कौन हैं डी राजा जिनके प्रमोशन पर बंट गए कॉमरेड, BJP की तरह यहां भी रिटायरमेंट की उम्र 75 पर क्यों होने लगी चर्चा?

कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (CPI) की 25वीं पार्टी कांग्रेस में बड़ा फैसला लिया गया. डी राजा को दोबारा राष्ट्रीय महासचिव चुना गया है, लेकिन उनके रीइलेक्शन से पार्टी के भीतर विवाद खड़ा हो गया है.

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तस्वीर: इंडिया टुडे.
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सीपीएम के बाद सीपीआई लेफ्ट की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है. सीपीएम सीपीआई से इसलिए बड़ी रही कि बंगाल, केरल, त्रिपुरा में शासन तो लेफ्ट पार्टियों ने मिलकर चलाया लेकिन सीएम सीपीएम से चुने जाते रहे. आज तक किसी सीपीआई नेता को सीएम बनने का मौका नहीं मिला लेकिन इंद्रजीत गुप्त एक जमाने में देश के गृह मंत्री हुआ करते थे. देश की राजनीति में आज लेफ्ट केरल के अलावा किसी राज्य में सरकार में नहीं है.  

लेफ्ट पार्टियां भी बाकी पार्टियों के साथ चुनाव आयोग से मान्यता प्राप्त पॉलिटिकल पार्टियां हैं लेकिन उनका स्ट्रक्चर अलग होता है. लेफ्ट में महासचिव ही सबसे बड़ा पद होता है. अध्यक्ष जैसा कोई पद नहीं होता. डी राजा 2019 और 2022 में दो-दो बार कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया सीपीआई के राष्ट्रीय महासचिव चुने गए थे. 3 साल का कार्यकाल पूरा होने के बाद नया महासचिव चुना जाना था. कई नामों की चर्चा थी लेकिन चंडीगढ़ में 25वी पार्टी कांग्रेस ने अचानक फैसला लिया कि डी राजा ही कॉन्टीन्यू करेंगे. राजा डी राजा दोबारा सीपीआई महासचिव चुने गए हैं लेकिन उनकी रिइलेक्शन से पार्टी के भीतर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है. 

डी राजा के लिए उम्र का नियम टूटा तो मचा बवाल

राजनीति में उम्र कभी बंधन नहीं मानी जाती. कौन किस उम्र में आएगा, कौन किस उम्र में रिटायर होगा, इसके लिए कोई नियम नहीं है. सीपीआई ने खुद से नियम बनाया था कि 75 साल होने पर पार्टी में बड़े पदों पर कोई नहीं नहीं जाएगा. उम्मीद जताई जा रही थी कि 75 साल के हो चुके राजा भी इस ग्राउंड पर रिपीट नहीं होंगे, उनको दोबारा महासचिव बनाने के लिए सीपीआई ने खुद का बनाया नियम तोड़ दिया. नियम तोड़े जाने से सीपीआई कैडर में बवाल मचा है. 

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दक्षिण की लीडरशिप 75 साल का नियम तोड़ने के खिलाफ

न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना जैसे दक्षिण के राज्यों में जहां सीपीआई का जनाधार हिंदी राज्यों से कहीं ज्यादा है वहां की स्टेट लीडरशिप इस राय के खिलाफ थी कि 75 साल का नियम तोड़ा जाए या बदला जाए. सबसे ज्यादा विरोध केरल से ही हुआ. जब डी राजा के लिए नियम तोड़ गया तो असंतोष के सुर उठे. हालांकि डी राजा के लिए नियम तोड़ने का बंगाल, महाराष्ट्र, बिहार, झारखंड समेत कई राज्यों ने समर्थन कर दिया. कुल मिलाकर डी राजा के सवाल पर कॉमरेड पहले बंटे, फिर एकजुट हो गए. इससे डी राजा का चुनाव आम सहमति से ही हुआ.

इसलिए राजा के दोबारा रिपीट करना पड़ा

डी राजा को दोबारा महासचिव चुने के लिए कई फैक्टर कंसीडर किए गए. एक तो कांग्रेस और इंडिया गठबंधन में उनकी रीच बहुत अच्छी है. दूसरा ये कि बिहार, बंगाल, केरल, तमिलनाडु चुनावों से पहले पार्टी को कोई दूसरा नेता चुनना नहीं चाहती थी. 75 साल की लिमिट को लेकर पार्टी में गर्म बहस हुई लेकिन फिर भी राजा के लिए नियम तोड़ने पर सहमति बन गई. सीताराम येचुरी के निधन के कारण कुछ महीने पर एम ए बेबी सीपीएम महासचिव चुने गए थे. 

