राजस्थान का नक्शा बदल एक बार हार-एक बार जीत वाली सियासी परंपरा तोड़ देंगे गहलोत?

अभिषेक

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Ashok Gahlot
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राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने प्रदेश में तीन नए जिलों की घोषणा की है. ‘रामलुभाया कमेटी’ की रिपोर्ट के आधार पर अगस्त में भी गहलोत ने 19 नए जिलों का ऐलान किया था. अब तीन नए जिलों की घोषणा के बाद प्रदेश में कुल 53 जिले हो गए है. CM गहलोत का तर्क है कि जितने छोटे जिले होंगे प्रशासन तक आम जनता की पहुंच आसान होगी. जिले का विकास होगा. आखिर गहलोत इतने नए जिलें क्यों बना रहे हैं. क्या है इसके पीछे की मुख्य वजह और इससे कैसा सियासी फायदा? आइए समझते हैं.

राजस्थान में लंबे समय से नए जिलों की मांग होती रही है. कांग्रेस के साथ-साथ बीजेपी के नेता भी इसके पक्ष में रहे हैं. राजस्थान के वरिष्ठ पत्रकार मिथिलेश का कहना है कि, ‘गहलोत सरकार के नए जिलों की घोषणा करने का मुख्य उद्देश्य चुनावी लाभ लेना है. प्रदेश में कुछ ही दिनों में आचार संहिता लागू होने वाली है, जिसके बाद सभी काम ठप्प हो जाएंगे. चुनावों के बाद ही सरकार इन पर कोई कदम उठा पाएगी. नए जिलों के माध्यम से गहलोत इस चुनावी समर में आखिरी दांव खेल रहे हैं. गहलोत ने उन क्षेत्रों में नए जिलों का ऐलान किया है, जहां उनकी पार्टी का प्रदर्शन अच्छा नहीं था. अंतिम समय में इसकी वजह से वोटिंग पैटर्न में कोई बदलाव हो जाए, इसी उम्मीद में वे ऐसा कर रहे है.’

नए जिलों के बनने से जनता के मन में एक उम्मीद होती है कि उनके क्षेत्र का विकास होगा, नए मुख्यालय बनेंगे. दूसरी तरफ उनके विरोधियों का कहना है कि, इसमे बहुत खर्च होगा, सरकार जनता की मूल समस्याओं को छोड़कर जुमलेबाजी कर रही, आमजन के पैसों को बर्बाद कर रही है.

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राजस्थान में पिछले 25 सालों से एक बार जीत और एक बार हार की परंपरा रही है. कोई भी दल अपनी सत्ता को दूसरी बार बचा नहीं पाया है. अब गहलोत इसी को तोड़ने के लिए हर संभव कोशिश में लगे हुए हैं. हाल के दिनों में उन्होंने कई योजनाओं की घोषणा भी की है. अब यह देखना रोचक होगा कि गहलोत का ये नए जिले बनाने का फॉर्म्युला चुनाव में कांग्रेस की नैया पार लगा पाता है या नहीं.

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