बेनजीर हिना के केस ने 'तलाक-ए-हसन' पर खींचा ध्यान, क्या है ये पूरा मामला और सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

तीन तलाक बैन होने के बावजूद तलाक-ए-हसन आज भी मान्य है. सुप्रीम कोर्ट पहुंची बेनजीर हिना ने बताया कि पति ने एकतरफा तलाक देकर रिश्ता खत्म कर दिया. हिना बताया पति ने ऐसा क्या किया कि वो शादी भी नहीं कर सकती हैं.

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तस्वीर: न्यूज तक.
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जब मोदी सरकार ने तीन तलाक यानी तलाक ए बिद्दत को बैन किया तब शायद ये समझ लिया गया कि मुसलमान औरतों को एकतरफा तलाक से आजादी मिल गई. अब किसी मुसलमान पति ने मुसलमान पत्नी को तीन बार तलाक-तलाक-तलाक बोलकर रिश्ता तोड़ा वो अपराध माना जाता है. 

हालांकि बेनजीर हिना नाम की महिला ने सुप्रीम कोर्ट को अपने साथ हुई घटना की शिकायत में बताया तब ध्यान गया कि तलाक ए बिद्दत खत्म हुआ, लेकिन तलाक ए हसन अभी भी जारी है. बेनजीर हिना को उसके पति यूसुफ ने तलाक ए हसन के तहत एकतरफा तलाक दिया. तलाक ए हसन को मुस्लिम पर्सनल लॉ एक्ट आज भी मान्यता देता है. 

तलाक-ए-हसन, तलाक-ए-बिद्दत से थोड़ा अलग इसलिए कि है क्योंकि इसमें तलाक देने में कम से कम तीन महीने का समय लगता है. तलाक ए हसन यानी EMI में दिया जाने वाला तलाक है जो पूरी तरह एकतरफा होता है.

सुप्रीम कोर्ट का इशारा-इसे भी रद्द किया जाना चाहिए 

बेनजीर हिना की याचिका पढ़ते ही चीफ जस्टिस होने जा रहे जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस उज्जल भुइयां और जस्टिस कोटिश्वर सिंह की बेंच ने इशारा किया कि तलाक-ए-हसन को भी रद्द किया जा सकता है. हालांकि संभावना ये भी है कि इसे 5 जजों की संविधान बेंच में विचार के लिए भेजा जा सकता है. 

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जज हैरान हुए कि किसी सभ्य समाज में तलाक-ए-हसन की इजाजत दी जा रही है. ऐसे भी तलाक हो रहे हैं. तलाक देने वाले पति के वकील ने दलील रखी कि इस्लाम इजाजत देता है तो कोर्ट ने फटकारा कि 2025 में इसे कैसे बढ़ावा दे रहे हैं. अगर कोई प्रथा महिलाओं के सम्मान के खिलाफ भेदभाव पैदा करती है तो कोर्ट को दखल देना ही होगा. 

महिलाओं के पीरियड्स से कनेक्टेड है तलाक-ए-हसन 

तलाक-ए-हसन महिला के पीरियड्स यानी मासिक धर्म से कनेक्टेड है . कब पीरियड आते हैं, कब पीरियड खत्म होते हैं, कब महिला पवित्र होती है, कब अपवित्र होती है, कब शारीरिक संबंध बनाया जा सकता है, कब नहीं...तलाक देने की तलाक-ए-हसन प्रक्रिया की टाइमलाइन इन सबके हिसाब से चलती है. 

तलाक पर आमादा शौहर को पत्नी के तीन पीरियड्स का इंतजार करना होगा. इस्लाम में अलग-अलग तलाक के प्रकारों में से एक है तलाक-ए-हसन जिसके बारे में सुनकर सन्न रह गए सुप्रीम कोर्ट के जज.  

ये है तलाक-ए-हसन की पूरी प्रक्रिया 

पति तलाक-ए-हसन के तहत पहला तलाक का नोटिस तब देगा जब पत्नी पीरियड से निपटकर पवित्र होगी. अगर पीरियड के बाद शारीरिक संबंध नहीं बने तो पति पहला तलाक देगा. इसी तरह दूसरे महीने के पीरियड के बाद पत्नी पवित्र होगी तो दूसरा तलाक देगा. तीसरी बार पीरियड से फ्री होने पर तलाक देने के साथ तलाक-ए-हसन की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी और पति-पत्नी का रिश्ता टूट जाएगा. 

इसमें शर्त ये है कि पीरियड के दिनों और प्रेगेनेंसी के दौरान ऐसा तलाक माना जा सकता है. महिला के तीन पीरियड के बाद पवित्र होने वाले टाइम को तुहर कहते हैं और इसी तीन तुहर के दौरान दिया जाने वाला तलाक मान्य होगा.  अगर इन तीन महीनों में पति-पत्नी के बीच शारीरिक संबंध बन गए तो पूरी प्रक्रिया शून्य हो जाएगी.

क्या है बेनजीर हिना का केस 

बेनजीर के पति युसूफ ने अपने वकील के जरिए पत्नी बेनजीर को तीन अलग-अलग महीनों में तलाक-ए-हसन के नोटिस भिजवाए, लेकिन खुद साइन नहीं किया. 2022 में यूसुफ दूसरी शादी कर ली. अब मुश्किल ये है कि अगर बेनजीर ने दूसरी शादी कर ली तो पहला पति युसूफ दावा कर सकता है कि उसने तलाक दिया ही नहीं था. दो-दो शादियां करने पर फंस जाएगी बेनजीर. 

बेनजीर हिना ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि तलाक-ए-हसन की प्रक्रिया के कारण वो साबित नहीं कर सकती कि उसे तलाक दिया गया है. जबकि उसके पति ने दूसरी शादी कर ली. वो जिंदगी में आगे बढ़ चुके हैं. 

दहेज के लिए पति ने ये सब किया- बेनजीर 

बेनजीर ने दावा किया कि दहेज के लिए उसके पति ने तलाक दिया. 4 साल के बच्चे की मां बेनजीर ने दावा किया कि उन्हें अपने बच्चे का पासपोर्ट बनवाने से लेकर स्कूल में दाखिले तक, हर जगह दिक्कत हो रही है. कहीं भी उन्हें तलाकशुदा नहीं माना जा रहा है. अगर बेनजीर दूसरी शादी करना चाहे तो वो ऐसा नहीं कर सकती. 

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने बेनजीर के वकील से कहा कि वो वकील के जरिए सारी दिक्कतों को संक्षेप में लिख कर दें. सारी दिक्कतें दूर की जाएंगी. युसूफ को कोर्ट ने 3 दिसंबर को पेश होने के लिए कहा है. 

एकतरफा तलाक की शिकार कई मुस्लिम महिलाएं सुप्रीम कोर्ट में अपने हक के लिए पहुंची हैं. कहा है कि संविधान हर नागरिक को कानून की नजर में अनुच्छेद 14 के तहत समानता, अनुच्छेद 21 के तहत सम्मान से जीवन जीने का अधिकार देता है, लेकिन धर्म के नाम पर मुस्लिम महिलाओं को इनसे वंचित रखा जा रहा है.

याचिकाकर्ताओं ने मांग की है कि सुप्रीम कोर्ट अदालती तरीके से न होने वाले सभी किस्म के तलाक को असंवैधानिक करार दे. सुप्रीम कोर्ट ने ऐसी याचिकाएं को लेकर पॉजिटिव रुख दिखाया है. हो सकता है कि संविधान बेंच मुसलमानों के तलाक की व्यवस्था पर नए सिरे से सुनवाई करे.

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