स्कूल के प्रिंसिपल पर बच्चों के साथ-साथ कुत्तों की भी जिम्मेंदारी, छत्तीसगढ़ सरकार के फैसले पर कांग्रेस का एतराज, क्या है मामला

छत्तीसगढ़ सरकार ने स्कूलों में आवारा कुत्तों की निगरानी और रिपोर्टिंग की जिम्मेदारी अब प्रिंसिपल को दे दी है. इस फैसले का शिक्षकों और विपक्ष ने विरोध करते हुए कहा कि इससे पढ़ाई प्रभावित होगी क्योंकि गैर-शैक्षणिक काम बढ़ जाते हैं.

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भारत में पिछले कुछ दिनों से शिक्षकों पर बच्चों को पढ़ाने के अलावा भी कई अलग अलग गैर शैक्षिक कार्य थोपें जा रहे हैं. इनमें से सबसे आम है SIR की ड्यूटी. पिछले कुछ महीनों में कई शिक्षकों ने काम के प्रेशन में आकर अपनी जान तक लेने जैसे बड़े कदम उठा लिए हैं. 

टीचर्स को लेकर तमान विवाद और वर्क प्रेशर के बीच छत्तीसगढ़ सरकार ने स्कूल के प्रिंसिपल के लिए एक बड़ा ही अजीब सा फरमान सुना दिया है. दरअसल छत्तीसगढ़ सरकार ने एक नया नियम लागू किया है जिसमें अब स्कूलों के प्रिंसिपल को स्कूल के अंदर और आसपास घूमने वाले आवारा कुत्तों पर नजर रखने की जिम्मेदारी दी गई है. सरकार का कहना है कि यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के पालन में लिया गया है.

सरकार ने आदेश में बताया कि राज्य के सभी स्कूलों के प्रिंसिपल को नोडल अधिकारी बनाया गया है. अगर स्कूल के अंदर या बाहर किसी भी जगह आवारा कुत्ते दिखते हैं तो प्रिंसिपल को तुरंत ग्राम पंचायत, जनपद पंचायत या नगर निगम के डॉग-कैचर अधिकारी को इसकी सूचना देनी होगी. साथ ही, स्कूलों को कुत्तों को बाहर रखने के लिए गेट, ग्रिल या अन्य सुरक्षा इंतजाम लगाने होंगे.

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टीकाकरण की जिम्मेदारी स्कूल प्रशासन पर

अगर किसी बच्चे को स्कूल में कुत्ता काट लेता है तो बच्चा तुरंत नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र ले जाने की पूरी जिम्मेदारी स्कूल प्रशासन की होगी. इस फैसले का विरोध भी शुरू हो गया है. कांग्रेस प्रवक्ता सुशील आनंद शुक्ला ने सवाल उठाते हुए कहा कि जब नगर निगम और दूसरे विभागों में कर्मचारी मौजूद हैं तो यह काम शिक्षकों से क्यों करवाया जा रहा है? उन्होंने कहा, 'शिक्षकों को पहले ही चुनावी कामों में लगाया जा रहा है, जिससे पढ़ाई प्रभावित हो रही है. लगता है कि सरकार को शिक्षा की चिंता नहीं है.'

शिक्षकों ने जताई आपत्ति

कुछ शिक्षकों ने भी आपत्ति जताई कि शिक्षा विभाग को गैर-शैक्षणिक कामों की प्रयोगशाला बनाकर रखा गया है. उनका कहना है कि इस तरह की अतिरिक्त जिम्मेदारियां देने से उनका असली काम यानी बच्चों को पढ़ाना, प्रभावित होगा.

सरकार के इस फैसले पर अब सवाल उठने लगे हैं कि क्या शिक्षकों पर लगातार बढ़ते गैर-शैक्षणिक कामों का बोझ बच्चों की पढ़ाई पर असर डालेगा.

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