NDA या महागठबंधन...बिहार में प्रशांत किशोर की पार्टी किसको पहुंचाएगी नुकसान? C Voter सर्वे में खुलासा!

न्यूज तक

बिहार में आगामी चुनावों से पहले मतदाता लिस्ट अपडेट, वोटर डिलीजन और नई पार्टियों की एंट्री जैसे मुद्दों ने राजनीतिक माहौल को गर्म कर दिया है. प्रशांत किशोर की जन स्वराज पार्टी जातीय समीकरणों को चुनौती देती दिख रही है, जिससे परंपरागत दलों की रणनीति प्रभावित हो रही है.

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C Voter Survey
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C Voter Survey: बिहार की राजनीति में प्रशांत किशोर (पीके) की जन सुराज पार्टी एक नया समीकरण बनाती दिख रही है, और यह सवाल हर किसी के मन में है कि आखिर उनके आने से किसे नुकसान होगा? C Voter के हालिया सर्वे ने इस पर कुछ चौंकाने वाले खुलासे किए हैं, जिससे पता चलता है कि पीके की पार्टी "दोधारी तलवार" साबित हो सकती है, जो सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों को चोट पहुंचा सकती है.

क्या पीके बिगाड़ेंगे खेल?

सर्वे के मुताबिक, 19-20% लोग मानते हैं कि जन सुराज पार्टी NDA (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) को नुकसान पहुंचाएगी, जबकि 18% का मानना है कि इससे महागठबंधन को चोट पहुंचेगी. लेकिन सबसे दिलचस्प बात यह है कि 35-36% लोग यह कह रहे हैं कि पीके की पार्टी दोनों ही गठबंधनों के वोट काटेगी.

यशवंत देशमुख, जो C Voter के सर्वे को लीड कर रहे हैं, ने तक चैनल्स के मैनेजिंग एडिटर मिलिंद खांडेकर से बात करते हुए कहा कि 'यह एक अजीब सी स्थिति है. उनका मानना है कि शुरुआती आकलन में यह लग रहा था कि पीके जेडीयू के खिलाफ ज्यादा आक्रामक हैं, तो शायद वो एनडीए को ही ज्यादा नुकसान पहुंचाएंगे. खासकर चिराग पासवान के "हनुमान" वाले रोल के बाद, जिसमें उन्होंने पिछली बार जेडीयू को अच्छा खासा नुकसान पहुंचाया था, ऐसा लग रहा था कि पीके भी उसी तरह NDA का वोट काटेंगे, खासकर जेडीयू का. लेकिन अब जनता का मूड कुछ और ही दिख रहा है.

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कौन-कौन है पीके के निशाने पर?

यशवंत देशमुख के विश्लेषण के अनुसार, प्रशांत किशोर का मुख्य हमला नीतीश कुमार की जेडीयू और कांग्रेस पर केंद्रित है. उन्हें लगता है कि पीके इन दोनों पार्टियों के वोटर्स को अपनी तरफ खींचने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि, उनका मानना है कि आरजेडी का मुस्लिम-यादव कोर वोटर पीके से नहीं छिटकेगा.

लोकप्रियता वोट में बदलेगी या नहीं?

C Voter सर्वे में यह भी सामने आया है कि प्रशांत किशोर ने बिहार में एक "बज" (चर्चा) तो जरूर बनाया है. उनके मुद्दों पर सबसे पहले प्रतिक्रिया देना और उनकी सभाओं में भीड़ जुटना, उनकी बढ़ती लोकप्रियता का संकेत है. पिछले कुछ महीनों में मुख्यमंत्री पद के लिए उनकी लोकप्रियता का ग्राफ ऊपर गया है और वह लगभग दूसरे नंबर पर स्थापित हो गए हैं.

हालांकि, यशवंत देशमुख को इस बात पर संदेह है कि यह लोकप्रियता वोटों में और फिर सीटों में बदल पाएगी या नहीं. उनका कहना है कि बिहार की राजनीति में जातिगत समीकरणों को तोड़कर "कास्ट एग्नोस्टिक" तरीके से वोट बटोरना लगभग असंभव माना जाता है. ऐसे में पीके या तो "हीरो" बनेंगे या "जीरो", बीच का कोई रास्ता कम ही दिख रहा ह.

क्या बिहार चुनाव परिणाम पर असर डाल सकते हैं प्रशांत किशोर

सर्वे के आंकड़े बताते हैं कि अगर प्रशांत किशोर अपनी लोकप्रियता को वोटों में बदलने में कामयाब होते हैं, भले ही यह 5-6% वोट शेयर ही क्यों न हो, तो यह बिहार चुनाव के परिणामों पर बड़ा असर डालेगा. फिलहाल, उनकी पार्टी की मौजूदगी दोनों ही गठबंधनों के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि किसी एक का नुकसान होने के बजाय, दोनों को ही क्षति पहुंचने की संभावना है.

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