नरेश मीणा की जीत किस बात पर करेगी निर्भर..प्रमोद भाया, मोरपाल सुमन कैसे दे रहे चुनौती?

अंता विधानसभा उपचुनाव का माहौल इन दिनों गरमाया हुआ है. नामांकन वापसी की समय सीमा नजदीक आने के साथ ही चुनावी मैदान में कौन-कौन रहेगा, इस पर सबकी निगाहें हैं। इस उपचुनाव में 21 उम्मीदवार मैदान में हैं.

नरेश मीणा पर दर्ज हैं 25 मामले
नरेश मीणा (file Photo)
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अंता विधानसभा उपचुनाव में सियासी माहौल गर्म है. 21 उम्मीदवार मैदान में हैं. नामांकन वापसी का दिन अभी बाकी है. इस बीच, कांग्रेस, बीजेपी और निर्दलीय उम्मीदवारों के बीच जोरदार मुकाबला देखने को मिल रहा है.

21 उम्मीदवार मैदान में

अंता उपचुनाव में 21 उम्मीदवारों ने नामांकन भरा है. इनमें कांग्रेस के प्रमोद जैन भाया, बीजेपी के मोरपाल सुमन और निर्दलीय नरेश मीणा प्रमुख हैं. उर्मिला जैन भाया जैसे कुछ डमी उम्मीदवारों के नाम वापस लेने की संभावना है. इसके अलावा, परिवर्तन पार्टी ऑफ इंडिया के राजपाल सिंह शेखावत और कई निर्दलीय उम्मीदवार भी मैदान में हैं.

नरेश मीणा देंगे चुनौती

निर्दलीय उम्मीदवार नरेश मीणा इस बार चर्चा में हैं. उनकी रैलियों में भारी भीड़ देखी जा रही है. नरेश मीणा मीणा और गुर्जर समुदाय के वोटों पर नजर रखे हैं. वे अल्पसंख्यक और धाकड़ समुदाय में भी सेंध लगाने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि, उनकी सबसे बड़ी चुनौती बूथ मैनेजमेंट है. पिछले उपचुनावों में उनकी टीम बूथ पर कमजोर रही थी. क्या इस बार वे इस कमी को दूर कर पाएंगे?

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प्रमोद जैन भाया, अनुभव का दम

कांग्रेस के प्रमोद जैन भाया का इस क्षेत्र में पुराना रिकॉर्ड है. 2003 में वसुंधरा राजे की लहर के बावजूद वे निर्दलीय जीते थे. अंता में उनकी जीत का मार्जिन भी प्रभावशाली रहा है. 2018 में वे 29,968 वोटों से जीते, जबकि 2023 में 5,800 वोटों से हारे. प्रमोद जैन घर-घर जाकर प्रचार कर रहे हैं. उनका अनुभव और स्थानीय समर्थन उन्हें फायदा पहुंचाने में मदद करेगा. 

बीजेपी का साइलेंट वोट बैंक

बीजेपी के मोरपाल सुमन को पार्टी का मजबूत वोट बैंक सपोर्ट कर रहा है. धाकड़, ब्राह्मण, राजपूत और ओबीसी समुदाय का समर्थन उनकी ताकत है. हालांकि, बीजेपी के बागी उम्मीदवार रामपाल मेघवाल ने निर्दलीय पर्चा भरकर चुनौती खड़ी की है. दलित वोट बैंक (लगभग 55,000) इस सीट पर निर्णायक हो सकता है. वसुंधरा राजे और दुष्यंत सिंह के प्रचार में उतरने से मोरपाल को और ताकत मिल सकती है.

जातीय समीकरण और हाड़ौती का मिजाज

विश्लेषण यह बताता है कि हाड़ौती की जनता में एक अलग मिजाज है. यहां की जनता अक्सर जातिवाद को दरकिनार करती आई है. उदाहरण के लिए, दुष्यंत सिंह जाट होते हुए भी राजपूतों की सीट से जीतते हैं, और प्रमोद जैन भाया जैसे व्यापारी समुदाय के नेता भी सफल रहे हैं.

यदि नरेश मीणा केवल जातिगत समीकरणों पर भरोसा कर रहे हैं, तो उन्हें अपनी रणनीति बदलनी होगी. उन्हें जनता को विकास के सपने और नए विजन दिखाने होंगे, वरना हाड़ौती की जनता का मिजाज आसानी से नहीं बदलेगा.

जातिगत गठजोड़ जीत का सबसे बड़ा फैक्टर

अंता विधानसभा में करीब सवा दो लाख मतदाता हैं. यहां चार जातियां निर्णायक भूमिका में हैं: माली (लगभग 40 हजार), अनुसूचित जाति (35 हजार), मीणा (32 हजार) और मुस्लिम (20-25 हजार). राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यहां जाति ही जीत का सबसे बड़ा फैक्टर है. जीत के लिए माली-मीणा-एससी वोटों का गठजोड़ जरूरी माना जाता है.

बीजेपी परंपरागत रूप से माली और शहरी वोटों पर निर्भर है, जबकि कांग्रेस मीणा, एससी और मुस्लिम वोटों को साधने का प्रयास कर रही है. हालांकि, निर्दलीय नरेश मीणा दोनों प्रमुख दलों के वोट बैंक में सेंध लगाकर मुकाबले को बेहद करीबी बना रहे हैं.

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