Rajasthan Election 2023: दलित वोट बैंक इस बार कांग्रेस का खेल बनाएगा या बिगाड़ देगा?

देवराज गौर

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बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां दलित वोट बैंक को राज्य में साधने की कोशिश कर रही हैं.
बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां दलित वोट बैंक को राज्य में साधने की कोशिश कर रही हैं.
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विधानसभा चुनाव 2023ः राजस्थान में चुनाव से पहले हर तरह के सियासी समीकरण खंगाले जा रहे हैं. कांग्रेस गहलोत “सरकार” की जनकल्याणकारी योजनाओं के सहारे है, तो बीजेपी सत्ता विरोधी लहर के साथ लोगों तक पहुंचने की कोशिश कर रही है. जातीय समीकरण पर भी सभी पार्टियों का पूरा जोर दिख है. राजस्थान में जाट, गुर्जर, अनुसूचित जनजाति के अलावा दलितों का एक बड़ा वोट बैंक है. यहां दलितों को लेकर मुख्य मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही होता है. दलितों के वोट बैंक पर फोकस करती हुई बीएसपी भी इस बार सभी सीटों पर उतर रही है. साथ ही भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर भी मैदान में हैं. आइए समझते हैं पिछले दो चुनावों में दलित वोटों का समीकरण कैसा रहा है…

2018 में कांग्रेस के लिए संजीवनी बना ये वोट बैंक

2018 के चुनाव में दलितों का समर्थन कांग्रेस को संजीवनी की तरह मिला था. 2018 के चुनावों में 34 आरक्षित सीटों में से कांग्रेस ने 19 सीटें जीती थीं. वहीं बीजेपी को 12 सीटें हासिल हुई थी. राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी 2 और निर्दलीय 1 को सीट मिली थी. अगर आप 2013 के आंकड़े देखें तो तस्वीर और साफ हो जाती है. इस चुनाव में दलित समुदाय ने बड़ी संख्या में बीजेपी को वोट किया था. राज्य की 34 एससी आरक्षित सीटों में से बीजेपी ने 32 सीटों पर जीत हासिल की थी. 200 सदस्यीय विधानसभा में बीजेपी ने 163 सीटें जीती थीं. कांग्रेस सिर्फ 21 सीटों पर जीत दर्ज कर सकी थी. बीजेपी का प्रदर्शन 2018 में उन क्षेत्रों में गड़बड़ हुआ था जहां SC/ST (अत्याचार निवारण) संशोधन कानून पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद दलित और आदिवासियों द्वारा बुलाए गए भारत बंद के दौरान हिंसा हुई थी.

NCRB के आंकड़े गहलोत सरकार के लिए मुसीबत

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के मुताबिक दलितों के उत्पीड़न के मामले में राजस्थान दूसरे नंबर पर है. 2020 में यह तीसरे नंबर पर था. हालांकि, बीजेपी शासित राज्य मध्यप्रदेश इस सूची में टॉप पर है. अगर फिर भी बीजेपी दलित उत्पीड़न का मुद्दा उठाने में कामयाब हो जाती है, तो कांग्रेस को फिर से सीटों का नुकसान उठाना पड़ सकता है.

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18 फीसदी वोट बैंक पर सबकी नजर

दलितों को राज्य में कांग्रेस का एक महत्वपूर्ण वोट बैंक माना जाता है. गहलोत फिर से एससी वोट को अपने पाले में करने की कोशिश कर रहे हैं. गहलोत सरकार ने पिछले साल राजस्थान राज्य अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति विकास निधि (योजना, आवंटन और वित्तीय संसाधनों का उपयोग) विधेयक, 2022 पास किया था. यह कानून अनुसूचित जाति और जनजाति के विकास के लिए एक निश्चित धनराशि निर्धारित करता है. यह गहलोत सरकार का एक बड़ा कदम माना गया था. राज्य में 17.83 फीसदी एससी आबादी है. जनसंख्या के लिहाज से यह 1.2 करोड़ है. इस वोट बैंक पर सबकी नजर है.

अन्य प्लेयर्स की क्या है स्थिति

राजस्थान में बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) की भी मौजूदगी है. 2018 में बसपा ने राजस्थान में 4 फीसदी वोट शेयर के साथ 6 सीटें हासिल की थी. हालांकि, बसपा दलितों के लिए आरक्षित 34 सीटों में से एक भी सीट नहीं जीत पाई थी. अगले ही साल यानि 2019 में बसपा के सभी विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए थे. बसपा इस बार मजबूती से चुनाव लड़ने का दावा कर रही है. ऐसे में आरक्षित सीटों पर उसके भी प्रदर्शन पर सबकी नजरें टिकी रहेंगी.

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