बारहसिंघा पुनर्स्थापना परियोजना के तहत कान्हा से बांधवगढ़ लाई गई विशेष प्रजाति

रावेंद्र शुक्ला

Mp News: प्रदेश में पर्यावरण संतुलन को बनाए रखने के लिए विभिन्न जैव विविधता से जुड़े प्रयास किए जाते रहे हैं. इसी के अंतर्गत आज बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में बारहसिंघा को फिर से बसाने की योजना के दूसरे चरण में कान्हा टाइगर रिजर्व से 18 बारहसिंघा बांधवगढ़ पहुंच रहे हैं. इसके […]

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Special species of deer brought from Kanha to Bandhavgarh under Barasingha Restoration Project
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Mp News: प्रदेश में पर्यावरण संतुलन को बनाए रखने के लिए विभिन्न जैव विविधता से जुड़े प्रयास किए जाते रहे हैं. इसी के अंतर्गत आज बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में बारहसिंघा को फिर से बसाने की योजना के दूसरे चरण में कान्हा टाइगर रिजर्व से 18 बारहसिंघा बांधवगढ़ पहुंच रहे हैं. इसके पहले मार्च के अंतिम सप्ताह में 19 बारहसिंगे लाये गए थे जिन्हें विशेष बाड़े में रखा गया हैं.

बारहसिंघाें के लिए विशेष रूप से बांधवगढ़ नेशनल पार्क के मगधी जोन में पचास हेक्टेयर का बाड़ा तैयार किया गया है. बाड़े की ऊंचाई इतनी रखी गयी है कि बाघ भी उसे फांद न सके. प्रोजेक्ट बारहसिंघा के अंतर्गत जिस प्रजाति को बांधवगढ़ लाया जा रहा है. वह पूरे विश्व में सिर्फ कान्हा टाइगर रिजर्व में पाई जाती है. ये प्रजाति( रुसेवर्स डूर्वासेली ब्रेंडरी) कठोर जमीन पर खुले घास के मैदानों में पाई जाती है, जो मध्यभारत में सिकुड़ कर सिर्फ कान्हा नेशनल पार्क तक सीमित रह गए थे.

गुजरात में मिले 1000 वर्ष पूर्व के अवशेष
बारहसिंघा,हिरण की ही एक जाति है जो उत्तरी और मध्यभारत से लेकर दक्षिण पश्चिम नेपाल तक में पाया जाता था. पाकिस्तान और बांग्लादेश में यह विलुप्त हो चुका है. इसकी सींग में 10-16 शाखाएं होती हैं. जिसकी वजह से इसका नाम बारहसिंघा अर्थात बारह सींग वाला पड़ा. गुजरात में इसके 1000 वर्ष पूर्व के अवशेष मिले हैं. लेकिन पश्चिमी आवास से विलुप्त होकर मध्यभारत में भी इसकी जनसंख्या सिकुड़ कर खतरे की श्रेणी में आ गयी थी. अभी भी यह IUCN (अंतराष्ट्रीय पर्यावरण सरंक्षण संघ) की असुरक्षित जीव की श्रेणी में है.

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 कान्हा किसली में पाई जाती है ये विशेष प्रजाति 
प्रथम चरण में 25 बारहसिंघा को बांधवगढ़ नेशनल पार्क में लाया गये थे. आज इसके दूसरे चरण में 19 और बारासिंघा को लाया जा रहा है. यह बारासिंघा विशिष्ट प्रजाति के हैं जो कि दुनिया में केवल और केवल कान्हा किसली नेशनल पार्क में पाए जाते हैं. इनकी प्रजाति विलुप्ति की कगार पर है इसीलिए इन्हें संरक्षित करने के लिए प्रदेश के विभिन्न सघन वनों में इन्हें बसाने का प्रयास चल रहा है जिससे कि पर्यावरण संतुलन में मदद मिल सके और इनकी प्रजाति बनी रहे. बारहसिंघा प्रोजेक्ट से जुड़े वन विभाग के अधिकारी सुधीर मिश्रा ने बताया कि पहले चरण में लाये गए बारहसिंघा धीरे धीरे बांधवगढ़ के मौसम के अनुकूल अपने आप को ढाल रहे हैं.

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