MP Election: ‘दादा’ को नहीं मिला टिकट तो ‘पोते’ ने कर दी BJP से बगावत, थामा कांग्रेस का दामन
MP Election 2023: मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव (Madhya Pradesh Assembly Election) में कुछ ही दिन बाकी हैं. 17 नवंबर को मतदान किया जाएगा और 3 दिसंबर तक नतीजे सबसे सामने होंगे. प्रत्याशियों के नामांकन भरने का दौर शुरू हो चुका है. लेकिन अभी भी दलबदल का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है. टिकट […]
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MP Election 2023: मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव (Madhya Pradesh Assembly Election) में कुछ ही दिन बाकी हैं. 17 नवंबर को मतदान किया जाएगा और 3 दिसंबर तक नतीजे सबसे सामने होंगे. प्रत्याशियों के नामांकन भरने का दौर शुरू हो चुका है. लेकिन अभी भी दलबदल का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है. टिकट नहीं मिलने से नाराज होकर कई नेता अपनी पार्टी छोड़ रहे हैं. शाजापुर (Shajapur) का मामला जरा हटके है. यहां दादा को टिकट नहीं मिलने से नाराज होकर पोते ने भाजपा (BJP) छोड़ कांग्रेस (Congress) का दामन थाम लिया.
शाजापुर (shajapur) जिले की शुजालपुर विधान सभा से मेवाड़ा समाज के 500 लोगों ने पूर्व विधायक के केदारसिंह मंडलोई (Kedarsingh Mandloi) के पोते और भाजपा नेता राहुल मेवाड़ा के साथ भाजपा छोड़कर कांग्रेस ज्वॉइन कर ली. पूर्व मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सज्जन सिंह वर्मा के सामने 500 भाजपा कार्यकर्ताओं ने कांग्रेस की सदस्यता ली.
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पूर्व विधायक मांग रहे थे टिकट
भाजपा युवा मोर्चा के कार्यकर्ता राहुल मेवाड़ा अपने दादा और पूर्व विधायक केदार सिंह मंडलोई को टिकट नहीं मिलने से नाराज थे. केदारासिंह मंडलोई सिंधिया समर्थक नेता माने जाते हैं. वे ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindhia) के साथ कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे. पूर्व विधायक मंडलोई काला पीपल से टिकट की मांग कर रहे थे. केदार सिंह मंडलोई और उनके बेटे शिव मंडलोई को टिकट नहीं मिलने पर राहुल मेवाड़ा पार्टी से नाराज हो गए और उन्होंने भाजपा छोड़ कांग्रेस का दामन थाम लिया.
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दिलचस्प है काला पीपल का मुकाबला
कालापीपल (Kalapipal) से भाजपा ने घनश्याम चंद्रवंशी को उम्मीदवार बनाया है. चंद्रवंशी का विरोध देखने को भी मिल रहा है. वहीं कांग्रेस ने कुणाल चौधरी को टिकट दिया है, जिससे नाराज होकर चतुर्भुज तोमर ने बगावत कर दी. बता दें कि कालापीपल विधानसभा सीट का 2008 में ही अस्तित्व में आई थी. यह सीट पहले शुजालपुर सीट के तहत आती थी. लेकिन 2008 में 188 गांवों को जोड़कर कालापीपल को नई विधानसभा सीट बना दिया गया. अब तक यहां पर हुए 3 चुनावों में से 2 चुनाव में बीजेपी को जीत मिली है. इस बार कालापीपल का मुकाबला दिलचस्प है.
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