डी राजा महासचिव बना लेफ्ट ने बदली धारणा

तमिलनाडु के वेल्लोर के रहने वाले हैं डी राजा. 2019 में जब पहली बार महासचिव चुने गए तो एक बड़ा फैक्टर उनका दलित होना माना गया. 95 साल के इतिहास में पहली बार किसी कम्युनिस्ट पार्टी ने एक दलित को अपनी टॉप पोजिशन दी. तब खराब स्वास्थ्य के कारण सुधाकर रेड्डी ने पद छोड़ा था. लेफ्ट की आलोचना होती थी कि उसने कभी पिछड़ों को तवज्जो नहीं दी. ऊंची जाति वालों का दबदबा रहा. राजा की एक नियुक्ति से लेफ्ट ने ये धारणा बदल की कि भारत में लेफ्ट का मतलब केवल ऊंची जाति नहीं है.

डी राजा की लव-मैरिज का किस्सा भी रोचक

राजा ने एनी राजा से 1990 में inter-religious marriage की थी. केरल में एक विरोध प्रदर्शन में दोनों पहली बार मिले थे. तब दोनों महिला और यूथ विंग  का झंडा लेकर प्रदर्शन करने पहुंचे थे. एनी राजा भी सीपीआई में हैं और महिला विंग National Federation of Indian Women की महासचिव हैं. राजा ने एनी को तब प्रपोज किया जब वो मास्को में थी. दोनों ने शादी का फैसला किया तब पार्टी में भी हल्ला मचा लेकिन सीपीआई के नेता ही  लवली और पार्टी के लिएडेडिकेटेड कपल बने कि आगे राजा-रानी पुकारा जाने लगा. 

2024 में राहुल गांधी वायनाड में चुनाव लड़ने पहुंचे तो सीपीआई ने लेफ्ट की ओर से डी राजा की पत्नी एनी राजा को ही उम्मीदवार बनाया था जो बड़े अंतर से हारीं. डी राजा और एनी राजा की एक बेटी हैं अपराजिता राजा जो कि सीपीआई के ही स्टूडेंट विंग यूथ फेडरेशन के लिए काम करती हैं.

कभी भूखे पेट स्कूल जाते थे डी राजा

डी राजा बेहद गरीब परिवार से थे. इतने गरीब कि बिना कुछ खाए स्कूल पढ़ने जाते थे और ये बात सारे स्कूल को मालूम होती थी कि राजा भूखा आया है. जब ग्रेजुएट हुए तो अपने गांव से इतना पढ़ने वाले पहले बने. कॉलेज में पढ़ते समय वो लेफ्ट के छात्र संगठन ऑल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन से जुड़े. 

DMK और AIDMK के सपोर्ट से पहुंचे राज्यसभा

1975 तक फेडरेशन के स्टेट सेक्रेट्री बन गए. वहीं से प्रमोट होते हुए सीपीआई पहुंचे. 1994 में पहली बार सेक्रेट्री बने और 2019 में महासचिव बनने तक सेक्रेट्री बने रहे. एबी बर्धन के बाद वही देश की राजनीति में सीपीआई के फेस, फिलॉसफर बने हैं. राजनीति में रहने का इतना ही लाभ लिया कि 2007 और 2013 में सीपीआई के कोटे से दो बार राज्यसभा सांसद बने. सीपीआई के पास कभी अपने इतने विधायक हुए नहीं. पहली बार डीएमके, दूसरी बार AIADMK के समर्थन से संसद पहुंचे.

सीपीआई भी लेफ्ट की उन पार्टियों में हैं जिनका जनाधार लगातार सिमट रहा है. सीपीआई के लोकसभा में दो सांसद हैं. दो सांसद राज्यसभा में है. देश की अलग-अलग विधानसभाओं में कुल मिलाकर 22 विधायक हैं. पार्टी विपक्ष के साथ इंडिया गठबंधन में फ्रंटफुट पर रहती है. केरल में पी विजयन की लेफ्ट गठबंधन सरकार में 4 मंत्री हैं. तमिलनाडु में डीएमके-कांग्रेस के सेक्युलर प्रोग्रेसिव अलायंस का हिस्सा है. तेलंगाना में एक विधायक भी कांग्रेस के साथ है. डी राजा की राहुल गांधी से अच्छी बनती हैं. राहुल के ज्यादातर मुद्दों पर राजा की सहमति होती है. 

कुछ सालों से बीजेपी में एक सिस्टम बना कि 75 साल पूरा होने पर नेता रिटायर हो जाएंगे. लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी जैसे नेता इसी नियम से किनारे लगे. चर्चा थी कि 17 सितंबर को मोदी भी 75 साल के हो जाएंगे तो उनको भी जाना पड़ सकता है लेकिन जैसे ही काउंटडाउन शुरू किया गया, पार्टी और संघ ने साफ कर दिया कि ऐसा कोई नियम नहीं है.

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