निक्की ही नहीं, इन मामलो में भी मचा था बवाल, क्यों नहीं रुक रही भारत में दहेज की ये खूनी परंपरा?

अलका कुमारी

Dowry cases in India: ग्रेटर नोएडा की निक्की की दर्दनाक मौत ने भारत में जारी दहेज प्रथा और उससे जुड़ी हिंसा की भयावह सच्चाई को उजागर किया है.

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ग्रेटर नोएडा की निक्की की दिल दहला देने वाली तस्वीरें और वीडियो ने पूरे देश को झकझोर दिया है. शादी, जो किसी भी लड़की की जिंदगी में एक नई शुरुआत मानी जाती है, निक्की के लिए एक ऐसा दोजख बन गई जहां से बाहर निकलने का रास्ता आग के दरवाजे से था. 

आरोप है कि दहेज की मांग पूरी न होने पर उसके ही पति विपिन ने उसके साथ मारपीट की और उसे आग के हवाले कर दिया. इस मामले में फिलहाल जांच जारी है. लेकिन निक्की के साथ जो हुआ, वह न केवल एक व्यक्ति या परिवार की क्रूरता का प्रमाण है, बल्कि ये देश में फैली उस गहरी सामाजिक बीमारी का चेहरा भी है जिसे हम दहेज प्रथा कहते हैं.

हर दिन 18 दहेज मौतें: यह कैसा समाज?

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर दिन औसतन 18 महिलाएं दहेज के कारण अपनी जान गंवाती हैं. यह आंकड़ा जितना भयावह नजर आ रहा है, उतना ही शर्मनाक भी है. 

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इसी रिपोर्ट के अनुसार देश में साल 2017 से 2022 के बीच हर साल औसतन 7,000 मौतें दहेज के कारण हुई है. हालांकि ये केवल उन मामलों की संख्या है जिसकी एफआईआर दर्ज की गई है. असल संख्या इससे कहीं ज्यादा हो सकती है क्योंकि कई परिवार सामाजिक दबाव, डर या रिश्वतखोरी के कारण केस दर्ज ही नहीं कराते हैं.

दहेज से जुड़े हाल के कुछ मामले जान लीजिए

भारत के पिछले कुछ दिनों में अलग-अलग हिस्सों से जो दहेज से जुड़ी घटनाएं सामने आईं, वे इस त्रासदी को और स्पष्ट करती हैं:

  • अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश): एक महिला को गर्म इस्त्री से जलाकर मारा गया.
  • पिलीभीत (उत्तर प्रदेश): एक महिला को जिंदा जला दिया गया क्योंकि दहेज की मांग पूरी नहीं हुई.
  • चंडीगढ़: एक नवविवाहिता महिला ने आत्महत्या कर ली क्योंकि उसे दहेज के लिए हर रोज प्रताड़ित किया जा रहा था.
  • पोननेरी (तमिलनाडु): शादी के चार दिन बाद ही दहेज प्रताड़ना के कारण आत्महत्या.
  • तिरुपुर (तमिलनाडु): शादी के दो महीने बाद एक और महिला ने अपनी जान दे दी.

इन घटनाओं से यह स्पष्ट होता है कि दहेज सिर्फ एक आर्थिक लेन-देन नहीं, बल्कि महिलाओं की जान का सौदा बन चुका है.

कानून की सुस्त प्रक्रिया बड़ी वजह

साल 2017 से 2022 के बीच भारत में हर साल औसतन 7,000 दहेज मृत्यु मामलों में से मात्र 4,500 मामलों में ही चार्जशीट दाखिल हुई. बाकी बचे मामले या तो फाइलों में अटक गए या सबूतों की कमी, समझौते, या गलतफहमी के नाम पर बंद कर दिए गए.

वहीं साल 2022 के अंत तक भारत में लगभग 3,000 मामले जांच के स्तर पर अटके हुए थे, जिनमें से 67% मामलों में छह महीने से भी ज्यादा का समय बीत चुका था, और जब चार्जशीट दाखिल होती भी है, तो 70% मामलों में दो महीने से ज्यादा की देरी होती है. 

अदालतों की तस्वीर और भी भयावह

वहीं जब मामला अदालत तक पहुंचता है, तब भी न्याय मिलना आसान नहीं होता. एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार हर साल औसतन 6,500 दहेज मृत्यु मामले ट्रायल के लिए कोर्ट में भेजे जाते हैं, लेकिन इनमे से मात्र 100 मामलों में ही सजा होती है.

बाकी केस या तो पेंडिग रहते हैं, या आरोपियों को बरी कर दिया जाता है. कई बार पीड़िता के परिवार पर समझौते का दबाव भी डाला जाता है और केस वापस नहीं लेने पर उन्हें धमकाया और डराया भी जाता है.

