दशहरा स्पेशल: मध्य प्रदेश का अनोखा गांव, जहां रावण है आस्था का प्रतीक, नहीं जलाया जाता पुतला
Dussehra Special: राजगढ़ (मध्य प्रदेश) के भाटखेड़ी गांव में दशहरे पर रावण का पुतला नहीं जलाया जाता है. यह गांव रावण को आस्था का प्रतीक मानता है. ग्रामीण रावण और कुंभकर्ण की प्रतिमाओं की विशेष पूजा करते हैं, क्योंकि उनकी मान्यता है कि रावण मन्नतें पूरी करता है.

Dussehra Special: देशभर में दशहरा का पर्व सत्य की असत्य पर जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है, जहां रावण के पुतले का दहन किया जाता है. लेकिन मध्य प्रदेश के राजगढ़ जिले में एक ऐसा गांव है, जहां रावण को बुराई का नहीं, बल्कि आस्था और मन्नतों का प्रतीक माना जाता है. इस गांव में रावण की पूजा होती है और लोग अपनी मनोकामनाएं लेकर यहां पहुंचते हैं.
रावण की आस्था का केंद्र भाटखेड़ी गांव
राजगढ़ जिले का भाटखेड़ी गांव, जिसे स्थानीय लोग "रावण वाली" के नाम से भी जानते हैं. वह अपनी अनोखी परंपरा के लिए प्रसिद्ध है. इस गांव में रावण और उनके भाई कुंभकर्ण की प्रतिमाएं सड़क किनारे लगी हैं, जो सैकड़ों वर्षों से लोगों के आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं. ग्रामीणों का मानना है कि ये प्रतिमाएं उनकी मन्नतें पूरी करती हैं.
रावण की पूजा, मन्नतों का विश्वास
यहां के लोग रोजाना रावण और कुंभकर्ण की प्रतिमाओं की पूजा-अर्चना करते हैं. श्रद्धालु पूजा की थाली लेकर आते हैं, आरती करते हैं, नारियल चढ़ाते हैं और मन्नत पूरी होने पर प्रतिमाओं की परिक्रमा करते हैं. मन्नत पूरी होने पर लोग प्रसाद चढ़ाते हैं और इसे आपस में बांटते हैं. नवरात्रि के दौरान इन प्रतिमाओं का रंग-रोगन किया जाता है और रामलीला का आयोजन भी होता है. दशहरे के दिन राम और लक्ष्मण के पात्र बनकर ग्रामीण इन प्रतिमाओं की पूजा करते हैं और गांव की सुख-समृद्धि की कामना करते हैं.
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रावण को जलाने की नहीं, पूजा की परंपरा
जहां देशभर में रावण को बुराई का प्रतीक मानकर उसका पुतला जलाया जाता है, वहीं भाटखेड़ी में रावण को सम्मान दिया जाता है. गांव के लोग रावण को मन्नतों को पूरा करने वाला मानते हैं.
नवरात्रि में भाटखेड़ी में रामलीला का आयोजन भी होता है. जहां राम और रावण के पात्र नाटकीय रूप में प्रस्तुति देते हैं. लेकिन यहां रावण को जलाने के बजाय उसकी पूजा की जाती है. यह परंपरा सालों से चली आ रही है और स्थानीय लोगों के साथ-साथ आसपास के गांवों के लोग भी इस अनोखी परंपरा में शामिल होने आते हैं.
क्यों खास है भाटखेड़ी?
भाटखेड़ी ने अपनी इस अनोखी मान्यताओं को सहेजकर रखा है. रावण और कुंभकर्ण की प्रतिमाएं न केवल स्थानीय लोगों के लिए बल्कि आने-जाने वाले यात्रियों के लिए भी आकर्षण का केंद्र हैं.