Explainer: H-1B की बढ़ी फीस, ट्रंप सरकार के इस फैसले का भारतीयों पर क्या होगा असर?
H-1B वीजा पर सस्ते विदेशी कर्मचारियों की बढ़ती संख्या से अमेरिकी नागरिकों की नौकरियां प्रभावित हो रही हैं. इसी वजह से ट्रंप प्रशासन ने वीजा फीस बढ़ाकर सख्ती दिखाई है.

शनिवार यानी 20 सितंबर को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने H-1B वीजा की फीस बढ़ाकर करीब 88 लाख रुपए यानी 1 लाख डॉलर कर दी. ट्रंप के इस फैसले ने मेटा, माइक्रोसॉफ्ट और अमेजन जैसी बड़ी टेक कंपनियों में हलचल मचा दी.
इन कंपनियों ने अपने यहां काम करे रहे सभी विदेशी कर्मचारियों को 24 घंटे के भीतर अमेरिका लौटने को कह दिया. कंपनियों को डर था कि अगर उनके कर्मचारी रविवार तक वापस नहीं आते हैं तो उन्हें फिर से बुलाने में लाखों रुपए खर्च करने पड़ सकते हैं.
ट्रंप सरकार के इस फैसले से वीजा पाने वाले लाखों लोगों पर असर पड़ सकता है. ऐसे में इस रिपोर्ट में विस्तार से समझते हैं कि आखिर क्या है ये पूरा मामला, क्या अब हर तीन साल में इतना ही पैसा देना पड़ेगा? और इस फैसले का भारतीयों पर क्या असर पड़ेगा.
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सबसे पहले समझिये क्या है H1B वीजा
इस वीजा की शुरुआत साल 1990 में हुई थी. ये उन विदेशी लोगों को दिया जाता है जो किसी खास फील्ड में कुशल होते हैं, जैसे कि आईटी, इंजीनियरिंग या मेडिकल. हर साल सबसे ज्यादा H-1B वीजा भारतीय नागरिकों को मिलते हैं. इसके बाद चीन का नंबर आता है. चीनी भी इस वीज़ा के सबसे बड़े लाभार्थी हैं.
अब शानिवार यानी 20 सितंबर को H-1B वीजा को लेकर ट्रंप सरकार ने जो कड़ा फैसला लिया है, वो उनकी नई इमिग्रेशन पॉलिसी का हिस्सा है. डोनाल्ड ट्रंप काफी पहले से कहते आ रहे हैं कि उनके देश की नौकरियां विदेशी कर्मचारी छीन रहे हैं.
इतना ही नहीं राष्ट्रपति चुनाव के प्रचार प्रसार के दौरान भी ट्रंप ने कई बार इस मुद्दे को उठाया था. उन्होंने ये तक कहा ता वो यह नहीं होने देंगे कि बाहर से आने वाले लोग अमेरिकियों की नौकरियां ले जाएं. यही वजह है कि अब H-1B वीज़ा को लेकर सख्ती बरती जा रही है.

कैसे जारी किया जाता है H1B वीजा
साल 2004 में एच-1बी वीजा कार्यक्रम के तहत मिलने वाले वीजा की संख्या 84 हजार कर दी गई थी. ये वीजा लॉटरी के जरिये जारी किया जाता है. शनिवार को नए नियम की घोषणा से पहले एच-1बी वीज़ा की कुल प्रशासनिक फीस डेढ़ हजार डॉलर थी.
हर साल कितने H-1B वीजा जारी होते हैं?
माइग्रेशन पॉलिसी वेबसाइट के अनुसार अमेरिकी सरकार की तरफ से हर साल 85,000 H-1B वीजा जारी किया जाता है, जिनका इस्तेमाल ज्यादातर तकनीकी नौकरियों में होता है. इस साल के लिए आवेदन पहले ही पूरे हो चुके हैं.
आंकड़ों की मानें तो इस इस साल अकेले अमेजन कंपनी को 10,000 से ज्यादा वीजा मिले हैं, जबकि माइक्रोसॉफ्ट और मेटा जैसी कंपनियों को 5,000 से ज्यादा वीजा स्वीकृत हुए हैं.
पिछले साल H-1B वीजा का सबसे ज्यादा फायदा भारत को मिला. हालांकि कई एक्सपर्ट का ये भी कहना है कि कंपनियां H-1B वीजा का इस्तेमाल वेतन घटाने और अमेरिकी कर्मचारियों की नौकरियां छीनने के लिए करती रही है.
H-1B वीजा में बदलाव का सबसे बड़ा असर भारतीयों पर
भारत से हर साल लाखों इस वीजा के जरिए अमेरिका में नौकरी करते हैं. साल 2023 में लगभग 1.91 लाख भारतीयों को H-1B वीजा मिला था और 2024 में ये संख्या बढ़कर 2.07 लाख हो गई. यानी वीजा लेने वालों में सबसे बड़ी हिस्सेदारी भारत की ही है.
भारत की बड़ी आईटी और टेक कंपनियां हर साल हजारों कर्मचारियों को अमेरिका भेजती हैं, लेकिन अब जब वीजा फीस 88 लाख रुपए हो गई है विदेशियो को बुलाने वाली कंपनियों ये पैसे भरने होंगे तो कंपनियां बाहर से कर्मचारियों को बुलाने के अपने फैसले पर दो बार सोचेगी जरूर. क्योंकि H-1B वीजा पर काम करने वाले कर्मचारी की औसत सालाना सैलरी लगभग 70 लाख रुपए होती है और अगर वीजा फीस इससे भी ज्यादा हो गई तो कंपनियों को घाटा हो सकता है.
इस नई फीस का सबसे ज्यादा असर उन लोगों पर पड़ेगा जो एंट्री लेवल या मिड लेवल की नौकरी कर रहे हैं. हो सकता है कंपनियां अब भारत से कर्मचारियों को ऑनसाइट भेजने की बजाय काम को यहीं से आउटसोर्स कर लें. इसका मतलब ये हुआ कि अमेरिका में भारतीयों के लिए नौकरियों के मौके अब कम हो सकते हैं.

