बिहार में नीतीश की घट रही लोकप्रियता, क्या वे थोपे जा रहे या अभी भी हैं दुलारे?
Bihar News: सी-वोटर सर्वे में तेजस्वी यादव बिहार के सबसे पसंदीदा मुख्यमंत्री चेहरा बनकर उभरे हैं, जबकि नीतीश कुमार की लोकप्रियता लगातार गिर रही है. बीजेपी के पास भी अब तक कोई मजबूत सीएम फेस नहीं दिख रहा है.
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Bihar News: देश भर की निगाहें अब बिहार पर है. इस साल नवंबर में बिहार विधानसभा चुनाव होना है. चर्चा यहीं है चुनाव कोई भी जीते पर हर बार की तरह सीएम नीतीश कुमार ही बनेंगे. कुछ दिन पहले बिहार के डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी ने भी यह बात कह दी थी. अब यहां सवाल उठता है क्या नीतीश अब भी बिहार की जनता के दुलारे मुख्यमंत्री बने हुए है या बिहारवासियों पर नीतीश थोपे जा रहे हैं. इस सवाल का जवाब कुछ हद तक सी वोटर के सर्वे में मिलता है.
नीतीश कुमार की लोकप्रियता में 2020 से गिरावट शुरू हो गई तो वहीं पर तेजस्वी यादव महागठबंधन के सीएम फेस बने. सीएम फेस बनने के बाद ही तेजस्वी की लोकप्रियता बढ़ती चली गई. आरजेडी ने सत्ता हाथ से निकलने के बाद 2020 में सबसे जबरदस्त चुनाव लड़ा. 125 सीटों के साथ नीतीश के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनी और महागठबंधन 110 सीटों के साथ जीत से कुछ कदम पीछे छूट गई. नीतीश सीएम तो बन गए पर साल दर साल उनकी लोकप्रिता घटती चली गई .
सी वोटर सर्वे में तेजस्वी जनता की पहली पसंद
बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के तीसरे और आखिरी चरण से पहले नीतीश पूर्णिया पहुंचे थे. उन्होंने जनता से भावुक होते हुए अपील कर कहा कि यह चुनाव मेरा आखिरी चुनाव है, अंत भला तो सब भला. उस वक्त लगभग बिहार के एक बड़े हिस्से ने मान लिया था कि नीतीश अलविदा कह रहे हैं. पर ऐसा बिलकुल भी नहीं हुआ क्योंकि नीतीश 5 साल एक गठबंधन के साथ टिक तक नहीं पाए. उन्होंने दो बार पाला बदला और फिर एक बार एनडीए के सीएम फेस के दावेदार बनकर 2025 का चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं. लेकिन सी वोटर सर्वे के अनुसार, अब नीतीश दुलारे मुख्यमंत्री नहीं रहे.
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सर्वे के अनुसार, नीतीश कुमार की लोकप्रियता में 3 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है. इसी साल फरवरी में नीतीश कुमार की लोकप्रियता 18 फीसदी थी जो अप्रैल के सर्वे में घटकर 15 फीसदी रह गई है. वहीं आरजेडी के खाते से सीएम फेस के दावेदार तेजस्वी यादव को सर्वे में 35.5 प्रतिशत लोगों ने पसंद करके मुख्यमंत्री पद का सबसे पसंदीदा चेहरा बना दिया है. हैरानी तो इस बात की है कि साल भर पहले बिहार की रणनीति में एंट्री लेने वाले जनसुराज के सूत्रधार प्रशांत किशोर भी 17.2 प्रतिशत पसंद के साथ नीतीश कुमार से आगे निकल गए हैं.
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बीजेपी के पास कोई मुख्यमंत्री चेहरी नहीं
24 अप्रैल को पीएम नरेंद्र मोदी बिहार के मधुबनी में चुनावी रैली में पहुंचे थे. पीएम को सुनने के लिए लाखों की संख्या में लोग भी पहुंचे. इस दैरान बिहार तक ने वहां मौजूद कुछ लोगों से पसंदीदा मुख्यमंत्री चेहरे के बारे में पूछा तो किसी ने चिराग पासवान का नाम लिया किसी ने नीतीश कुमार का, पर सोचने वाली बात ये रही कि किसी ने भी बीजेपी के किसी नेता को मुख्यमंत्री चेहरे के तौर पर नहीं चुना. शायद बीजेपी भी इससे वाकिफ है की उसके पास बिहार में सीएम चेहरा नहीं है. बीजेपी की राजनीति पर नजर डाले तो बीजेपी चेहरे से ज्यादा अपने एजेंडे और पार्टी के नाम पर चुनाव लड़ती आई है. और शायद से यहीं कारण रहा है कि बीजेपी ने चुनाव में अच्छा प्रदर्शन भी किया है. बीजेपी के पास वोट है पर नीतीश के पास सुशासन बाबू का चेहरा, महिलाओं का समर्थन और वो वोट बैंक जिसको बीजेपी अपने पाले में लाना चाहती है यानी लव-कुश समीकरण. ये सब मिलाकर बिहार में बीजेपी के लिए ग्राउंड पर फिर से सत्ता अपने पक्ष में करने का जमीन तैयार करता है.
क्या नीतीश का स्वास्थ्य बन रहा घटती लोकप्रियता का कारण ?
पिछले साल भर से सीएम नीतीश कुमार की चुप्पी और अचानक अस्वस्थ होने की खबरें चर्चा का विषय बनी हुई हैं. तेजस्वी से लेकर कांग्रेस के बड़े नेता और प्रशांत किशोर तक विपक्ष ने जमीन पर ये हवा बना दी है कि नीतीश कुमार अब बिहार संभलने के लिए स्वस्थ्य नहीं हैं. अगर देखा जाए तो ये हमले का मौका भी नीतीश कुमार ने खुद ही दिया है. कभी राष्ट्रगान के दौरान बातें करना हो या फिर नरेंद्र मोदी या अन्य नेताओं का पैर छूना हो या फिर महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि देते समय ताली बजाने लगना हो, नीतीश पीछले कई हरकतों से चर्चा में सुर्खियों में रहें. विपक्ष ने नीतीश कुमार के खिलाफ अब इसे सबसे बड़ा मुद्दा बना लिया है और मौका मिलते ही उनपर वार करते हैं. नीतीश कुमार ने मीडिया से बातचीत करना भी लगभग बंद कर दिया है अब वो केवल मंच से भाषण देते है. तेजस्वी इसको लेकर भी अकसर नीतीश को घेरते दिखते है.
नीतीश कुमार की पार्टी में कोई स्पष्ट उत्तराधिकारी ना होना भी जेडीयू के लिए एक बड़ी चुनौती है. इससे पार्टी नेतृत्व अस्थिर हो सकता है और संगठन में भ्रम की स्थिति बन सकती है. इसी कारण नीतीश कुमार आज भी पार्टी के मुखिया बने हुए हैं, मर्जी या बिना मर्जी के. यह स्थिति पार्टी को लंबे समय तक एक ही चेहरे पर निर्भर रहने को मजबूर कर रही है.
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