बीजेपी के चक्कर में उमर अब्दुल्ला के निशाने पर आईं हिना शफी कौन हैं?
पेशे से डॉक्टर हिना शफी ने पिता की राजनीति विरासत संभालने के लिए राजनीति में कदम रखा लेकिन उन्होंने नेशनल कॉन्फ्रेंस या कांग्रेस को नहीं, बीजेपी को चुना.

Jammu Kashmir: 2019 में धारा 370 हटाने के साथ केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्जा खत्म करके केंद्रशासित प्रदेश बनाया. चुनी हुई सरकार रही नहीं. उपराज्यपाल जम्मू कश्मीर के सर्वेसर्वा हो गए जो बीजेपी से जुड़े थे. पहले सतपाल मलिक, अब मनोज सिन्हा. जम्मू में तो बीजेपी अरसे से है लेकिन कश्मीर में आज तक बीजेपी बड़ी ताकत नहीं बनी. एलजी ने अपने अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए बीजेपी से जुड़े लोगों को बड़े पदों पर बिठाना शुरू कर दिया. हिना शफी भट और दरख्शां अंद्राबी की नियुक्ति ऐसे ही दौर में हुई थी. हिना शफी को खादी ग्रामोद्योग बोर्ड की चेयरपर्सन और दरख्शां अंद्राबी को वक्फ बोर्ड का चेयरपर्सन बनाया था.
सत्ता में आते ही किए बदलाव
विधानसभा चुनाव के बाद उमर अब्दुल्ला ने प्रचंड बहुमत से नई सरकार बनाई. इस उम्मीद में थे कि सत्ता बदलने के बाद बीजेपी के लोग खुद ही सरकारी पद छोड़ देंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ तो गाज गिरानी पड़ी. पहली गाज गिरी हिना शफी भट पर. उमर अब्दुल्ला की सरकार ने 2 साल के लिए खादी ग्रामोद्योग बोर्ड में चेयरपर्सन नियुक्त हिना शफी को बर्खास्त कर दिया. डिप्टी सीएम और उद्योग मंत्री सुरेंदर चौधरी को खादी ग्रामोद्योग बोर्ड का नया चेयरमैन बनाया गया है. अटकलें तेज हैं कि आजकल में वक्फ बोर्ड से दरख्शां अंद्राबी को भी चलता किया जाएगा. उमर सरकार ने पांच और बोर्ड में नई नियुक्तियां की हैं जो अरसे से खाली थीं.
उमर अब्दुल्ला ने क्यों उठाया ये कदम?
सरकार बनने के बाद कई मौकों पर उमर अब्दुल्ला और पीएम मोदी का आमना-सामना हुआ. कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव जीतने, इंडिया गठबंधन के पार्टनर होने के बाद भी उमर अब्दुल्ला ने कोई कमी नहीं छोड़ी मोदी की तारीफों के पुल बांधने में. मैसेजिंग शुरू हुई कि नेशनल कॉन्फ्रेंस बीजेपी के करीब हो रही है. ये मैसेज जम्मू कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस के कोर वोटर्स को कन्फ्यूज कर रहा था कि जिससे लड़ाई है उसी के करीब हो रहे उमर अब्दुल्ला. बस यही डैमेज कंट्रोल करने के लिए उमर अब्दुल्ला ने बड़ा कदम उठाया.
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माना जा रहा है कि बीजेपी नेताओं से सरकारी पद छीनकर उमर अब्दुल्ला ने बीजेपी और अपने कैडर को मैसेज दिया कि कोई गलतफहमी में न रहे कि नेशनल कॉन्फ्रेंस और अब्दुल्ला परिवार बीजेपी के साथ या पास जा रहे हैं. ये वाला मैसेज देने के लिए उमर ने ये लिहाज भी नहीं किया कि हिना शफी नेशनल कॉन्फ्रेंस के पुराने वफादार रहे मोहम्मद शफी भट की बेटी हैं.
उमर का BJP को झटका
कश्मीर की राजनीति में हिना शफी भट और दरख्शां अंद्राबी को बीजेपी काफी प्रमोट कर रही है. बीजेपी कश्मीर घाटी की बहुत कम सीटों पर लड़ी लेकिन दोनों को टिकट देकर चुनाव लड़ाया. हिना शफी और दरख्शां अंद्राबी चुनाव तो नहीं जीत पाईं लेकिन उन्हें घाटी में जनाधार बनाने का मौका मिला. हिना शफी भट का महिला होना, मुसलमान होना, सम्मानित राजनीतिक परिवार की राजनीतिक वारिस होना, पेशे से डॉक्टर होना-ये सब वो फैक्टर हैं जो बीजेपी के काम के हैं. हिना शफी को इंगेज रखने के लिए ही खादी ग्रामोद्योग बोर्ड में हिना को बिठाया था.
2019 से हिना शफी खादी ग्रामोद्योग बोर्ड की वाइस चेयरपर्सन थीं. जनवरी 2024 में चेयरपर्सन बनाकर प्रमोशन दिया था.
कौन हैं हिना शफी?
हिना शफी के पिता मोहम्मद शफी भट नेशनल कॉन्फ्रेंस के बहुत पुराने और सीनियर नेता रहे. 1989 में श्रीनगर की लोकसभा सीट से नेशनल कॉन्फ्रेंस के टिकट पर चुनाव जीतकर सांसद बने थे. 89 वाली लोकसभा 5 साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई. 1991 में लोकसभा चुनाव जम्मू कश्मीर में नहीं हुआ. मोहम्मद शफी 1996 में विधानसभा चुनाव अमीराकदल सीट से लड़कर विधायक बने. फिर नेशनल कॉन्फ्रेंस, कांग्रेस में आना-जाना करते रहे. 2016 में निधन हो गया.
पेशे से डॉक्टर हिना शफी ने पिता की राजनीति विरासत संभालने के लिए राजनीति में कदम रखा लेकिन उन्होंने नेशनल कॉन्फ्रेंस या कांग्रेस को नहीं, बीजेपी को चुना. मुसलमानों में कम लोकप्रिय, कश्मीर घाटी में कम जनाधार के बाद भी हिना शफी ने 2014 में बीजेपी में जाने का रिस्क लिया. 10 साल हो गए. न तो कश्मीर में बीजेपी के पैर जमे, न हिना शफी की राजनीति चमकी. अब जो था वो भी उमर अब्दुल्ला-बीजेपी के चक्कर में चला गया.










