CM Mohan के बार-बार दिल्ली जाने के बाद लगने लगी अटकलें, आखिर क्या होने वाला है?

सीएम मोहन यादव के लगातार दिल्ली दौरों के पीछे संगठन और मंत्रिमंडल में बढ़ती नाराजगी को दूर करने और निगम-मंडलों में नियुक्तियों से पहले सभी बड़े नेताओं की सहमति लेने की कोशिश है. ये दौरे सत्ता-संगठन में समन्वय बैठाने और संभावित विवादों से बचने की रणनीति का हिस्सा माने जा रहे हैं.

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एमपी के सीएम डॉ. मोहन यादव के लगातार हो रहे दिल्ली दौरों ने सूबे की सियासत में हलचल मचा दी है. पिछले तीन दिनों में हर शाम मुख्यमंत्री मोहन यादव का दिल्ली जाना और वहां पार्टी के बड़े नेताओं से मुलाकातें करना, अब अटकलों का विषय बन गया है. 

इन तमाम मुलाकातों और यात्राओं के बीच सवाल यह उठ रहा है कि मुख्यमंत्री आखिर बार-बार दिल्ली क्यों जा रहे हैं? कहीं कोई बड़ा फैसला तो नहीं होने वाला?

सत्ता-संगठन के बीच समन्वय की कवायद

जानकारी के मुताबिक, इन दौरों का मकसद सत्ता और संगठन के बीच चल रही तनातनी को दूर करना है. मंत्रिमंडल के कई सदस्य खुलकर अपनी नाराजगी जता चुके हैं. हाल ही में हुई बैठकों में मंत्रियों ने कहा कि उन्हें अपने ही विभागों में हो रहे फैसलों की जानकारी नहीं होती. उपमुख्यमंत्री और पीडब्ल्यूडी मंत्री राकेश सिंह सहित कई नेता खुद को अनदेखा महसूस कर रहे हैं.

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ग्वालियर से शुरू हुई खींचतान

ग्वालियर में हुए घटनाक्रम ने भी सीएम की मुश्किलें बढ़ाई हैं. कैबिनेट की बैठक में जब ग्वालियर को 'नरक' बताया गया, तो उसके बाद ग्वालियर की जिम्मेदारी सीधे तौर पर ज्योतिरादित्य सिंधिया को दे दी गई. इससे नाराज हुए वरिष्ठ नेता नरेंद्र सिंह तोमर, जो खुद ग्वालियर से सांसद हैं, अब "मौन व्रत" पर चले गए हैं और किसी से मिल नहीं रहे. चर्चा है कि तोमर के परिवार के एक सदस्य को स्थानीय पुलिस द्वारा भेजे गए नोटिस से भी उनकी नाराजगी और बढ़ गई है.

निगम-मंडलों की नियुक्तियां बना कारण?

राज्य में लंबे वक्त से निगम-मंडलों की राजनीतिक नियुक्तियां रुकी पड़ी हैं. अब माना जा रहा है कि इन्हीं को लेकर दिल्ली में लगातार बैठकों का दौर चल रहा है. सीएम  सभी बड़े नेताओं से मिलकर एक सहमति बनाना चाहते हैं, ताकि बाद में किसी तरह का विवाद न हो. पहले से बनी सूची को रोक दिया गया है और नए सिरे से सभी पक्षों की राय ली जा रही है.

शिवराज-सिंधिया को क्यों रखा गया दूर?

इन पूरे घटनाक्रम में गौर करने वाली बात ये है कि हाल ही में हुई ‘छोटी टोली’ की मीटिंग में न तो पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को बुलाया गया और न ही केंद्रीय मंत्री सिंधिया को. 

इससे यह सवाल उठ खड़ा हुआ कि क्या पार्टी में आंतरिक गुटबाजी गहराती जा रही है? संगठन के बड़े नेता इस गैप को भरने में जुटे हैं.

आर्थिक संकट भी है चिंता का कारण

नए जीएसटी-2 नियमों के चलते राज्य को 12-14 हजार करोड़ की रेवेन्यू लॉस का अनुमान है. ऐसे में निगम-मंडलों में नियुक्तियों से बढ़ने वाला वित्तीय बोझ भी सरकार के लिए चिंता का विषय है. 

सूत्रों की मानें तो वित्त विभाग ने पहले ही आपत्ति जताते हुए कहा है कि जब इन संस्थाओं की सिफारिशें माननी ही नहीं हैं, तो गाड़ी-बंगला और अन्य सुविधाएं क्यों दी जाएं?

सबको साथ लेकर चलने की कोशिश

इन तमाम परिस्थितियों को देखते हुए साफ है कि मुख्यमंत्री मोहन यादव अब "हनीमून पीरियड" से निकलकर असली कसौटी पर हैं. दिल्ली से उन्हें साफ संकेत मिला है कि अब सबको साथ लेकर चलना होगा. यही वजह है कि वे एक-एक नेता से मिल रहे हैं, संवाद कर रहे हैं और नाराज चेहरों को मनाने की कोशिश में लगे हैं. 

आने वाली 3 अक्टूबर को ग्वालियर में सिंधिया की बैठक और उसके बाद संभावित निगम-मंडलों की नियुक्तियों की सूची तय करेगी कि प्रदेश की राजनीति किस दिशा में आगे बढ़ेगी.

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