C Voter Survey: बिहार में वोटर लिस्ट रिवीजन से किस पार्टी को फायदा होगा? सी-वोटर के ताजा सर्वे में पता चला

न्यूज तक

बिहार में वोटर लिस्ट रिवीजन (SIR) प्रक्रिया से राजनीतिक हलचल तेज हो गई है. विपक्ष को डर है कि इससे उनके गरीब और अल्पसंख्यक वोटरों के नाम कट सकते हैं, जिससे सत्ताधारी NDA को फायदा होगा, जबकि जनता भी इस जटिल प्रक्रिया से परेशान है.

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C Voter Survey: बिहार में चल रही वोटर लिस्ट रिवीजन (SIR) प्रक्रिया को जहां चुनाव आयोग एक रूटीन काम बता रहा है, वहीं विपक्ष इसे सत्ताधारी गठबंधन, NDA, की 'रणनीतिक चाल' करार दे रहा है. जनता के बीच भी इस मुद्दे को लेकर असमंजस और चिंता है कि आखिर इस कवायद का फायदा किसे मिलेगा और नुकसान किसे होगा?

इसी सवाल का जवाब C Voter के सर्वे में मिला है. मुताबिक, 56% लोगों का मानना है कि SIR प्रक्रिया से NDA को फायदा हो सकता है. विपक्षी महागठबंधन को डर है कि इस बहाने से उनके मुख्य वोट बैंक, खासकर गरीब, पिछड़े और अल्पसंख्यक तबकों के वोटर, लिस्ट से बाहर हो सकते हैं.

वोटर लिस्ट पुनरीक्षण और उसका राजनीतिक असर 

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  • 56% लोग मानते हैं कि यह प्रक्रिया सत्तापक्ष (एनडीए) को फायदा पहुंचाने के लिए की जा रही है.
  • लोगों में इस बात को लेकर नाराजगी है कि काम को जल्दबाजी में बिना पर्याप्त जानकारी के किया जा रहा है.
  • लगभग 25% लोगों को जानकारी ही नहीं है कि अगर 25 जुलाई तक फॉर्म नहीं भरते तो उनका वोट कट सकता है.

शिक्षा की कमी वाले लोगों के लिए प्रक्रिया है जटिल

दरअसल, SIR के तहत सभी वोटरों को अपने पहचान पत्र और दूसरे जरूरी दस्तावेज फिर से प्रमाणित करवाने पड़ रहे हैं. जिन लोगों के पास आधार, राशन कार्ड या अन्य वैध दस्तावेज नहीं हैं, वे खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं. यह प्रक्रिया उन लोगों के लिए खास तौर पर मुश्किल है जो शिक्षा, जागरूकता या संसाधनों की कमी से जूझ रहे हैं. यही वर्ग महागठबंधन का मुख्य वोट आधार रहा है.

C Voter के फाउंडर यशवंत देशमुख के अनुसार, यह दस्तावेजीकरण प्रक्रिया सैद्धांतिक रूप से सही हो सकती है, लेकिन इसकी टाइमिंग और इसे पूरा करने का तरीका कई सवाल खड़े करता है. विपक्ष इसे 'राजनीतिक गणना' का हिस्सा मान रहा है, जिसका मकसद वोट बैंक को प्रभावित करना हो सकता है.

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सियासी समीकरण और वोट बैंक पर असर

NDA को ज्यादातर शहरी, पढ़े-लिखे और दस्तावेजों से लैस वर्ग का समर्थन मिलता है. वहीं RJD, कांग्रेस और वाम दलों का जनाधार हाशिए पर खड़े तबकों में है. ऐसे में अगर बड़ी संख्या में नाम दस्तावेज़ों की कमी के कारण कटते हैं, तो इसका सीधा असर विपक्ष के वोटरों पर पड़ेगा.

सत्ताधारी गठबंधन के लिए यह मौका अपने वोटर बेस को मजबूत करने का हो सकता है. वहीं, महागठबंधन को अपनी रणनीति पर फिर से सोचना होगा. उन्हें न केवल इस मुद्दे को एक जन आंदोलन बनाना होगा, बल्कि अपने वोटरों को दस्तावेज दुरुस्त करवाने में भी मदद करनी होगी.

फिलहाल SIR का सीधा और स्पष्ट लाभ-हानि कहना जल्दबाजी होगी, लेकिन संकेत स्पष्ट हैं. जिनके पास संसाधन और सिस्टम की समझ है, वे इस प्रक्रिया से आसानी से निकल जाएंगे, और जिनकी पहुंच सीमित है, उन्हें बाहर होने का खतरा है. अगर विपक्ष ने समय रहते अपने मतदाताओं को जागरूक नहीं किया, तो यह प्रक्रिया सत्ता पक्ष को 'संख्यात्मक लाभ' और विपक्ष को 'राजनीतिक नुकसान' दे सकती है.

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