बिहार में अब 75 फीसदी आरक्षण, नीतीश सरकार ने किसको कितना दिया, क्या लागू हो पाएगा?
बिहार से पहले कई राज्यों जैसे तमिलनाडु ने 69 फीसदी, कर्नाटक ने 68 फीसदी तक आरक्षण के कोटे को बढ़ाने का प्रयास किया है लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे अमान्य घोषित कर दिया.
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News Tak: बिहार सरकार ने आरक्षण के दायरे को बढ़ाकर 75 फीसदी करने का फैसला लिया है. मंगलवार को नीतीश कुमार सरकार ने सदन में जातिगत सर्वे के साथ जातिवार इकोनॉमिक सर्वे पेश किया. इसके बाद कैबिनेट ने आरक्षण बढ़ाने का फैसला ले लिया. उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने कहा है कि इस संबंध में विधेयक 9 नवंबर को पारित कराया जायेगा. बिहार में अब किसे मिलेगा कितना आरक्षण और क्या है इसमें कानूनी अड़चनें, आइए बताते हैं.
किस वर्ग को कितना मिलेगा आरक्षण
कैबिनेट के फैसले के अनुसार प्रदेश में अनुसूचित जाति (SC) के 16 फीसदी आरक्षण को बढ़ाकर 20 फीसदी किया गया है. पिछड़ा वर्ग और अत्यंत पिछड़ा वर्ग (OBC & EBC) के 30 फीसदी के कोटे को बढ़ाकर 43 फीसदी किया गया है. इसी तरह अनुसूचित जनजाति(ST) के 1 फीसदी को बढ़ाकर 2 फीसदी करने का फैसला हुआ है. कमजोर आर्थिक वर्ग(EWS) को मिले 10 फीसदी के कोटे को पहले की तरह ही बरकरार रखा जाएगा. इस तरह अब बिहार में आरक्षण का कोटा 75 फीसदी हो जायेगा. आरक्षण के कोटे को बढ़ाने के पीछे CM नीतीश कुमार ने आबादी के जातिवार आंकड़ों का तर्क दिया है.
कल बिहार विधानमंडल के दोनों सदनों में ऐतिहासिक जाति आधारित सर्वे की आर्थिक-सामाजिक रिपोर्ट पेश करने के दौरान हमारी सरकार ने 𝐒𝐂/𝐒𝐓, 𝐁𝐂/𝐄𝐁𝐂 का आरक्षण बढ़ाकर 𝟔𝟓% करने का ऐलान किया। EWS को 𝟏𝟎% पूर्व से ही मिल रहा है। बिहार में आरक्षण का कुल दायरा अब 𝟕𝟓% होगा।
आरक्षण…
— Tejashwi Yadav (@yadavtejashwi) November 8, 2023
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क्या है कानूनी अड़चनें
भारत में अगर किसी राज्य में आरक्षण के कोटे को बढ़ाना हो तो पहले राज्य सरकार को एक संशोधन ऐक्ट पारित करना होता है. 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहिनी के मामले में तय किया था की जाति आधारित आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 फीसदी होगी. अगर राज्य का कोटा इसे लांघता है तो सर्वोच्च न्यायालय उसके औचित्य की समीक्षा करता है. बिहार से पहले कई राज्यों जैसे तमिलनाडु ने 69 फीसदी, कर्नाटक ने 68 फीसदी तक आरक्षण के कोटे को बढ़ाने का प्रयास किया है लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे अमान्य घोषित कर दिया. महाराष्ट्र सरकार ने भी 2019 में विधेयक लाकर आरक्षण को 52 फीसदी किया, इसे भी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है.
इन मामलों से पता चलता है कि आरक्षण को बढ़ाने की प्रक्रिया जटिल और विवादास्पद है. आरक्षण को लागू करने से पहले बिहार की नीतीश सरकार को ये सुनिश्चित करना होगा कि यह कानूनी रूप से वैध हो और यह पिछड़े वर्गों के हितों में हो.
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EWS आरक्षण के मुद्दे पर फिर कैसे टूटी 50 फीसदी की सीमा?
अक्सर ये सवाल उठता है कि अगर आरक्षण पर 50 फीसदी की सीमा है तो सुप्रीम कोर्ट ने EWS के लिए 10 फीसदी आरक्षण कैसे मान लिया. यह मामला भी सुप्रीम कोर्ट के सामने आया था. पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने 3-2 से आरक्षण को सही ठहराया था. EWS के 50 फीसदी की सीमा लांघने पर सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश महेश्वरी ने कहा था कि, आरक्षण के 50 फीसदी कोटे की सीमा कठोर नहीं है. यह संविधान में एक दिशानिर्देश मात्र है. उनका कहना था कि बदलते सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों के अनुरूप ये बदलाव किये जा सकते हैं.
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दूसरी तरफ न्यायमूर्ति भट्ट ने तर्क दिया था कि 50% की अपर सीमा सिर्फ एससी, एसटी और ओबीसी के लिए लागू होती है, और EWS श्रेणी के लिए नहीं. वैसे उनका यह भी कहना था कि, 50% की सीमा को तोड़ने से भविष्य में दिक्कत होगी और इसके परिणामस्वरूप समाज में खंडन होगा. उनका कहा था कि 50 फीसदी की सीमा विभिन्न सामाजिक समूहों के बीच समानता बनाए रखने के लिए आवश्यक है.
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