चक्रव्यूह में फंसा नहीं… बस निकल आया, इस्तीफे के बाद जगदीप धनकड़ ने पहली बार तोड़ी चुप्पी, क्या कहा?

उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफे के बाद पहली बार बोले जगदीप धनकड़ ने नैरेटिव के 'चक्रव्यूह' का जिक्र करके सियासी संकेत दे दिए. हंसी-मजाक के अंदाज में दिए उनके बयान सोशल मीडिया पर चर्चा बटोर रहे हैं और सवाल उठा रहे हैं कि असली वजह क्या थी?

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चार महीने पहले अचानक उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने वाले जगदीप धनकड़ ने शुक्रवार यानी 21 नवंबर को अपना पहला बड़ा सार्वजनिक भाषण दिया और उसमें उन्होंने न सिर्फ चुप्पी तोड़ी, बल्कि ऐसे संकेत भी छोड़ दिए जो राजनैतिक तह तक सवाल खड़े कर रहे हैं.

धनकड़ ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) कार्यकारिणी सदस्य डॉ. मनमोहन वैद्य की पुस्तक हम और यह विश्व के विमोचन समारोह में कहा, 'भगवान करे कि कोई नैरेटिव के चक्कर में ना फंसे, अगर कोई फंस गया तो निकलना बड़ा मुश्किल है.' 

हालंकि उन्होंने इसी बयान में तुरंत यह भी जोड़ दिया कि मैं अपना उदाहरण नहीं दे रहा हूं. ये बात सुनकर कई लोगों को लगा कि वे फिर भी अपने ही हाल-ए-दिल की तरफ इशारा कर रहे हैं, शायद उनके इस्तीफे और उसके पीछे की सियासी जद्दोजहद का दर्द अभी भी जिंदा है.

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भाषण में उन्होंने क्या कहा

इसी भाषण के दौरान कहा कि किसी स्टाफ ने उन्हें याद दिलाया कि उन्हें शाम 7:30 बजे दिल्ली के लिए फ्लाइट पकड़नी है. जवाब में धनकड़ ने मजाकिया अंदाज में कहा, 'मैं फ्लाइट पकड़ने की चिंता से अपना कर्तव्य नहीं छोड़ सकता और मेरा हाल-ए-मंजिल, मेरा रीसेंट पास्ट इसका सबूत है.'

इस बयान के बाद कई लोग सवाल उठाने लगें कि क्या वाकई धनखड़ ने स्वास्थ्य कारणों से इस्तीफा दिया था या इसके पीछे कोई और वजह है

आरएसएस का समर्थन और व्यापक दृष्टिकोण

धनकड़ ने अपनी बातों में आरएसएस की दर्शनशक्ति की भी जमकर प्रशंसा की. उन्होंने दावा किया कि वैद्य की किताब उन 'गल-फहमियों' को दूर करती है जो आरएसएस को चरमपंथी या अल्पसंख्यक- विरोधी दिखाने की कोशिश करती हैं. 

इसके साथ ही उन्होंने कहा कि आज की दुनिया में नैतिकता, अध्यात्म और बुद्धिमत्ता से लोग दूर होते जा रहे हैं. वे सूचना युग की चुनौतियों जैसे तकनिकी बदलाव, इंटरनेट, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आदि की तरफ भी इशारा करते हुए बोले कि भारत को अपनी 'सभ्यात्मक गहराइयों' से जुड़कर खुद को मजबूत करना चाहिए.

21 जुलाई को दिया था इस्तीफा 

धनकड़ ने 21 जुलाई 2025 को स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया था. लेकिन उनका अचानक इस्तीफा और लंबे समय तक सार्वजनिक गायब रहना राजनीतिक सुर्खियों में बना रहा. कई समीक्षक इसे सत्ता और नैरेटिव पॉलिटिक्स के बीच गहरे रिश्ते की ओर इशारा मानते रहे हैं. 

वहीं उनकी 'नैरेटिव चक्रव्यूह' वाली बात सोशल मीडिया पर तेजी से चर्चा का विषय बन गई है. कई लोग पूछ रहे हैं कि वो कौन सी कहानी है जिसमें धनकड़ फंसे थे? उनका अचानक इस्तीफा क्या सिर्फ स्वास्थ्य के कारण नहीं था बल्कि कहीं एक बड़ी सियासी चतुराई का नतीजा था?

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