Explainer: बेरोजगारी भारत की सबसे बड़ी चिंता, क्यों नहीं मिल पा रही युवाओं को उम्मीद के मुताबिक नौकरियां?

भारत में रोज़गार की समस्या सबसे बड़ी चिंता बनी हुई है, जहां चुनावों में वादे तो खूब होते हैं लेकिन हालात नहीं सुधरते। मिलिंद खांडेकर के मुताबिक, देश को बेरोज़गारी कम करने के लिए आर्थिक विकास की रफ्तार तेज करनी होगी.

भारत में बढ़ती बेरोजगारी
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Hisab-Kitab: भारत में रोजगार की समस्या सबसे बड़ी चिंता बन गई है. चुनाव के समय हर पार्टी युवाओं को नौकरी देने का वादा करती है, लेकिन असल में हालत बदलते नहीं दिखते. इस मुद्दे पर इंडिया टुडे ग्रुप के Tak चैनल्स के मैनेजिंग एडिटर मिलिंद खांडेकर ने खास बातचीत की है. इस आर्टिकल में हम रोजगार की सच्चाई और आगे के रास्ते को के बारे में विस्तार से समझते हैं.

भारत में काम करने योग्य आबादी यानी 15 से 64 साल के बीच करीब 96 करोड़ लोग हैं. इनमें से लगभग 55 प्रतिशत यानी करीब 55 करोड़ लोग काम कर रहे हैं या काम की तलाश में लगे हैं. काम कर रहे लोगों में से आधे से ज्यादा लोग खेती-किसानी में हैं. वहीं, सिर्फ 12 से 13 करोड़ लोगों के पास नियमित सैलरी वाली नौकरी है, जिसमें सरकारी नौकरी करने वालों की संख्या करीब 1.5 करोड़ है. 

इतना ही नहीं बेरोजगार यानी काम की तलाश में लगे लोग करीब 3 से 4 करोड़ के बीच हैं, जो कुल कामकाजी आबादी का लगभग 3 से 5 प्रतिशत है. ऐसे में युवाओं में यह संख्या करीब 17 प्रतिशत तक पहुंच जाती है. 

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भारत को करनी होगी 8.4 करोड़ नौकरियां पैदा

Morgan Stanley की ताजा रिपोर्ट बताती है कि आने वाले कुछ सालों में भारत को लगभग 8.4 करोड़ नई नौकरियाँ पैदा करनी होंगी. लेकिन सवाल ये है कि ये नौकरियां कहां से आएंगी? रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके लिए देश की अर्थव्यवस्था को सालाना 12 प्रतिशत की रफ़्तार से बढ़ना होगा, जबकि अभी हम 6 से 7 प्रतिशत के बीच ही ग्रोथ कर पा रहे हैं. अगर यही हालात बने रहे तो बेरोज़गारी बढ़ेगी. मौजूदा बेरोजगारी को रोकने के लिए भी हमें 9 प्रतिशत की ग्रोथ दर चाहिए. 

एक्सपोर्ट बढ़ाने पर जोर

Morgan Stanley ने सुझाव दिया है कि एक्सपोर्ट बढ़ाने पर जोर दिया जाए. वर्तमान में भारत का वैश्विक बाजार में हिस्सा सिर्फ डेढ़ प्रतिशत है. अमेरिका जैसे बड़े बाजारों में दिक्कतें हैं, इसलिए अन्य देशों के बाजारों पर भी ध्यान देना जरूरी है. साथ ही इन्फ्रास्ट्रक्चर और मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर को भी मजबूती देनी होगी. सरकार ने इन क्षेत्रों पर काम शुरू किया है, लेकिन इसे तेज करने की जरूरत है.

मिलिंद खांडेकर के अनुसार अगर हम रोजगार के मुद्दे को सही मायनों में हल करना चाहते हैं, तो हमें आर्थिक ग्रोथ की रफ्तार को दोगुना करना होगा. नहीं तो ‘विकसित भारत’ का सपना मात्र एक जुमला बनकर रह जाएगा.

रोजगार की इस चुनौती से निपटने के लिए सही नीतियां, तेज आर्थिक विकास और वैश्विक बाजार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाना ही एकमात्र रास्ता है. अगर ये कदम नहीं उठाए गए, तो बेरोजगारी और बढ़ेगी और युवा वर्ग की चिंता भी गहराएगी.

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