क्या हर साल 88 लाख रुपए देने होंगे?
नहीं, ऐसा नहीं है. वीजी की नई फीस सिर्फ एक बार देनी होगी और वो भी नई H-1B वीजा एप्लिकेशन डालते समय. यानी जो लोग पहले से अमेरिका में H-1B वीजा पर काम कर रहे हैं या जो लोग अपना वीजा रिन्यू करवा रहे हैं, उन्हें ये फीस नहीं भरनी पड़ेगी.
ये नई फीस 21 सितंबर 2025 से लागू होगी और फिलहाल इसे केवल 12 महीनों के लिए तय किया गया है. इसे बढ़ाया जाए या हटाया जाए, इसका फैसला बाद में होगा.
इस एक लाख डॉलर (करीब 88 लाख रुपए) की फीस का पूरा रिकॉर्ड कंपनियों को रखना होगा. अगर किसी ने फीस नहीं भरी, तो अमेरिका का इमिग्रेशन डिपार्टमेंट उस वीजा एप्लिकेशन को रद्द कर सकता है.
वीजा की फीस बढ़ाने पर भारत ने क्या कहा
इस फौसले के बाद विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने प्रेस रिलीज जारी कर कहा कि इस कदम का मानवीय असर भी पड़ेगा, कई परिवार प्रभावित होंगे. हमे सरकार से उम्मीद है कि अमेरिकी अधिकारी इन समस्याओं का हल निकालेंगे.
अमेरिकी सरकार ने H-1B वीजा फीस क्यों बढ़ाई
साल 2003 में H-1B वीजा पर काम करने वालों की हिस्सेदारी 32% थी, जो अब बढ़कर 65% हो गई है. इसका असर ये हुआ कि अमेरिका के खुद के ग्रेजुएट्स को नौकरी मिलने में दिक्कत होने लगी.
उदाहरण के तौर पर कंप्यूटर साइंस में नए ग्रेजुएट्स की बेरोजगारी दर 6.1% और कंप्यूटर इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स की 7.5% है. जो कि बायोलॉजी या आर्ट हिस्ट्री जैसे विषयों के ग्रेजुएट्स की तुलना में लगभग दोगुनी है.
साल 2000 से 2019 के बीच, अमेरिका में विदेशी STEM (साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथ्स) वर्कर्स की संख्या दोगुनी से भी ज्यादा हो गई, जबकि पूरे STEM सेक्टर में नौकरियों की बढ़ोतरी सिर्फ 44.5% ही हुई. यानी जितनी नौकरियां बढ़ीं, उससे ज्यादा विदेशियों को भर्ती किया गया.
कुछ कंपनियों पर ये आरोप भी हैं कि उन्होंने कम सैलरी पर H-1B वीजा वालों को रखा और अमेरिकियों को नौकरी से निकाल दिया. एक कंपनी को साल 2025 में 5,189 H-1B वीजा मिले और उसी साल उसने 16,000 अमेरिकी कर्मचारियों को हटा दिया.
दूसरी कंपनी को 1,698 वीजा मिले और उसने ओरेगन में 2,400 अमेरिकी कर्मचारियों की छंटनी कर दी. तीसरी कंपनी को अब तक 25,075 वीजा मिल चुके हैं और उसने 2022 से अब तक 27,000 अमेरिकी वर्कर्स को बाहर का रास्ता दिखा दिया है.
अमेरिकी सरकार का मानना है कि अगर ये ट्रेंड नहीं रुका तो अमेरिकी युवाओं के लिए नौकरी की संभावनाएं और घटती जाएंगी.
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