भोपाल AIIMS में पहली बार हुआ ऐसा ऑपरेशन, 9 घंटे चले ऑपरेशन के बाद महिला के शरीर में बना दी नई आहार नली!
Bhopal news: एम्स भोपाल के डॉक्टरों ने नया कीर्तिमान स्थापित करते हुए एक जटिल ऑपरेशन को सफलता पूर्वक अंजाम दिया है. एम्स भोपाल में डॉक्टरों की टीम ने नई आहार नली बनाने में सफलता हासिल की है. कुछ समय पहले एक महिला ने अपने घर में टॉयलेट क्लीनर पी लिया था. जिसके कारण उसकी आहार […]
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Bhopal news: एम्स भोपाल के डॉक्टरों ने नया कीर्तिमान स्थापित करते हुए एक जटिल ऑपरेशन को सफलता पूर्वक अंजाम दिया है. एम्स भोपाल में डॉक्टरों की टीम ने नई आहार नली बनाने में सफलता हासिल की है. कुछ समय पहले एक महिला ने अपने घर में टॉयलेट क्लीनर पी लिया था. जिसके कारण उसकी आहार नली (इसोफेगस) गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो गई थी. महिला को पानी तक पीने में दिक्कत हो रही थी. डॉक्टरों की एक टीम ने उसकी बड़ी आँत (कोलोन) के एक हिस्से की सहायता नई आहार नली बनाई गई. नौ घंटे तक चले इस लंबे ऑपरेशन को डॉक्टरों टीम द्वारा सफलतापूर्वक पूरा किया गया.
जानकारी के मुताबिक भोपाल एम्स में एक मामला आया जिसमें महिला ने टॉयलेट क्लीनर पी कर आत्महत्या की कोशिस की थी, लेकिन समय रहते इलाज से वह बच तो गयी लेकिन उसकी आहार नली बुरी तरह से डेमेज हो गयी. करीब 10 महीने से वह न तो कुछ खा पा रही थी और न ही कुछ पी पा रही थी. डॉक्टरों के लिए नई आहार नाल बनाना किसी चुनौती से कम नही थी.
टॉयलेट क्लीनर का असर पेट तक
टॉयलेट क्लीनर पीने के कारण उसकी आहार नली गंभीर रूप से जल गई और उसकी आहार नली पूर्णतः बंद हो गई, इससे उसके पेट पर भी असर पड़ा था. महिला अपने मुंह से कुछ भी निगल नही पा रही थी. यहां तक की वह पानी या अपना लार को निगलने में भी असमर्थ थी. इस स्थिति को निगलने में कठिनाई या डिसफेजिया कहा जाता है. इस दौरान वह जीवित रहने के लिए ट्यूब के जरिए भोजन (फीडिंग जेजुनोस्टोमी) पर ही जीवित थी. इस पूरी प्रक्रिया में तरल भोजन सीधे छोटी आंत्र (स्माल इंटेस्टाइन) में पहुंचाया जाता है.
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महिला ने दस महीनें से कुछ खाया पिया नहीं
एम्स भोपाल में सर्जिकल गैस्ट्रोइंट्रोलॉजी विभाग के डॉ. विशाल गुप्ता और उनकी टीम ने इस सफल ऑपरेशन को अंजाम दिया. डॉ.गुप्ता उन्होंनें बताया कि महिला ने पिछले 10 माह से मुंह के जरिए कुछ भी खाया-पिया नहीं था. नई आहार नली बनाना हमारे और टीम के वास्तव में एक बड़ी चुनौती थी. क्योंकि टॉयलेट क्लीनर के कारण उसकी पूरी इसोफेगस डेमेज हो चुकी थी. क्लीनर का असर उसके पेट पर भी पड़ा. डॉ.गुप्ता ने बताया कि टीम ने महिला की सबसे पहले बड़ी आंत (कोलोन) के एक हिस्से की सहायता नई आहार नली बनाई, जिसे उसके पेट से खींचकर, छाती से होते हुए गले तक लाया गया. इसके अलावा उसके पेट में इंटेस्टाइन के बीच भी रास्ता बनाया गया, इस सर्जरी के बाद जिसे कोलोनिक पुल-अप या ग्रसनी कोलोप्लास्टी (फैरिंगो कोलोप्लास्टी) कहते हैं. महिला अब नली की सहायता के बगैर भी अब खा-पी सकती है.
डाॅक्टर्स की टीम के लिए चुनौती थी
डॉ. विकास गुप्ता, अपर प्राध्यापक एवं ईएनटी के प्रमुख ने बताया कि वास्तव में महिला की बोलने की क्षमता को बचाए रखना चुनौतीपूर्ण था, चूंकि हमने नई आहार नली को उसकी गले में वॉयस बॉक्स के नजदीक जोड़ा है, जो आवाज को नियंत्रित करने तथा इस हिस्से से गुजरने वाले वायु मार्ग को सुरक्षित रखने वाली एक महत्वपूर्ण तंत्रिका है. जिसके कारण ही आज महिला बोलने और खाना बगैरा आसानी से कर सकती है.
नौ घंटे चला ऑपरेशन
इस पूरे ऑपरेशन में करीब नौ घंटे का समय लगा. लंबी तैयारी के साथ डॉक्टरों की टीम ने सफलतापूर्वक ऑपरेशन को अंजाम दिया. इस ऑपरेशन में सर्जिकल गैस्ट्रोइंट्रोलॉजी विभाग के डॉ. विशाल गुप्ता, डॉ. लोकेश अरोरा तथा डॉ. सजय राज, ईएनटी विभाग के डॉ. विकास गुप्ता, डॉ. गणकल्याण, डॉ. राहुल तथा एनेस्थिसिया विभाग की डॉ. शिखा जैन शामिल थीं. मरीज सर्जिकल आईसीयू इंचार्ज डॉ. जेपी शर्मा की निगरानी में लगभग 10 दिन आईसीयू में रही. इसके बाद महिला को जनरल वार्ड में शिफ्ट किया गया. डॉक्टर्स बोले गैर-ब्रांडेड टॉयलेट क्लीनर की बिक्री पर सख्त प्रतिबंध लगना चाहिए. चूंकि कई बार इन पदार्थों का विशेष रूप से बच्चों द्वारा दुर्घटनावश या जानबूझकर जीवन को नुकसान पंहुचाने के उद्देश्य से सेवन करने की आशंका रहती है. ये ऑपरेशन हमारे लिए एक चुनौती से कम नही था.
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