मुठभेड़ में मोस्ट वांटेड नक्सली कमांडर हिडमा ढेर, कई जवानों की हत्या का रह चुका है मास्टरमाइंड, जानें उसके बारे में सबकुछ
Top Maoist Commander Madvi Hidma killed: सुरक्षाबलों ने सुकमा में कुख्यात माओवादी कमांडर हिडमा को मार गिराया है. जो 26 घातक हमलों का मास्टरमाइंड था. उनकी मौत से नक्सली संगठन को बड़ा झटका लगा है.

Maoist Commander Madvi Hidma killed:आंध्र प्रदेश के मारेदुमिल्ली इलाके में सुरक्षा बलों ने खूंखार नक्सली कमांडर माडवी हिडमा और उसकी पत्नी राजे उर्फ रजक्का को मार गिराया. हिडमा कोई आम नक्सली नहीं था बल्कि उसपर कम से कम 26 घातक हमलों का मास्टरमाइंड होने का आरोप है. इन हमलों में साल 2013 का दरभा घाटी नरसंहार और 2017 का सुकमा हमला भी शामिल है.
ऐसे में इस रिपोर्ट में हम विस्तार से समझते हैं कि आखिर ये माडवी हिडमा कौन है, क्यों है इतना कुख्यात और कैसे बनाता था रणनीतियां
कैसे बनाता था रणनीतियां ?
बीबीसी ने अपने एक रिपोर्ट में उन लोगों से बात की जो किसी न किसी नक्सली संगठन के साथ काम कर चुके हैं. उस बातचीत में कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्होंने हिडमा के साथ एक दो बार बात की है. उन लोगों ने उस रिपोर्ट में बताया कि हिडमा काफी सॉफ्ट स्पोकन और सबके साथ सम्मान के साथ बातें करने वाला शख्स था.
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उसी रिपोर्ट में लोगों ने बताया कि वो जब हिडमा से मिले तो हैरान रह गए कि इतनी बड़ी तबाही मचाने वाला शख्स इतनी इज्जत और सम्मान देकर कैसे बात कर सकता है. हालांकि ये वहीं खूंखार नक्सली है जिसने सुरक्षाबलों पर लगभग दस बार हमला बोला है और अब अब तक सैकड़ों जवानों का घर तबाह कर चुका है.
कैसे हुई थी शुरुआत
हिडमा का असली नाम संतोष था और उनका जन्म 1981 में पूवर्ति गांव, सुकमा (छत्तीसगढ़) में हुआ था. वह पहली बार साल 1996-97 में माओवादी संगठन से जुड़ा. उस वक्त उनकी उम्र मात्र 17 साल थी.
बताया जाता है कि हिडमा के गांव से एक बार 40-50 नक्सली निकले थे. सबसे पहले बार वहीं उसे इनके बारे में जानकारी मिली थी. उन नक्सलियों से जुड़ने से पहले हिड़मा खेती किया करता था.
बीबीसी की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि हिडमा बहुत ज्यादा बातें नहीं करता था, लेकिन उसमें नई चीजें सीखने की दिलचस्पी रहती थी. उसने नक्सली संगठन के लिए काम करने वाले एक लेक्चरर से अंग्रेजी भाषा तक सीखी थी.
नहीं आती थी हिंदी
दरअसल दक्षिण बस्तर से रहने के कारण हिडमा को हिंदी भाषा नहीं आती थी क्योंकि जिस इलाके में वो पला बढ़ा वहां की मातृभाषा हिंदी नहीं है. हालांकि जैसा की उपर बताया गया कि हिडमा में कुछ नया सीखने की ललक इतनी ज्यादा थी हिंदी और इंग्लिश सीखा. हिड़मा ने सातवीं कक्षा तक ही पढ़ाई की है.
बीबीसी की एक रिपोर्ट में माओवादी संगठन के एक पूर्व सदस्य ने उसके बारे बताते हुए कहा था कि, 'साल 2000 के आसपास हिड़मा संगठन की उस ब्रांच में भेजा गया था जहां माओवादियों के लिए हथियार तैयार किया जाता है. लोग कहते हैं कि इस काम में भी वह माहिर खिलाड़ी साबित हुआ.
उसी के एक साल बाद यानी लगभग 2001-2002 में हिडमा को दक्षिण बस्तर जिला प्लाटून में भेजा गया. बाद में उसे माओवादी हथियारबंद दस्ते पीएलजीए (पीपल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी) में शामिल किया गया.
सामान्य सदस्य से खास तक का सफर
नक्सली गतिविधियों का रिसर्च करने वालों ने बीबीसी की एक रिपोर्ट में बताया कि साल 2001 से लेकर साल 2007 तक हिड़मा नक्सली संगठन का बिल्कुल आन सदस्य था. लेकिन बस्तर इलाके में चले सलवा जुडूम ने उसे खूंखार बनाने में अहम भूमिका निभाई.
दरअसल सलवा जुडूम के खिलाफ वहां के लोगों में बदले की भावना था और इसे बदले की भावना ने बस्तर में नक्सली संगठन को एक बार फिर से एक्टिव कर दिया जबकि 1990 के मध्य में वहां बहुत अच्छी स्थिति नहीं थी.
बीबीसी की रिपोरेट के अनुसार यही वो वक्त था जब नक्सली संगठ ने हिडमा को आगे बढ़ने का मौका दिया. एक पूर्व माओवादी ने मीडिया से बात करते हुए कहा था कि उनके अपने लोगों के खिलाफि किए गए अत्याचार ने ही हिडमा को भड़का दिया.
