Pahalgam Attack के बाद राहुल गांधी और संघ प्रमुख मोहन भागवत के मिले सुर से सुर?

विजय विद्रोही

Pahalgam terror attack: पहलगाम हमले के बाद राहुल गांधी और मोहन भागवत ने आतंकवाद पर मोदी से कड़ी कार्रवाई की अपील की है. पहली बार भारतीय राजनीति में विपक्ष और सरकार इस तरह से एकजुट नजर आ रहे हैं. हमले के बाद से अब पूरे देश की निगाहें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर टिकी हैं.

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Pahalgam terror attack: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हालिया आतंकी हमले के बाद भारतीय राजनीति में एक अभूतपूर्व एकजुटता देखने को मिल रही है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने एक स्वर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से निर्णायक कदम उठाने की अपील की है. दोनों ने लगभग एक ही भाषा में कहा है, "हे मोदी, मोर्चा संभालो, कुछ करो." यह भारतीय राजनीति में एक अनोखा और महत्वपूर्ण क्षण है, जहां विपक्ष और सत्ताधारी विचारधारा के बीच समन्वय दिखाई दे रहा है.

राहुल गांधी का परिपक्व रुख

पहलगाम हमले के बाद राहुल गांधी और कांग्रेस ने 2019 के लोकसभा चुनाव की गलतियों से सबक लेते हुए कोई भी ऐसा बयान देने से परहेज किया, जिससे राजनीतिक विवाद खड़ा हो. राहुल गांधी ने अपना अमेरिका दौरा रद्द कर सर्वदलीय बैठक में हिस्सा लिया और कश्मीर जाकर पीड़ितों के साथ मोमबत्ती जलाकर एकजुटता दिखाई. उन्होंने बार-बार दोहराया, "हम मोदी जी के साथ हैं, पूरा देश उनके साथ है. जो करना है, करें, हम समर्थन देंगे." यह रुख जनता के मूड को समझने और राष्ट्रवाद के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है.

मोहन भागवत का राजधर्म का संदेश

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने बिना पाकिस्तान या मोदी का नाम लिए एक गूढ़ संदेश दिया. उन्होंने कहा, "भारतीय प्रकृति से अहिंसक हैं, लेकिन जब पड़ोसी (पाकिस्तान) धर्म का पालन नहीं करते, तो राजा (प्रधानमंत्री) को अपनी जनता की रक्षा करनी चाहिए." उन्होंने जोर देकर कहा कि जनता यह याद रखती है कि राजा ने उनकी सुरक्षा के लिए क्या कदम उठाए. यह बयान मोदी पर दबाव बढ़ाता है कि वह ठोस कार्रवाई करें, वरना जनता का समर्थन खोने का जोखिम है.

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मोदी पर बढ़ता दबाव

पहलगाम हमले के बाद पूरे देश की निगाहें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर टिकी हैं. बालाकोट और उरी हमलों के बाद सर्जिकल स्ट्राइक जैसी कार्रवाइयों से मोदी ने एक मजबूत छवि बनाई थी, लेकिन अब उनसे और बड़े कदम की उम्मीद की जा रही है. हालांकि, बिहार में एक चुनावी रैली में शामिल होने के उनके फैसले ने कुछ समर्थकों को निराश किया है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चुनौतियां हैं. संयुक्त राष्ट्र में पारित निंदा प्रस्ताव में पाकिस्तान का उल्लेख भारत की अपेक्षा के अनुरूप नहीं था, जिसे कुछ लोग चीन की कूटनीति का परिणाम मान रहे हैं. इसके अलावा, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बयान और टैरिफ वॉर ने स्थिति को और जटिल कर दिया है.

कश्मीर और देश की जनता का समर्थन

कश्मीर की जनता ने भी आतंकवाद के खिलाफ खुलकर आवाज उठाई है. स्थानीय लोग रोजी-रोटी और इंसानियत की बात करते हुए आतंकवादियों का विरोध कर रहे हैं. यह मोदी के लिए एक सकारात्मक संदेश है, क्योंकि कश्मीर से लेकर पूरे देश की जनता उनके साथ खड़ी है.

चुनौतियां और अपेक्षाएं

मोदी के सामने कई चुनौतियां हैं - आर्थिक मंदी, बेरोजगारी, महंगाई और अंतरराष्ट्रीय दबाव. अगर वह निर्णायक कदम उठाते हैं, तो देश का दिल जीत सकते हैं, लेकिन लीपापोती या निष्क्रियता से जनता का भरोसा खोने का खतरा है. जैसा कि राहुल गांधी और मोहन भागवत ने कहा, "उठो पार्थ, गांडीव संभालो," अब यह देखना बाकी है कि मोदी इस संकट को कैसे संभालते हैं.

पहलगाम हमले ने भारतीय राजनीति को एकजुट कर दिया है. राहुल गांधी और मोहन भागवत का एकसुर में बोलना और जनता का समर्थन मोदी के लिए एक बड़ा अवसर है, लेकिन इसके साथ ही कार्रवाई की जिम्मेदारी भी उन पर है. देश इंतजार कर रहा है कि प्रधानमंत्री इस बार क्या कदम उठाते हैं.

यहां देखिए वीडियो:

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