टाटा को अपना नैनो प्लांट बंगाल से ले जाना पड़ा था गुजरात, अब मिलेगा मुआवजा, जानिए पूरा किस्सा

अभिषेक गुप्ता

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Tata Group News: टाटा ग्रुप को पश्चिम बंगाल में अपने बंद नैनो प्लांट से जुड़े केस में जीत मिल गई है. तीन सदस्यीय मध्यस्थता न्यायाधिकरण ने टाटा मोटर्स के पक्ष में फैसला सुनाते हुए पश्चिम बंगाल सरकार को 765.78 करोड़ रुपए मुआवजा देने का निर्देश दिया है. यह मुआवजा टाटा ग्रुप को सिंगूर में अपने नैनो कार के प्लांट को बंद करने पर हुए नुकसान के एवज में मिलेगा. तब तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बनर्जी के विरोध के बाद टाटा ने अपना प्लांट पश्चिम बंगाल से गुजरात में शिफ्ट कर लिया था.

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क्या है मामला?

टाटा ग्रुप के पूर्व चेयरमैन रतन टाटा के ड्रीम प्रोजेक्ट नैनो कार को बनाने के लिए टाटा मोटर्स पश्चिम बंगाल के सिंगूर में एक प्लॉट लगाने वाली थी. उस समय की बुद्धदेव भट्टाचार्य के नेतृत्व वाली वामपंथी सरकार ने प्लांट का अप्रूवल देते हुए 1000 एकड़ जमीन भी दी थी. इस जमीन पर कई किसान खेती करते थे. जब कंपनी के अधिकारी निरीक्षण करने गए तब उस समय विपक्ष में मौजूद ममता बनर्जी ने किसानों को समर्थन में लेकर इसका पुरजोर विरोध किया. ममता अनशन पर बैठ गई. बाद में भूमि विवाद की वजह से रतन टाटा ने इस प्रोजेक्ट को गुजरात के साणंद में ले जाने का फैसला किया था. बंगाल में सत्ता परिवर्तन हुआ. जब ममता सत्ता में आईं तो उन्होंने कानून बनाकर 1000 एकड़ जमीन वहां के किसानों को लौटाने का फैसला किया.

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क्या था टाटा नैनो कार वाला सपना?

नैनो कार रतन टाटा की ड्रीम प्रोजेक्ट थी. उनकी योजना भारतीय परिवारों को ध्यान में रखते हुए किफायती कार बनाने की थी. उन्होंने बाईक और स्कूटर खरीदने वालों के सामने एक ऑप्शन देने की कोशिश की. कंपनी ने इसका दाम एक लाख रुपए (लखटकिया कार के नाम से मशहूर हुई) रखा था. 2009 में इसे लॉन्च किया गया. लॉन्च होते ही लाखों लोगों ने इसकी बुकिंग कराई थी. बाद में आग लगने की कई घटनाओं की वजह से लोगों की दिलचस्पी कम होती गई. टाटा मोटर्स ने 2019 में इसका उत्पादन बंद कर दिया.

 

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