बिहार विधानसभा चुनाव में मुकेश सहनी के साथ खेल करेंगे लालू-तेजस्वी? जानें क्या है इसके पीछे की पूरी रणनीति
Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले महागठबंधन में सब कुछ ठीक नहीं दिख रहा है. तेजस्वी यादव और लालू यादव की रणनीति पर सवाल उठ रहे हैं कि क्या वे वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी को फंसाना चाहते हैं? गौरा बौराम सीट पर राजद उम्मीदवार अफजल अली खान और वीआईपी के संतोष सहनी के बीच तगड़ा पेंच फंसा है.

बिहार चुनाव से पहले भले ही महागठबंधन ने तेजस्वी यादव को सीएम फेस और मुकेश सहनी को डिप्टी सीएम फेस घोषित कर दिया, लेकिन अभी भी गठबंधन के अंदर सब कुछ ठीक नहीं है. राजद के कई नेता अभी भी घटक दलों के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहे हैं, हालांकि उन्हें पार्टी से हटाने का काम किया जा रहा है. बीते कल यानी 27 अक्टूबर को पार्टी ने 27 नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाया है.
लेकिन एक सीट पर अभी भी यह पेंच फंसा हुआ है और वो सीट है गौरा बौराम की. इस सीट पर वीआईपी पार्टी प्रमुख मुकेश सहनी के भाई संतोष सहनी और राजद से अफजल अली खान मैदान में हैं. अब सवाल यह उठ रहा है कि राजद ने जिन 27 नेताओं को पार्टी ने निकाला उसमें कई पूर्व विधायक हैं, कई विधान परिषद हैं लेकिन अफजल अली खान क्यों नहीं? क्या लालू-तेजस्वी मिलकर मुकेश सहनी को फंसाना चाहते है या फिर कोई और वजह है? आइए विस्तार से समझते हैं पूरी कहानी.
पहले जानिए गौरा बौराम सीट के बारे में
गौरा बौराम विधानसभा सीट दरभंगा जिले में आने वाली एक सीट है. माना जा रहा था कि मुकेश सहनी इस सीट से खुद चुनाव लड़ेंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. क्योंकि महागठबंधन में सीट शेयरिंग नहीं हुई थी राजद ने इस सीट से अफजल अली खान को सिंबल दे दिया और नामांकन दाखिल कर दिया. लेकिन मामला फंसा सीट शेयरिंग के बाद, जब यह सीट वीआईपी के खाते में गई और मुकेश सहनी के भाई संतोष सहनी ने इस सीट से नामांकन दाखिल कर दिया.
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सिंबल लौटाने को नहीं माने अफजल
जब संतोष सहनी ने इस सीट से नामांकन दाखिल किया तो राजद के लिए यहां मुश्किलें खड़ी हो गई. राजद ने अपने उम्मीदवार अफजल अली खान को चुनाव छोड़ देने और बैठ जाने की बात कही. उन्हें राजद ऑफिस से कॉल भी की गई, लेकिन वे नहीं माने और खुद को ही महागठबंधन का उम्मीदवार बताते रहें.
मुश्किलें और दबाव बढ़ते देख राजद की तरफ से चुनाव आयोग को लेटर भी लिखा गया कि अफजल अली खान का नामांकन रद्द कर दिया जाए. लेकिन चुनाव आयोग ने ऐसा नहीं किया और आरजेडी के उम्मीदवार के तौर पर अफजल अली खान का नामांकन एक्सेप्ट कर लिया.
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मुकेश सहनी को झटका देने चाहते है लालू-तेजस्वी?
जब बीते कल यानी 27 अक्टूबर को 27 बागी नेताओं को पार्टी से निकालने की लिस्ट जारी हुई और उसमें अफजल अली खान का नाम नहीं दिखा तो चर्चाएं एक बार फिर तेज हो गई. सवाल यह भी उठने लगे की क्या लालू-तेजस्वी चाहते है कि गौरा बौराम सीट पर खेला हो जाएं? या फिर पार्टी चाहती है कि वीआईपी पार्टी की गौरा बौराम की सीट पर हार हो जाए, जिससे कि वह आने वाले दिनों में महागठबंधन में अगर साथ रहे तो कभी दावा ना करें. यानी कि मुकेश सहनी की पार्टी को लालू और तेजस्वी यादव चुनाव में झटका देना चाहते हैं.
लालू-तेजस्वी की रणनीति या कुछ और?
इन सवालों के जवाब में दो रणनीति सामने आ रही है. पहली तो यह कहा जा रहा कि आरजेडी से पहले ही चूक हो गई है लेकिन अगर वह उसे वापस लेती है तो इसे और बड़ी गलती मानी जाएगी. वहीं दूसरी ओर इसे चुनावी रणनीति का एक हिस्सा माना जा रहा है. दरअसल यह वो कार्ड है, जिसके जरिए वीआईपी पार्टी भी चाहती है कि वहां पर आरजेडी के उम्मीदवार कुछ वोट काटे जिससे कि उन्हें फायदा मिले चुनाव में.
हालांकि अब यह देखना दिलचस्प होगा कि यह रणनीति काम भी आती है या फिर इसे ऐसे मानिए कि कुल्हाड़ी पर आपने पैर रख दिया और आरजेडी ने जानबूझकर यह चाहा कि वीआईपी पार्टी के हाथ से गौरा बौराम की सीट निकल जाए.










