'मैं राजा नहीं हूं', हाउस वाइफ से बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनते ही खालिदा जिया ने ऐसा क्यों कहा था

Khaleda Zia: खालिदा जिया जिन्होंने एक साधारण गृहिणी से लेकर बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनने तक का सफर तय किया है. आज यानी 30 दिसंबर को 80 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह गईं. तानाशाही के खिलाफ संघर्ष, दो बार सत्ता में वापसी और जेल, बीमारी के लंबे दौर के बावजूद वे हमेशा देश की राजनीति की धड़कन बनी रहीं.

खालिदा जिया
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Khaleda Zia died at the age of 80: 30 दिसंबर को जब दुनिया नए साल की खुशियों की तैयारी में जुटी थी उसी दिन बांग्लादेश के लिए वक्त जैसे थम गया. देश ने अपनी सबसे दमदार महिला आवाज खालिदा जिया को हमेशा के लिए खो दिया. 80 साल की उम्र में ढाका में उनका निधन हुआ और इसके साथ ही खत्म हो गया बांग्लादेश की राजनीति का वह दौर जो संघर्ष, सत्ता, साजिश और साहस से भरा रहा. 

यह महज एक नेता की विदाई नहीं है बल्कि उस कहानी का अंत है जिसमें घर की चार दिवारी में रहने वाली शर्मीली हाउसवाइफ घर से बाहर निकलकर सत्ता के शिखर तक पहुंचती है. सादगी इतनी ज्यादा की पीएम बनते ही उन्होंने सबसे पहले शाही फर्नीचर हटवाया था और कहा था कि वो कोई राज नहीं हैं. 

इस महिला ने न सिर्फ तानाशाही से टकराने का हौसला दिखाया बल्कि जेल की सलाखें देखीं, गंभीर बीमारियों से लड़ीं लेकिन कभी झुकी नहीं. आज खालिदा जिया सिर्फ एक नाम नहीं बल्कि पूरे देश के राजनीतिक इतिहास की धड़कन बनकर याद की जाएंगी. 

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15 साल की उम्र में हुई थी शादी 

बहुत कम लोग जानते हैं कि खालिदा जिया का जन्म 15 अगस्त 1945 को उस वक्त के ब्रिटिश भारत के बंगाल प्रांत के जलपाईगुड़ी में हुआ था जो आज पश्चिम बंगाल का हिस्सा है. महज 15 साल की उम्र में उनकी शादी जियाउर रहमान से हुई जो तब एक युवा सैन्य अधिकारी थे.

1971 में जियाउर रहमान ने पश्चिमी पाकिस्तान के खिलाफ बगावत कर बांग्लादेश की आजादी का ऐलान किया. बाद में 1977 में सेना के सत्ता संभालने के बाद वे राष्ट्रपति बने. साल 1981 में चटगांव में सेना के कुछ अधिकारियों ने उनकी हत्या कर दी. उस वक्त खालिदा जिया सिर्फ 36 साल की थीं और तब तक राजनीति से दूर, एक शांत गृहिणी के रूप में जानी जाती थीं.

अडिग नेता की रही छवि

पति की मौत के बाद खालिदा जिया ने बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) की सदस्यता ली और जल्द ही उसकी उपाध्यक्ष बन गईं. उसी साल यानी 1982 में देश में नौ साल लंबा सैन्य शासन शुरू हो गया. इस दौर में उन्होंने सेना के शासन के खिलाफ खुलकर मोर्चा लिया सरकारी चुनावों का बहिष्कार किया और कई बार नजरबंद भी रहीं. इसी वजह से लोगों के बीच उनकी छवि एक 'अडिग नेता' की बन गई.

पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं

1990 में सैन्य तख्तापलट के बाद हुए चुनावों में BNP सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और 1991 में खालिदा जिया बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं. इतना ही नहीं खालिदा किसी मुस्लिम देश की चुनी हुई दूसरी महिला नेता थीं.

अपने पहले कार्यकाल में उन्होंने प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त और अनिवार्य बनाया. हालांकि साल 1996 में वे शेख हसीना की अवामी लीग से चुनाव हार गईं.

विवादों से चोली दामन का रिश्ता 

साल 2001 में उन्होंने इस्लामी दलों के साथ गठबंधन कर दोबारा सत्ता हासिल की. इस गठबंधन की वजह से उन्हें खूब आलोचनाओं का सामना करना पड़ा. दूसरे कार्यकाल में उन्होंने महिलाओं के लिए संसद में आरक्षण और लड़कियों की शिक्षा जैसे कदम उठाए. खासबात ये है कि उन्होंने ये फैसले ऐसे वक्त में लिया था जब देश की करीब 70% महिलाएं निरक्षर थीं.

जेल, बीमारी और राजनीति से दूरी

2006 में कार्यकाल खत्म होते ही देश में दंगे भड़क उठे. सेना समर्थित अंतरिम सरकार बनी और भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कार्रवाई शुरू हुई. खालिदा जिया और उनकी कॉम्पटीटर शेख हसीना दोनों को ही गिरफ्तार कर लिया गया.

साल 2018 में उन्हें एक अनाथालय ट्रस्ट से जुड़े मामले में करीब ढाई लाख डॉलर के गबन का दोषी ठहराया गया और पांच साल की जेल हुई. वे ढाका की पुरानी जेल में अकेली कैदी थीं. हालांकि उन्होंने हमेशा इसे राजनीतिक साजिश बताया है. बाद में गठिया और डायबिटीज जैसी बीमारियों के चलते उन्हें अस्पताल और फिर घर भेज दिया गया.

2024 के बाद बदला माहौल

2024 में शेख हसीना सरकार जनाक्रोश के चलते सत्ता से बाहर हो गईं और भारत चली गईं. नई अंतरिम सरकार ने उनकी रिहाई का आदेश दिया और जनवरी 2025 में कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया. ट्रैवल को लेकर लगे प्रतिबंध हटे और वे इलाज के लिए लंदन जा सकीं. हालांकि तब तक वे लिवर सिरोसिस और किडनी खराब होने जैसी गंभीर बीमारियों से जूझ रही थीं. 

खालिदा का कई महीनों तक इलाज चलता रहा लेकिन उनकी सेहत बिगड़ती गई और 30 दिसंबर की सुबह ढाका में उनका निधन हो गया. उनके बड़े बेटे तारीक रहमान जो सालों से लंदन में रह रहे है कुछ दिन पहले ही स्वदेश लौटे थे. लोगों को उम्मीद थी वो बांग्लादेश की राजनीति का अगला बड़ा चेहरा बनेंगे. बता दें कि खालिदा के दो बेटे हैं लेकिन उनके छोटे बेटे कोको की मौत 2015 में हो चुकी थी.

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