24 जवान के मौत का कारण
हिडमा के नेतृत्व में पहला हमाल मार्च 2007 में हुआ था. कहा जाता है कि उस साल उरपल मेट्टा इलाके में पुलिस पर हमला किया गया जिसमें सीआरपीएफ़ के 24 जवान शहीद हो गए थे.
माओवादी संगठन के पूरी सदस्य कहते हैं, 'उस वक्त CRPF के जवानों ने पूरा गांव जला दिया था. जब इस बात की जानकारी हिडमा और उनके साथियों को हुई तो वो पुलिस को रोकने पहुंचे, इसी दौरान दोनों गुटो के बीच मुठभेड़ हुआ और उन्होंने सीआरपीएफ पर हमला कर दिया."
बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार ये घटना महत्वपूर्ण थी, क्योंकि ज्यादातर नक्सली लैंड माइंस पर ही डिपेंडेट रहते थे.ये पहला मौका था जब वो पुलिस से सामने आएं और मुठभेड़ हुई.
नक्सलियों को लैंडमाइंस से बंदूक की तरह किया था ट्रांसफर
इसी रिपोर्ट में दावा किया गया कि हिडमा ही वो शख्स है जिसने माओवादियों को लैंडमाइंस से बंदूकों की तरफ ट्रांसफर करने में अहम भूमिका निभाई थी.
एक पूर्व महिला बीबीसी की रीपोर्ट में कहती हैं कि, ''उस वक्त हिडमा की आंखों में इतना जोश था कि संगठन के नेता भी हिड़मा की आक्रामकता को देखकर हैरान रह गए थे. बाद में भी वो काफी एक्टिव और जोश में रहता था और यही वजह है कि उन्हें संगठन में बड़ी ज़िम्मेदारियां सौंपी गई थीं.''
2008-9 में बना था बटालियन का कमांडर
हिडमा पहली बार साल 2008-09 में बटालियन का कमांडर बना था. ये बटालियन बस्तर के इलाके में काफी एक्टिव है.
इसके बाद साल 2011 में उसे दंडकारण्य स्पेशल जोन कमिटी का मेंबर बनया गया. साल 2010 के अप्रैल महीने में ताड़मेटला में हुई एक घटना में पुलिस के 76 जवान मारे गए थे.
जबकि साल 2017 के मार्च महीने में सीआरपीएफ के 12 जवानों की जान चली गई थी. कहा जाता है कि इन दोनों हमलों में हिड़मा का हाथ था.
बंदूक का बहुत कम इस्तेमाल
माड़वी हिड़मा को लेकर ये बात भी काफी मशहूर है कि वो मुठभेड़ को लीड तो करता था लेकिन खुद बंदूक बहुत कम चलाते हैं.
बीबीसी की एक खबर में पूर्व नक्सली सदस्य ने बताया कि साल 2011 में संगठन के भीतर हिडमा के बारे में एक दिलचस्प चर्चा होती थी और वो ये थी कि वो लड़ाई को लेकर काफी आक्रामक रहता था, काफी लड़ाइयों में हिस्सा भी लिया लेकिन उसने खुद बुहत कम मौके पर उठाया. वो टीम को लीड करता था और जब तक मजबूरी न हो तह तक बंदूक नहीं उठाता था.
एक पूर्व माओवादी कहते हैं कि, 'इस शख्स की हैरान करने वाली बात है कि इसने कई लड़ाइयों में हिस्सा लिया लेकिन बावजूद इसके छोटी-सी चोट भी नहीं आई. मुझे नहीं पता कि वो 2012 के बाद कभी घायल हुए भी हैं या नहीं.
हिडमा के नेतृत्व में हुए कुछ प्रमुख हमलों में शामिल हैं
- 2010 का दंतेवाड़ा हमला, जिसमें 76 सीआरपीएफ जवान शहीद हुए.
- 2013 का झीरम घाटी नरसंहार, जिसमें 27 लोग मारे गए. इस नरसंहार में शीर्ष कांग्रेसी नेता भी शामिल थे.
- 2021 की सुकमा-बीजापुर मुठभेड़, जिसमें 22 सुरक्षा कर्मी शहीद हुए.
हिड़मा का माओवादी संगठन में प्रभाव बहुत बड़ा था. वे रणनीतिक कमांडर के रूप में खतरनाक था और स्थानीय आदिवासी कैडर के लिए एक प्रेरणा स्रोत था. उसकी लीडरशिप और हमलों की योजना माओवादी संगठन की ताकत का प्रमुख हिस्सा मानी जाती थी.
हिड़मा की मौत से माओवादी संगठन को बड़ा झटका लगा है और अब संगठन में नेतृत्व की चुनौती बढ़ सकती है. सुरक्षा बलों ने इसे नक्सली विरोधी अभियान में बड़ी सफलता बताया है.
अमित शाह ने की थी नक्सलवाद के खात्म की शुरुआत
बता दें कि गृह मंत्री अमित शाह ने साल 2019 में इस पद को संभालने के साथ ही वामपंथी उग्रवाद को जम्मू-कश्मीर से भी बड़ी चुनौती माना बताया था. उस वक्त अमित शाह ने इस चुनौती को स्वीकार करते हुए दावा किया था कि मार्च 2026 तक वह भारत को नक्सली खतरे से पूरी तरह मुक्त कर देंगे. इस अभियान के तहत ही ये सर्च ऑपरेशन चलाए जा रहे हैं
पिछले साल की बात की जाए तो 2024 में इसी अभियान के तहत 290 नक्सली मारे गए थे. जबकि 1090 नक्सलियों को गिरफ्तार किया गया और 881 नक्सलियों ने सरेंडर किया. आत्मसमर्पण करने वालों को पुनर्वास नीति के तहत सहयता मिली.
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