दुनिया के सबसे महंगी किताब 'मैं' के लेखक रत्नेश्वर कौन हैं? 15 करोड़ क्यों रखी कीमत?
MAIN Book Patna: पटना पुस्तक मेले में लॉन्च हुई दुनिया की सबसे महंगी किताब ‘मैं’ की कीमत 15 करोड़ रुपए रखी गई है. इस अनोखी किताब को लेखक रत्नेश्वर ने मात्र 3 घंटे 24 मिनट में लिखा और दावा किया कि उन्होंने ब्रह्मलोक की यात्रा और रासलीला के प्रत्यक्ष दर्शन के बाद यह ग्रंथ तैयार किया है. जानें इस किताब में क्या है, इसकी कीमत 15 करोड़ क्यों रखी गई, और कौन हैं इसके लेखक रत्नेश्वर.

MAIN Book Patna: दुनिया भर में किताब पढ़ने के शौकीन तो कई लोग हैं, लेकिन अगर उन्हें कहा जाए कि एक किताब है जिसकी कीमत 15 करोड़ है तो कोई भी सोच में पड़ जाएगा. सबके मन में पहला सवाल यहीं आएगा कि आखिर इस किताब में ऐसा क्या है कि 15 करोड़ रुपए देने पड़ेंगे. दरअसल पटना के पुस्तक मेला(Book Fair) में एक किताब का विमोचन हुआ है, जिसकी कीमत 15 करोड़ रुपए रखी गई है. इस किताब का नाम 'मैं' रखा गया है. किताब के लेखक रत्नेश्वर है और उन्होंने कहा कि इस किताब को लिखने के लिए उन्होंने ब्रह्मलोक की यात्रा की है. साथ ही उन्होंने रासलीला के प्रत्यक्ष दर्शन किए है और कहा है कि यह किताब बताती है कि ज्ञान की परम अवस्था क्या है.
इस किताब के विमोचन के बाद ही चर्चाएं तेज हो गई है कि आखिर इस किताब में क्या है, इस किताब के लेखक कौन हैं, और सबसे महत्वपूर्ण बात की इस किताब की मूल्य कैसे तय की गई है. आइए विस्तार से जानते हैं इन्हीं सवालों के जवाब...
पहले जानते हैं किताब में क्या है?
'मैं' किताब के लेखक रत्नेश्वर दावा करते है कि यह कोई सामान्य तरीके से लिखी गई किताब नहीं है. 43 चैप्टर और 408 पन्नों वाली इस किताब को रत्नेश्वर ने सिर्फ 3 घंटे और 24 मिनट में ही लिख दिया है. लेखक रत्नेश्वर के मुताबिक उन्होंने यह पुस्तक 6-7 सितंबर 2006 को ब्रह्म मुहूर्त में लिखी. सुबह 3 बजे से 6:24 बजे के बीच इसकी रचना की गई है. रत्नेश्वर ने इस किताब को लेकर कहा कि,
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'यह ग्रंथ उदय है और इस ग्रंथ में ज्ञान की परम अवस्था का आविष्कार है, जो कि मूल बात है. मतलब ज्ञान की परम अवस्था इसका अर्थ ये हुआ कि जैसे आप किसी भी जीव के लिए जीवन के लिए या ईश्वर के लिए भगवान के लिए जैसे मान लीजिए बुद्ध के लिए आप ये जब सुनते हैं कि उनको ज्ञान प्राप्त हो गया था तो वह कौन सी अवस्था थी जिसके बाद यह कहा जाने लगा कि उनको ज्ञान प्राप्त हो गया. उस अवस्था के बारे में यह पहला ग्रंथ है संसार का जिसमें बताया गया है कि वह ज्ञान की परम अवस्था क्या है?'
किताब में क्या कुछ है?
रत्नेश्वर के मुताबिक लेखन के दौरान उन्होंने अपने भीतर और बाहर की अनुभूत यात्रा, रासलीला के प्रत्यक्ष साक्षात्कार और ध्यान-ज्ञान से प्राप्त अनुभवों को शब्दों में पिरोया. उनका दावा है कि यह एक ऐसी पुस्तक है जिसमें दुखों के अंत और ईश्वर-दर्शन का मार्ग मिलता है. रत्नेश्वर ने न्यूज एजेंसी एएनआई को दिए एक बयान में कहा कि,
'मैं उस स्ट्रक्चर में लोगों को नहीं लाना चाहता हूं जो अभी तक आए ग्रंथ करत रहे हैं. मैं नहीं चाहता कि उसमें जो लिखा है लोग उसी पर खड़े हो जाए. मैं तो लोगों को उनकी यात्रा की ओर ले जाना चाहता हूं. मैं अपनी यात्रा में लोगों को नहीं स्ट्रक्चर करना चाहता हूं. मैं नहीं चाहता कि आपको यह मनवाने का प्रयास करूं कि तुम यह मान लो कि मैंने ऐसी यात्रा की और मैंने यह सब देखा. तुम स्वयं अपनी यात्रा पर आगे बढ़ो और खुद देख लो. तब तुम्हें पता चलेगा कि तुम्हारा तुम्हारा जो खरबों वर्षों की यात्रा है तुम्हारी वो क्या थी? कैसी थी और आज तुम जो हो तुम वहीं क्यों हो ये भी तुम देख पाओगे.'
