Bihar Election: महिला सशक्तिकरण का ढोंग? चुनाव में 2,357 पुरुषों की तुलना में 258 महिलाओ को ही मिला टिकट, जानें वजह
Female Candidates Bihar: बिहार चुनाव में महिलाएं निर्णायक वोटर मानी जा रही हैं लेकिन राजनीतिक दल उन्हें चुनावी टिकट में बराबरी का मौका नहीं दे रहे. मंचों पर महिला सशक्तिकरण के नारे हैं लेकिन हकीकत में पार्टियों का भरोसा पुरुष उम्मीदवारों पर ज्यादा है.

Bihar Election 2025: पिछले कुछ चुनावों में बिहार की राजनीति में महिलाओं का वोट निर्णायक साबित हुआ है. यही कारण है कि इस बार के चुनाव में भी सभी पार्टियां महिला मतदाताओं को साधने में जुटी है. कहीं सरकारी योजनाओं का वादा किया जा रहा है, तो कहीं महिलाओं के खातों में सीधा पैसा भेजकर उन्हें खुश करने की कोशिशें हो रही हैं.
मगर जब बात टिकट बांटने की आती है तो तस्वीर पूरी तरह बदल जाती है. मंचों से 'महिला सशक्तिकरण' के नारे गूंजते हैं, लेकिन टिकट वितरण की लिस्ट में बिहार की महिलाएं आज भी हाशिए पर ही दिखाई दे रही हैं.
दरअसल इस बार के चुनाव में मैदान में कुल 258 महिला उम्मीदवार हैं, जबकि पुरुष उम्मीदवारों की संख्या 2,357 है. यह आंकड़ा पिछले 15 सालों में सबसे कम है. यानी सियासी दल मंच से महिलाओं की बराबरी की बातें तो करते हैं, लेकिन टिकट बांटने के समय वे वादे अक्सर हवा हो जाते हैं.
महिला वोटरों को रिझाने की कोशिशें
चुनाव प्रचार में महिलाएं अब “किंगमेकर” बन चुकी हैं. यही कारण है कि सत्ता पक्ष से लेकर विपक्ष तक, सभी उनके लिए खास योजनाओं और वादों का पिटारा खोल रहे हैं. नीतीश सरकार की मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत प्रदेश के 1.25 करोड़ महिलाओं के खातों में 10,000 रुपये ट्रांसफर किए जा चुके हैं. इसके अलावा पुलिस भर्ती में 35% और पंचायत चुनावों में 50% आरक्षण महिलाओं को दिया गया है.
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वहीं, विपक्षी महागठबंधन की बात करें तो ये पार्टी भी महिलाओं को लुभाने में पीछे नहीं है. महागठबंधन ने ‘माई-बहन मान योजना’ का ऐलान किया है, जिसके तहत सभी महिला को हर महीने 2,500 रुपये देने का वादा किया गया है.
टिकट नहीं देने की सफाई
जब दलों से पूछा गया कि उन्होंने महिलाओं को कम टिकट क्यों दिए, तो लगभग सभी ने एक ही तर्क दिया विनेबिलिटी, यानी जीतने की संभावना कम होना.
अब पिछले विधानसभा चुनाव में महिला उम्मीदवारों की बात की जाए तो उस वक्त 370 महिला उम्मीदवारों में से केवल 26 प्रत्याशी ही जीत पाईं, यानी उनकी सफलता दर लगभग 7% रही. वहीं, पुरुष उम्मीदवारों की जीत दर करीब 10% थी.
राजनीतिक दलों का कहना है कि वे टिकट वहां देते हैं जहां जीतने का भरोसा ज्यादा होता है, इसलिए महिलाओं को कम मौका मिला.
किसने कितनी महिलाओं को दिया मौका
अगर पार्टियों की बात करें तो बसपा (BSP) ने सबसे ज्यादा 26 महिला उम्मीदवार उतारे हैं. वहीं जन सुराज ने 25, RJD ने 23, जबकि जेडीयू और बीजेपी ने इस चुनावी में मौदान में कुल 13-13 महिला प्रत्याशियों को टिकट दिया है. कांग्रेस इस मामले में सबसे पीछे रही है. पार्टी ने केवल 5 महिलाओं को चुनावी मैदान में उतारा है.
यह आंकड़ा साफ दिखाता है कि बिहार की सियासत में महिलाएं अभी भी वोट बैंक तो हैं, लेकिन नेता बनने की राह में उन्हें बराबरी का मौका नहीं मिल पा रहा. चुनावी भाषणों में “महिला सशक्तिकरण” की बातें जरूर होती हैं, मगर टिकट बंटवारे में वही पुराना रवैया दिखाई देता है वादे बड़े, हिस्सेदारी छोटी.
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