DUSU Elections 2025: NSUI की जोसलीन नंदिता चौधरी के हार के पीछे के क्या ये हैं 5 कारण? 

DUSU Elections 2025: NSUI की जोसलीन चौधरी ABVP से हारीं, टिकट बंटवारा, फूट, अनुभव की कमी और सोशल मीडिया कैंपेन बने हार के बड़े कारण.

NSUI candidate Jocelyn Nandita Chaudhary loses DUSU elections 2025 to ABVP with 5 key reasons behind defeat
जोसलीन चौधरी
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दिल्ली यूनिवर्सिटी छात्र संघ(डूसू) चुनाव 2025 के नतीजे काफी चौंकाने वाले थे. इस बार अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने तीन पदों पर शानदारी जीत हासिल की, जबकि नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (एनएसयूआई) के पाले में सिर्फ पद गया. इस चुनाव में सबसे बड़ी हार अध्यक्ष पद पर मानी जा रही है जहां ABVP के आर्यन मान ने NSUI के जोसलीन नंदिता चौधरी को 16000 के अधिक वोटों से हराया.

डूसू जैसे छोटे चुनाव में इतने वोट का मार्जिन बहुत बड़ा माना जाता है. अब सवाल आता है कि NSUI की इतनी बुरी हार क्यों हुई? जोसलीन चौधरी की इतनी बुरी हार क्यों हुई? आइए विस्तार से जानते है इस हार के पीछे के 5 ऐसे फैक्टर जिसने पलट दिया पाला.

पहला फैक्टर- टिकट बंटवारा और फूट

इस हार का सबसे पहला फैक्टर टिकट बंटवारे को माना जा रहा है. मिली जानकारी के मुताबिक NSUI में जब मजबूत दावेदारों को दरकिनार कर जोसलीन चौधरी को टिकट दिया गया, तो पार्टी में फूट पड़ गई. उमंशी लांबा और दिव्यांशु यादव जैसे दावेदार, जिन्हें टिकट नहीं मिला, बागी होकर निर्दलीय चुनाव में उतर गए. इससे NSUI का वोट बैंक बिखर गया, जिसका सीधा फायदा ABVP को मिला.

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ABVP ने अपने असंतुष्ट दावेदारों को एकजुट रखा, जबकि NSUI का पूरा समर्थन जोसलीन नंदिता चौधरी को नहीं मिल पाया. इसी वजह से ABVP की बड़ी जीत हुई.

दूसरा फैक्टर- उमांशी लांबा का इमोशनल कनेक्ट

जोसलीन नंदिता चौधरी की हार का दूसरा फैक्टर उमांशी लांबा और उसका इमोशनल कनेक्ट माना जा रहा है. NSUI से टिकट नहीं मिलने की वजह से उमांशी लांबा ने रोते हुए भावनात्मक रुप से स्टूडेंट से अपील की, जो की उनके दिल में घर की गई. निर्दलीय चुनाव लड़ने के बावजूद उन्हें 5500 से ज्यादा वोट मिले जो कि एक तरह से NSUI के ही वोट थे. उमांशी के इमोशनल अटैच ने जोसलीन का खेल बिगाड़ दिया और वह मैदान में हार गई.

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तीसरा फैक्टर- अनुभव की कमी

इस हार का तीसरा और महत्वपूर्ण फैक्टर जोसलीन नंदिता चौधरी का कम अनुभव माना जा रहा है. दरअसल जोसलीन को NSUI जॉइन करने बहुत कम समय हुआ था और उन्हें प्रेसिडेंट का टिकट मिल गया. वहीं NSUI में दूसरे और दावेदार है जो बहुत लंबे समय से संगठन से जुड़े थे और उनका ग्राउंड कनेक्ट भी बढ़िया था.

जोसलीन नंदिता चौधरी को स्टूडेंट पॉलिटिक्स में काफी कम अनुभव था और उनका ग्राउंड कनेक्ट भी काफी कम था, जिससे वो स्टूडेंट से ज्यादा कनेक्ट नहीं कर पाई और उन्हें हार का सामना करना पड़ा.

चौथा फैक्टर- सोशल मीडिया बनाम ग्राउंड कनेक्ट

इस हार का और फैक्टर सामने आ रहा है कि, उमांशी लांबा के लिए स्टूडेंट के बीच सहानुभूति की लहर थी. इसके अलावा NSUI ने पूरा चुनाव हरियाणा बनाम राजस्थान की लॉबी का बना दिया. यह भी कहा जा रहा है कि जोसलीन के कैंपन में जो भीड़ दिख रही थी वो ज्यादातर राजस्थान से लाई हुई भीड़ थी और उसमें दिल्ली यूनिवर्सिटी के कम स्टूडेंट थे. साथ ही जोसलीन का प्रचार कॉलेज कैंपस के बजाय सोशल मीडिया पर ज्यादा चल रहा था. इसी कारण जोसलीन का ज्यादा स्टूडेंट कनेक्ट नहीं हो पाया और उनकी लोकप्रियता नहीं बढ़ पाई.

इसके साथ ही एक और कहानी सामने आ रही है कि सोशल मीडिया पर जोसलीन चौधरी की पॉपुलैरिटी की वजह से ही उन्हें NSUI ने टिकट दिया है. लेकिन कैंपस और स्टूडेंट राजनीति में उनकी पकड़ नहीं होने की वजह से उन्हें करारी हार मिली.

पांचवां फैक्टर- जातिगत राजनीति

इसी कड़ी में एक और और बड़ा फैक्टर जातिगत राजनीति का भी सामने आया है. इस पूरे चुनाव में जोसलीन पर कभी जाति को लेकर, कभी धर्म बदलने को लेकर तो कभी फर्जी डिग्री को लेकर पसर्नल अटैक किए गए. और इन चीजों को लेकर सोशल मीडिया पर अलग-अलग तरह के नैरेटिव्स भी गढ़े गए और इसका सीधा नुकसान जोसलीन की छवि पर हुआ.

इन फैक्टर्स को अगर ध्यान से देखा जाए तो यह साफ दिखता है कि यह लड़ाई NSUI बनाम ABVP कम, NSUI के अंदर अपने में ही ज्यादा लड़ी जा रही थी. NSUI के अंदर फूट और असंतोष के कारण इनकी हार हुई और ABVP को इसका भरपूर फायदा मिला और तीन पदों पर शानदार जीत हासिल की.

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