Rajasthan: इस जिले में अन्नकूट पर की गई गधों की पूजा, सामने आई ये कहानी

News Tak Desk

पता चला कि यहां कुम्हार जाति के लोग अन्नकूट के मौके पर भव्य आयोजन करते हैं और गधों को नहला धुलाकर बड़े ही सुंदर तरीके से सजाने के बाद उनकी पूजा करते हैं.

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तस्वीर: प्रमोदी तिवारी, राजस्थान तक.
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न्यूज़ हाइलाइट्स

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कस्बे वालों का कहना है कि 70 सालों से ये परंपरा चली आ रही है.

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यहां गधों की दौड़ भी आयोजित होती है.

आपने देखा होगा कि अन्नकूट पर बैल की पूजा करते हुए तो आपने देखा ही होगा. वहीं राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के माण्डल कस्बे में अन्नकूट के मौके पर गधों की विधि-विधान से पूजा की गई. ये नजारा अब सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बना हुआ है. 

पता चला कि यहां कुम्हार जाति के लोग अन्नकूट के मौके पर भव्य आयोजन करते हैं और गधों को नहला धुलाकर बड़े ही सुंदर तरीके से सजाने के बाद उनकी पूजा करते हैं. माण्डल कस्बे के रहने वाले बताते हैं कि किसान बैल की पूजा करते हैं उसी प्रकार कुम्हार (प्रजापति) समाज के लोग गधों की पूजा सालों से करते आ रहे हैं. क्योंकि इस समाज के लिए गधे ही रोजी-रोटी के बड़े साधन हैं. तालाब से मिट्टी ढोकर लाते हैं. इसलिए सालों से यह परंपरा माण्डल कस्बे में निभाई जा रही है. 

होती है गधों की दौड़

माण्डल में इस दिन (वैशाख नंदन) गधे की पूजा के लिए पूरा कुम्हार समाज इकट्ठा होता है. प्रताप नगर क्षेत्र में गधों को नहला धुला कर सजाया जाता है. इन पर रंग-बिरंगे कलर लगाए जाते हैं. फिर इनको माला पहना कर पहले चौक में लाया जाता है. वहां पंडित पूजा अर्चना के बाद इनका मुंह मीठा कराते हैं. फिर उनके पैरों में पटाखे डालकर इनको भड़काया जाता है. फिर इनकी दौड़ संपन्न कराई जाती है. गधों की पूजा के अनूठे आयोजन को देखने के लिए माण्डल के आसपास के लोग आते हैं. 

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70 सालों से चली आ रही परंपरा

माण्डल के गोपाल कुम्हार कहते हैं कि बैसाख नंदन पर्व माण्डल में लगभग 70 सालों से मनाते आ रहे हैं. हमारे पूर्वज पहले हर घर में गधे रखते थे. उससे हमारी रोज़ी रोटी चलती थी. मगर अब जैसे-जैसे साधन बढ़ रहे हैं इनकी संख्या कम होती जा रही है. इनको हम भूले नहीं और हमारे पूर्वज दीपावली पर इनको पूजते थे. उसी परंपरा को निभाते हुए हम भी दीपावली के दूसरे दिन अन्नकूट और गोवर्धन पूजा के दिन इनको पूजते हैं. जिस प्रकार किसान अपने बैलों की पूजा करते है इस प्रकार हम कुम्हार समाज के लोग परंपरा को बनाए रखे हुए हैं. 

इनपुट: प्रमोदी तिवारी, राजस्थान तक.

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