कौन हैं सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य?

  • 2017 से 2022 तक के आंकड़ों की मानें तो 60% दहेज हत्याएं सिर्फ तीन राज्यों, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और बिहार में दर्ज हुईं.  
  • इनके अलावा यूपी, झारखंड, एमपी, राजस्थान और हरियाणा में भी इस तरह के मामलों की संख्या काफी चिंताजनक है. 
  • राजधानी दिल्ली की बात की जाए तो यहां अकेले 19 बड़े शहरों में से 30% दहेज मृत्यु मामले दर्ज हुए. यह किसी एक शहर में सबसे ज्यादा संख्या है. 

क्या है कानून

भारत में दहेज प्रथा को रोकने के लिए 1961 में "दहेज निषेध अधिनियम" बनाया गया था. इसके अलावा भारतीय दंड संहिता की धारा 304B के तहत अगर शादी के सात साल के अंदर महिला की असामान्य मौत होती है और उसे दहेज के लिए प्रताड़ित किया गया हो, तो उसे दहेज हत्या माना जाता है. लेकिन इन कानूनों का प्रभावी क्रियान्वयन आज भी एक सपना ही है.

ऐसे मामलों के बारे में जान लीजिए, जिन्होंने देश को हिला दिया था

1. सुधा गोयल केस (1983)- साल 1983 में सुधा गोयल का मामला काफी सुर्खियों में आया था. ये एक दहेज हत्या का मामला था जिसमें एक गर्भवती महिला, सुधा गोयल को जलाकर मार दिया गया था. इस मामले में सत्र न्यायालय के जज एस.एम. अग्रवाल ने सुधा के पति, उसकी मां और भाई को मौत की सजा सुनाई थी, जिसमें उन्होंने पड़ोसियों की गवाही और सुधा के चिल्लाने को महत्वपूर्ण माना था. 

हालांकि, दिल्ली हाईकोर्ट ने सेशन कोर्ट के इस फैसले को पलट दिया था और तीनों को बरी कर दिया था. दिल्ली हाईकोर्ट के जज ने उनके द्वारा लिखित बयान और अन्य सबूतों पर अधिक भरोसा किया, जिसमें पड़ोसियों के बयानों में विरोधाभास पाया गया. इस केस में परिवार को बरी किए जाने के बाद महिला संगठनों ने न्यायाधीशों पर सामाजिक वास्तविकताओं को नजरअंदाज करने का आरोप लगाया था. 

इसी केस के बाद भारतीय दंड संहिता (IPC) में धारा 498-ए (दहेज प्रताड़ना) और धारा 304-बी (दहेज हत्या) को शामिल किया गया.

2. तरविंदर कौर केस- 1 जून 1979 को तरविंदर कौर नाम की एक महिला की दिल्ली में उसके ससुराल में मृत्यु हो गई. परिवारवालों ने इसे आत्महत्या बताया. लेकिन, महिला अधिकार संगठनों ने इस घटना को दहेज के लिए हत्या का मामला बताया और इसके खिलाफ जमकर प्रदर्शन शुरू किया. 

महिला संगठन के अनुसार तरविंदर की मौत की वजह उसके ससुराल वालों द्वारा दहेज की मांग पूरी न होने पर उसे जलाना था. इस केस ने दिखाया कि कैसे दहेज हत्याओं को अक्सर आत्महत्या या दुर्घटना का रूप दिया जाता है.

3. प्रियंका केस (2010)- इस मामले में प्रियंका नामक एक महिला ने अपने ससुराल वालों की दहेज की मांग पूरी नहीं की तो बदले में उस प्रताड़ित किया गया और बाद में उसकी संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु हो गई. 

इस केस ने साल 2010 में मीडिया का खूब ध्यान खींचा था और दहेज के खिलाफ जागरूकता बढ़ाने में मदद की. इस घटना ने एक बार फिर समाज को सोचने पर मजबूर किया कि यह समस्या कितनी गहरी है और इसके खिलाफ लगातार आवाज उठाना कितना जरूरी है.

4. अंजू वर्मा केस (2020)- अंजू वर्मा के साथ उसके पति और ससुराल वालों ने दहेज के लिए प्रताड़ित किया और बाद में उसकी हत्या कर दी. इस केस ने सोशल मीडिया और समाचारों में काफी हलचल मचाई थी. यह मामला दिखाता है कि कड़े कानूनों के बावजूद भी दहेज की मानसिकता समाज में अभी भी मौजूद है और महिलाओं को प्रताड़ना का शिकार होना पड़ता है.

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