाड़ी पर सवार होने वालों के लिए एक लिस्ट बनी थी जो सबकी सहमती से बनी थी. 

आरजेडी के शीर्ष नेतृत्व की कन्हैया से तल्खी

आपको बता दें कि 2016 में जेएनयू में एक भाषण देकर सुर्खियों में आए कन्हैया कुमार ने जनता के बीच इतनी पकड़ बना ली थी कि लोग उन्हें अपने नेता के तौर पर देखने लगे थे. उनकी इस लोकप्रियता से प्रभावित हो कर लेफ्ट ने बेगूसराय में कई बड़े चेहरे रहते हुए भी 2019 के लोकसभा  चुनाव में कन्हैया कुमार को उनके गृह जिला बेगूसराय से गिरिराज सिंह के खिलाफ चुनाव मैदान में उतारा. उस वक्त आरजेडी ने गठबंधन के बावजूद बेगूसराय सीट पर तनवीर हसन को अपना उम्मीदवार दे दिया था. नतीजन कन्हैया बीजेपी के गिरिराज सिंह से 4,22,217 मतों से हार गए. 

हार के बाद कन्हैया ने 2021 में कांग्रेस का हाथ थाम लिया. तब अंदाजा लगाया जाने लगा की कन्हैया का कद बिहार में बढ़ेगा, उन्हें बिहार में बड़ी जिम्मेदारी मिलेगी. लेकिन इसका पूरा उल्टा हुआ यानी पार्टी बदली कद नहीं. 2025 विधानसभा चुनाव के नजदीक कन्हैया के सहारे कांग्रेस ने युवाओं को साधने के लिए पलायन रोको, नौकरी दो' पदयात्रा की शुरूआत की, 16 मार्च को शुरू हुई यात्रा 24 दिन चली खुद राहुल गांधी यात्रा में शामिल होने बिहार आए पर पूरी यात्रा में तेजस्वी कहीं नजर नहीं आए. यात्रा के दौरान तेजस्वी और आरजेडी को लेकर मीडिया द्वारा कई बार सवाल पूछे जाने के बावजूद कन्हैया या तो खामोश रहे या बहुत संभलकर बोलते नजर आए. 

अपने ही राज्य में क्यों पराए हुए कन्हैया ? 

कन्हैया कुमार को लेकर सिर्फ आरजेडी ही नहीं बिहार की कांग्रेस यूनिट ने भी स्वीकारता कम दिखती है. कन्हैया कांग्रेस के बड़े नेता और राहुल के खास तो बन गए, पर जमीन पर उनकी मौजूदगी कम दिखी. राजनीतिक सलाहकार मानते हैं कि कन्हैया को तय करना होगा कि उन्हें आसान सफर चुनना है या जमीन पर संघर्ष कर के मास लीडर बनना है. कुछ विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि आरजेडी भी उन्हें तभी स्वीकार करेगी, जब कन्हैया सवर्ण जातियों के वोट गठबंधन के पक्ष में लाने में कामयाब रहेंगे. 

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