किताब की कीमत क्यों पड़ी 15 करोड़ रुपए?
इसे लेकर लेखक रत्नेश्वर का अपना तर्क है. उन्होंने किताब की कीमत के बारे में कहा कि, 'जिस तरह से मेरा दर्शन है और मैंने ब्रह्म की पूरी यात्रा की, उसी में मुझे इसकी कीमत भी मिली कि इस ग्रंथ की कीमत ₹15 करोड़ रखनी चाहिए. नहीं तो हम इसका कुछ भी कीमत रख सकते थे. 50 करोड़ भी रख सकते थे, 100 करोड़ भी रख सकते थे. 15 करोड़ ही क्यों? यह मेरे द्वारा तय किया हुआ नहीं है. यह ब्रह्म के द्वारा तय किया हुआ है.
कौन हैं लेखक रत्नेश्वर?
एक ओर किताब की चर्चा हो रही तो दूसरी ओर लोग लेखक को भी ढूंढ रहे है. लोगों के मन में एक सवाल गूंज रहा है कि दुनिया की सबसे महंगी किताब का लेखक आखिर कौन हैं और उनकी पहचान क्या है. तो इस किताब के लेखक है बिहार के वारसलीगंज में 1966 में जन्मे रत्नेश्वर. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक रत्नेश्वर की शुरुआती जिंदगी काफी परेशानियों में भरी रही. जब वे महज 4 साल के थे तो उनके पिता का निधन हो गया. जब वे 10वीं की परीक्षा दे रहे थे तो परिवार में बंटवारा हुआ और उनकी झोली में सिर्फ 7 रुपए आए. फिर ऐसा समय आया कि उनके पास खाने को पैसा नहीं थे तो उन्होंने सत्तू, नमक और प्याज के सहारे अपनी जिंदगी बिताई.
रत्नेश्वर जब इन मुश्किलों से पार पा ही रहे थे तब उन्हें 10,000 का कर्ज चुकाने का नोटिस थमा दिया गया, जो पैसे उन्होंने अपने बड़े भाई की बेटी के शादी दौरान उधार लिए थे. इस कर्ज को चुकाने के लिए उन्होंने अपनी मां के गहने बेच दिए. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो वह रोज 8 किलोमीटर पैदल चलकर अपने खेत पर काम करने के लिए भी जाते थे.
स्कूल से ही कहानी सुनाने का था शौक
रत्नेश्वर को स्कूल से ही कहानी सुनाने का शौक था. वे बिना किसी तैयारी के तुरंत ही दिलचस्प कहानियां सुना देते थे. फिर धीरे-धीरे समय का पहिया बढ़ते गया और वे अपनी आगे की पढ़ाई के लिए नागपुर पहुंचे. फिर 1988 में रत्नेश्वर ने 22 साल की उम्र में कहानी 'मैं जयचंद नहीं' लिखी, जिसके बाद उनकी जिंदगी की दिशा बदली. एक अखबार के फीचर संपादक ने उन्हें मिलने के बुलाया और फिर उन्होंने प्रशिक्षु पत्रकार(Trainee Journalist) के रूप में काम करना शुरू किया. हालांकि उन्होंने ज्यादा दिन तक अखबार में नौकरी नहीं की थी.
देश के बड़े-बड़े यूनिवर्सिटी में पढ़ाया
इसी बीच रत्नेश्वर का लिखने का काम जारी रहा और फिर उन्होंने मास कम्युनिकेशन पढ़ाना शुरू किया. उन्होंने पटना यूनिवर्सिटी, रांची यूनिवर्सिटी, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय(BHU), दिल्ली यूनिवर्सिटी(DU) और IIMC में अतिथि शिक्षक(Guest Lecturer) रहें. साल 2006 में वे मुंबई चले गए और टीवी शो 'मानो या ना मानो' की पटकथा लिखी और वहीं से उनकी जिंदगी ने नई दिशा ले रखी है. रत्नेश्वर ने कई किताबें जैसे 'जीत का जादू', 'रेखना मेरी जान' जैसी कई किताबें और लिखी है. फिलहाल वे पटना में रहते है और पढ़ाने के साथ-साथ लिखने का काम भी करते है.
'मैं' की खूब हो रही चर्चा
फिलहाल किताब प्रेमियों के बीच 'मैं' किताब को लेकर जबरदस्त चर्चा हो रही है. किताब प्रेमियों के अलावा भी लोग इस किताब को पढ़ना चाहते है जानना चाहता है कि आखिर इस किताब में जीवन के कौन से राज छिपे हुए है.
क्या किताब पढ़ने के लिए होना होगा करोड़पति?
इस किताब की कीमत को लेकर लोगों चर्चा कर रहे है कि क्या इस किताब को पढ़ने के लिए पहले करोड़पति बनना पड़ेगा? तो इसके लिए भी लेखक रत्नेश्वर ने कहा कि 'मैं' किताब के केवल तीन ही कॉपी है और इसे संसार में किसी को भी दी जा सकती है. साथ ही जो लोग किताब पढ़ना चाहते है तो उनके लिए कुछ केंद्र स्थापित किए जाएंगे जहां यह किताब उपलब्ध रहेगी और वहां से लोग देख सकते हैं, सुन सकते हैं, पढ़ सकते हैं.










