कौन हैं ये प्रेमानंद जी महाराज जिनसे सत्संग करने पहुंचे RSS चीफ मोहन भागवत?

देवराज गौर

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने वृंदावन में प्रेमानंद महाराज से मुलाकात की.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने वृंदावन में प्रेमानंद महाराज से मुलाकात की.
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RSS Chief Mohan Bhagwat meets Premanand Maharaj in Vrindavan: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख डॉ. मोहन भागवत और प्रेमानंद जी महाराज की मुलाकात की जबर्दस्त चर्चा है. इस मुलाकात के अलग-अलग क्लिप सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं. इन वीडियो क्लिप्स में देखा जा सकता है कि प्रेमानंद महाराज और संघ प्रमुख के बीच कैसी बातचीत हो रही है. अधिकतर जगहों पर प्रेमानंद महाराज ही बोलते नजर आ रहे हैं, मोहन भागवत उन्हें सुन रहे हैं.

यह मुलाकात बुधवार, 29 नवंबर को वृंदावन में हुई है. संघ प्रमुख मोहन भागवत ने प्रेमानंद जी महाराज को माला पहना उनका सम्मान किया. प्रेमानंद जी महाराज के आश्रम के अनुयायियों ने मोहन भागवत का परिचय प्रेमानंद महाराज को दिया. उसके बाद मोहन भागवत कहते नजर आ रहे हैं कि ‘महाराज जी आपके दर्शन करने थे.’

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कौन हैं ये प्रेमानंद महाराज, जो अक्सर अपने सत्संगों की वजह से चर्चा में रहते हैं?

प्रेमानंद जी महाराज अपने सत्संग के लिए विख्यात हैं. वह खुद को राधारानी का परमभक्त बताते हैं. उनके वीडियोज सोशल मीडिया पर अक्सर वायरल रहते हैं. वह धर्म, चरित्र, व्यक्तित्व निर्माण और ब्रह्मचर्य पर अपना सत्संग करते हैं. इनके सत्संग में कई जाने पहचाने लोग और सेलिब्रिटीज शामिल हो चुके हैं. कुछ महीने पहले क्रिकेटर विराट कोहली अपनी पत्नी अभिनेत्री अनुष्का शर्मा और बेटी के साथ प्रेमानंद महाराज से मिलने पहुंचे थे. उनकी मुलाकात के वीडियो ने भी सोशल मीडिया पर काफी सुर्खियां बटोरी थीं. पॉप सिंगर बी प्राक भी प्रेमानंद महाराज से आशीर्वाद ले चुके हैं.

प्रेमानंद महाराज ने महज 13 साल की उम्र में लिया संन्यास

प्रेमानंद महाराज की वेबसाइट वृंदावनरसमहिमा.कॉम के मुताबिक प्रेमानंद जी महाराज ने 13 साल की उम्र में संन्यास का मार्ग चुना था. वेबसाइट के मुताबिक बाबा का जन्म कानपुर जिले में सरसोल ब्लॉक के अखरी गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. प्रेमानंद महाराज का असली नाम अनिरुद्ध कुमार पांडे है. उनके पिता शंभू पांडे और माताजी का नाम रमा देवी था. उनके दादाजी और पिताजी ने भी संन्यास का मार्ग अपनाया. 5वीं क्लास में पढ़ते हुए ही वह गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित होने वाली किताब सुखसागर का अध्ययन करने लगे थे. 9वीं में पहुंचने पर उन्होंने संन्यास लेने का निर्णय ले लिया.

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प्रेमानंद महाराज ने उसके बाद नैष्ठिक ब्रह्मचर्य की दीक्षा ली और आनंदस्वरूप ब्रह्मचारी बने. बनारस और हरिद्वार जैसे तीर्थस्थानों पर अपने शुरुआती संन्यासी जीवन के दिनों को गुजारा. उसके बाद एक संत के आग्रह पर वृंदावन में श्रीराम शर्मा की तरफ से आयोजित रासलीला देखने आए.

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वृंदावन से प्रभावित होकर उन्होंने वहीं ठहरने का निर्णय लिया और गौरांगी शरण महाराज के संरक्षण में राधावल्लभ संप्रदाय में दीक्षित हुए. तब से नित्य वह परिक्रमा, भजन, कीर्तन और भगवत् चर्चा में लीन रहने लगे.

प्रेमानंद जी महाराज के सत्संगों को वैरिफाइड यू-ट्यूब चैनलों जैसे भजन मार्ग और साधन पथ पर सुना जा सकता है. वह युवाओं को मद्यपान, व्यभिचार और दुर्गुणों से दूर रहने के बारे में अपने सत्संगों में चर्चा करते नजर आते हैं.

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