अकोला केस: महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के हिंदू-मुस्लिम अफसरों के आदेश को बताया सेक्युलरिज्म के खिलाफ

सुप्रीम कोर्ट ने अकोला दंगे की जांच के लिए SIT में हिंदू और मुस्लिम अफसरों को शामिल करने का आदेश दिया, लेकिन महाराष्ट्र सरकार ने इसे धर्म के आधार पर टीम बनाना बताकर सेक्युलर नीति के खिलाफ बताया. सरकार ने कोर्ट से आदेश पर दोबारा विचार करने की मांग की है.

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महाराष्ट्र की फडणवीस सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच अकोला दंगे की जांच को लेकर विवाद खड़ा हो गया है. सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को आदेश दिया था कि दंगे की जांच के लिए एक स्पेशल इंवेस्टिगेशन टीम बनानी होगी, जिसमें हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के पुलिस अफसर शामिल हों.

लेकिन महाराष्ट्र सरकार ने अब इस आदेश पर आपत्ति जताई है. सरकार का कहना है कि धर्म के आधार पर SIT बनाना राज्य की सेक्युलर नीति के खिलाफ है.

पुलिस अफसर को नहीं होता कोई धर्म

महाराष्ट्र सरकार का तर्क है कि पुलिस फोर्स धर्म, जाति या राजनीति से ऊपर होती है. एक पुलिस अफसर का कोई धर्म नहीं होता. जब वह वर्दी पहनता है, तो उसका कर्तव्य सिर्फ कानून के प्रति होता है. सरकार ने कहा कि धर्म के आधार पर SIT बनाना पुलिस की निष्पक्षता पर सवाल खड़ा करता है.

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सुप्रीम कोर्ट का आदेश इसलिए आया क्योंकि 13 मई 2023 को अकोला में सांप्रदायिक दंगे भड़क गए थे. विवाद सोशल मीडिया पर पैगंबर मोहम्मद को लेकर हुई एक पोस्ट से शुरू हुआ था. इसी दौरान 17 साल के मोहम्मद अफजल मोहम्मद शरीफ नाम के एक नाबालिग ने दावा किया कि उसने दंगे के दौरान एक हिंदू व्यक्ति विलास महादेवराव गायकवाड़ की हत्या होती देखी. 

अफजल ने यह भी कहा कि हमलावरों ने उस पर भी हमला किया. लेकिन पुलिस ने उसकी बात को नजरअंदाज कर दिया और एफआईआर दर्ज नहीं की.

अफजल ने खटखटाया सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा

जब बॉम्बे हाईकोर्ट ने अफजल की याचिका खारिज कर दी, तो उसने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. जस्टिस संजय कुमार की बेंच ने कहा कि जांच में निष्पक्षता की कमी दिखी है. इसलिए कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को आदेश दिया कि दंगे की जांच के लिए ऐसी SIT बनाई जाए जिसमें दोनों समुदायों के अधिकारी शामिल हों. कोर्ट ने यह भी कहा कि तीन महीने के भीतर रिपोर्ट दी जाए.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब पुलिसवाले वर्दी पहनते हैं, तो उन्हें अपने धार्मिक, जातीय या राजनीतिक पूर्वाग्रह भूलकर पूरी ईमानदारी से अपने कर्तव्य निभाने चाहिए. दुर्भाग्य से इस मामले में ऐसा नहीं हुआ.

महाराष्ट्र सरकार का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश सद्भावना से तो दिया गया होगा, लेकिन धर्म के आधार पर जांच टीम बनाना भारत के सेक्युलर ढांचे को ठेस पहुंचाता है. सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से इस आदेश पर दोबारा विचार करने की अपील की है.

अकोला दंगे के वक्त भी राज्य में एनडीए की सरकार थी. तब एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री और देवेंद्र फडणवीस डिप्टी सीएम थे. अब दोनों के पद उलट गए हैं, लेकिन सरकार वही है और अब यही सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेश का विरोध कर रही है.

संक्षेप में, सुप्रीम कोर्ट ने SIT में हिंदू और मुस्लिम अफसरों को शामिल करने का आदेश दिया, महाराष्ट्र सरकार ने इसे सेक्युलरिज़्म के खिलाफ बताते हुए दोबारा विचार की मांग की है.

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