असम में मशहूर सिंगर जुबीन गर्ग के अंतिम संस्कार में उमड़ा जनसैलाब, 32 हजार गानों की आवाज अब खामोश है
सिंगापुर में स्कूबा डाइविंग के दौरान जुबिन गर्ग की मौत ने पूरे देश को सदमे में डाल दिया. असम की सड़कों पर उमड़ा जनसैलाब बताता है कि जुबिन दा अब सिर्फ एक कलाकार नहीं, एक भाव बन चुके हैं.

सिंगर जुबिन गर्ग की मौत ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है. 30 साल से म्यूजिक की दुनिया में जादू बिखेरने वाले जुबिन दा, जाते-जाते भी ऐसा असर छोड़ गए कि लाखों आंखों को नम कर गए.
जुबिन गर्ग की विदाई पर उमड़ा जनसैलाब
19 सितंबर को सिंगापुर में स्कूबा डाइविंग के दौरान जुबिन गर्ग की मौत हो गई. 20 सितंबर को उनका कॉन्सर्ट होना था, लेकिन उससे एक दिन पहले ही वो समंदर की लहरों में डूब गए. जब उनका पार्थिव शरीर गुवाहाटी लाया गया, तो शहर जैसे थम-सा गया. एयरपोर्ट से स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स तक की 25 किलोमीटर की दूरी तय करने में 5 घंटे लग गए क्योंकि हर सड़क, हर मोड़ पर सिर्फ और सिर्फ लोग ही लोग थे.
भीड़ इतनी कि पैर रखने की जगह नहीं बची. भोगेश्वर बरूआ स्टेडियम को रात में भी अंतिम दर्शन के लिए खोला गया. इतिहास में शायद ही कभी किसी कलाकार की विदाई पर ऐसा मंजर देखा गया हो. लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स ने इसे माइकल जैक्सन, पोप फ्रांसिस और क्वीन एलिजाबेथ-2 के बाद दुनिया का चौथा सबसे बड़ा अंतिम संस्कार बताया है.
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जुबिन गर्ग: वो नाम जो म्यूजिक से बड़ा हो गया
52 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कहने वाले जुबिन गर्ग ने हिंदी, असमी, बांग्ला समेत करीब 40 भाषाओं में 32 हजार से ज्यादा गाने गाए. 1992 में आए उनके पहले असमी एलबम अनामिका ने ही उन्हें स्टार बना दिया था. उन्होंने माया, पाखी, ऋतु, आशा जैसे टाइटल से एक अलग पहचान बनाई.
बॉलीवुड में भी उन्होंने अपनी खास जगह बनाई. 2006 की फिल्म गैंगस्टर का गाना "या अली" ने उन्हें पूरे देश में सुपरस्टार बना दिया. लेकिन मुंबई की चकाचौंध उनके दिल को छू नहीं सकी, और वो वापस लौट गए असमिया संगीत की दुनिया में.
उन्होंने 27 फिल्मों में एक्टिंग की और कई फिल्में भी प्रोड्यूस कीं. असम के लोग उन्हें भगवान मानने लगे थे. 2022 में गुवाहाटी में उनकी 20 फीट ऊंची मूर्ति लगाई गई थी, जिसका उद्घाटन खुद जुबिन ने किया था.
गरिमा सैकिया जुबिन की हमसफर
गरिमा सैकिया, जुबिन की पत्नी, आखिरी वक्त तक उनके साथ रहीं. 2002 में दोनों की शादी हुई थी. खुद एक क्रिएटिव प्रोफेशनल होने के बावजूद गरिमा ने हमेशा परिवार और जुबिन की जिंदगी को प्राथमिकता दी. अंतिम बार जब उन्होंने जुबिन को गले लगाया, तब वो सिर्फ एक पार्थिव शरीर थे.
अब गरिमा एक और लड़ाई लड़ रही हैं जुबिन की मौत को लेकर फैल रही अफवाहों और जांच की राजनीति से जुबिन को बचाने की. उन्होंने अपील की है कि जुबिन की मौत से जुड़ी सभी एफआईआर वापस ली जाएं. उनका कहना है, “अब जुबिन को सुकून से विदा करने दीजिए.”
जांच के घेरे में जुबिन की मौत
जुबिन सिंगापुर में स्कूबा डाइविंग के लिए समुद्र में उतरे थे. कहा जा रहा है कि उन्होंने लाइफ जैकेट नहीं पहनी थी, लेकिन सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो में वो जैकेट के साथ नजर आ रहे हैं.
पहली बार डाइव करके वो वापस यॉट पर लौटे थे, लेकिन दूसरी बार उतरते ही उन्हें हार्ट अटैक आया. सीपीआर देने की कोशिश की गई लेकिन जान नहीं बचाई जा सकी. सिंगापुर से आया डेथ सर्टिफिकेट मौत की वजह “डूबना” बता रहा है, लेकिन असली सच पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद ही सामने आएगा.
असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने CID जांच की बात कही है, लेकिन जुबिन की पत्नी इसका विरोध कर रही हैं.
असम के बेटे पर भारत को गर्व
जुबिन गर्ग का जन्म भले ही मेघालय के तूरा में हुआ हो, लेकिन असम ने उन्हें अपने दिल में बसा लिया था. उनके पिता एक राइटर और मजिस्ट्रेट थे, मां और बहन सिंगर थीं. बचपन से ही संगीत उनके खून में था. 3 साल की उम्र से मां से सीखना शुरू किया, 11 साल तक तबला सीखा और फिर संगीत को ही अपनी पूरी जिंदगी बना लिया.
उन्होंने असम के लोक संगीत को पहचान दिलाई, उसे आधुनिक म्यूजिक के साथ जोड़ा और एक ऐसा नाम बना दिया जिसे कोई भुला नहीं सकता. उल्फा के डर के बावजूद जब उन्होंने बिहू फेस्टिवल में स्टेज पर हिंदी गाने गाए, तो वो सिर्फ सिंगर नहीं, एक हीरो बन गए.
जुबिन दा अमर रहेंगे...
जुबिन गर्ग अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके गाने, उनकी आवाज और उनका जादू हमेशा जिंदा रहेगा. उन्होंने जो म्यूजिक छोड़ा है, वो कभी खत्म नहीं हो सकता.
उनकी कहानी हमें ये सिखा जाती है कि शोहरत से बड़ा होता है प्यार और जुबिन गर्ग को जो प्यार मिला, वो अमर है.