Jaipur Accident: सरकार ने की फ्री एम्बुलेंस सेवा की घोषणा, फिर भी मृतकों के परिजनों से वसूले गए हजारों रुपये
जयपुर के हरमाड़ा हादसे में 14 लोगों की मौत के बाद एम्बुलेंस चालकों ने फ्री सेवा के नाम पर परिजनों से अवैध वसूली की. अस्पताल प्रशासन ने इसे गलत बताते हुए दोषी चालकों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की बात कही है.

जयपुर के हरमाड़ा इलाके में हुए दर्दनाक डंपर हादसे ने 14 परिवारों की खुशियां छीन लीं. इस हादसे ने एक तरफ जहां पूरे प्रदेश को झकझोर दिया, वहीं दूसरी तरफ हादसे के बाद सामने आई एक और घटना ने इंसानियत पर सवाल खड़े कर दिए.
दरअसल सवाई मानसिंह अस्पताल (एसएमएस) की मोर्चरी के बाहर का नज़ारा किसी भयावह मंजर से कम नहीं था. अपने परिवारवालों के शव लेने पहुंचे लोगों को एम्बुलेंस चालकों से सौदेबाजी करनी पड़ी. सरकार और अस्पताल प्रशासन की तरफ से ये घोषणा की गई थी कि मृतकों के शवों को घर तक पहुंचाने के लिए फ्री एम्बुलेंस सुविधा दी जाएगी लेकिन जमीन पर हकीकत बिल्कुल अलग थी.
मृतकों के परिजन गंगाधर मीणा ने बताया कि उनके परिवार के सुरेश कुमार मीणा की हादसे में मौत हो गई थी. जब वे शव लेने एसएमएस अस्पताल पहुंचे, तो एम्बुलेंस चालकों ने उनसे पैसों की मांग की. उन्होंने बताया कि एक एम्बुलेंस का किराया 2200 रुपये बताया गया और उन्हें दो एम्बुलेंस की जरूरत थी. जयपुर से उनका गांव लगभग 60 किलोमीटर दूर है, इसलिए उन्हें कुल 4400 रुपये चुकाने पड़े.
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अस्पताल ने ली शव घर ले जाने की जिम्मेदारी
ठीक इसी तरह कई अन्य पीड़ित परिवारों ने भी यही आरोप लगाया कि न तो प्रशासन ने कोई व्यवस्था की और न ही अस्पताल ने शव घर ले जाने की जिम्मेदारी ली. जबकि मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने हादसे के बाद पीड़ित परिवारों को हरसंभव सहायता देने के निर्देश दिए थे.
इस मामले पर एसएमएस मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. दीपक माहेश्वरी ने कहा कि सभी मृतकों के शव घर तक पहुंचाने के लिए एम्बुलेंस चालकों को अस्पताल की ओर से पहले ही भुगतान किया गया था. अगर इसके बावजूद कुछ चालकों ने परिवारों से पैसे लिए हैं तो यह गलत है.
उन्होंने आगे कहा कि ऐसे ड्राइवरों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी, क्योंकि एक ही सेवा के लिए “डबल भुगतान” बिल्कुल बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.
इस घटना ने प्रशासन की कार्यप्रणाली और कुछ एम्बुलेंस चालकों की संवेदनहीनता दोनों पर सवाल खड़े कर दिए हैं. हादसे से टूटे परिवारों को जहां सरकारी मदद की उम्मीद थी, वहीं उन्हें मजबूरी में अपने अपनों के शवों के लिए भी सौदेबाजी करनी पड़ी जो किसी भी समाज के लिए शर्मनाक तस्वीर पेश करती है.
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